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दूसरों के कल्याणार्थ किये गए बलिदान को केवल मेमोरियल डे पर ही नही वरन प्रति दिन याद करना चाहिए

अध्यात्मिक विज्ञानं और सावन कृपाल रूहानी मिशन के मौजूदा संत राजेंदर सिंह जी ने फरमाया है कि मानव जीवन में प्रत्येक दिन मेमोरियल डे (स्मृति दिवस) होता है|Every day is a Memorial Day
उन्होंने बताया कि यूनाइटेड स्टेट्स आफ अमेरिका में हर साल मई में एक दिन ‘मेमोरियल डे’ (स्मृति दिवस) के रूप में मनाया जाता है, उन लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए जिन्होंने दूसरों के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया। अपनी जान कुर्बान करने वालों को सम्मानित करने के लिए इस दिन परेड, भाषण, और बलिदानियों की कब्रों पर जाना आम बात है। लेकिन इन महारथियों को साल में केवल एक दिन याद करने के बजाय हमें उन्हें प्रतिदिन याद करना चाहिए।
जब हम ‘मेमोरियल डे’ (स्मृति दिवस) के बारे में सोचते हैं, तो हम देखते हैं कि ऐसे भी कई लोग होंगे जिन्होंने दूसरों के लिए अपने जीवन का बलिदान तो दिया होगा, लेकिन जिनके बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण या रिकार्ड नहीं है। इन वीरों ने दूसरों की सहायता इसलिए नहीं की ताकि उनका नाम हो सके; उन्होंने तो ऐसा इसलिए किया क्योंकि सेवा और त्याग इंसानियत का एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं।
यह हमारी आंतरिक दिव्य प्रवृत्ति है कि हम नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा व सहायता करें। इसका अर्थ है कि हम अपने लिए कोई लाभ या ईनाम चाहे बिना दूसरों की सहायता करें। हम देखते हैं कि आज जिन्हें हम सम्मानित कर रहे हैं, उन्होंने किसी ईनाम के बारे में नहीं सोचा था। उन्होंने तो वो कार्य इसलिए किया क्योंकि वैसा ही करना उन्हें उचित लगा। इसी तरह, निष्काम भाव से सेवा इसलिए की जाती है क्योंकि वैसा ही करना सही और उचित होता है। जब हम किसी को तकलीफ़ या मुसीबत में देखते हैं, तो हमारे दिल में ईनाम पाने का ख़याल नहीं आता; हम तो बस आगे बढ़ते हैं और उस इंसान की मदद करते हैं।
यह आंतरिक दिव्य प्रवृत्ति हम सभी के भीतर मौजूद है। प्रभु का अंश होने के नाते हम सभी के अंदर वो दिव्यता विद्यमान है। इसी दिव्यता का एक भाग है सबसे प्रेम करना, जिसका मतलब है सभी को प्रभु के एक ही परिवार का सदस्य समझना। जिस प्रकार हम ज़रूरत पड़ने पर अपने परिवारजनों की सहायता करते हैं, उसी तरह हम दूसरों को भी अपने ही परिवार का सदस्य जानकर उनकी भी सहायता करने लगते हैं।

इस संसार में संतुष्टि प्राप्त करना

अधिकतर लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति में ही लगे रहते हैं। हमारी इच्छा एक कार ख़रीदने की हो सकती है; एक मकान ख़रीदने की हो सकती है; इतिहास या विज्ञान पढ़ने की हो सकती है; या इस संसार की किसी भी अन्य वस्तु से संबंधित हो सकती है। हमारा ध्यान इसी ओर रहता है कि हम अपनी इच्छाओं को पूरा कैसे करें।
हमारा जीवन इसी प्रकार गुज़रता रहता है जिसमें हम एक के बाद एक इच्छा को पूरा करने में लगे रहते हैं। वास्तविकता यह है कि इच्छाओं का तो कोई अंत होता नहीं। जैसे ही हमारी एक इच्छा पूरी होती है, तो दूसरी उसकी जगह उत्पन्न हो जाती है। वो पूरी करने के बाद कोई तीसरी इच्छा हमारे मन में जाग उठती है, और उसके बाद एक और, और उसके बाद एक और। इस तरह हमारा जीवन बस इन इच्छाओं को पूरा करने में ही गुज़र जाता है।
चूँकि इंसानी जीवन इच्छाओं की पूर्ति पर ही आधारित है, तो आवश्यकता है सही इच्छा रखने की। सबसे पहले तो हमें एक लक्ष्य निर्धारित कर लेना चाहिए। और सही लक्ष्य केवल प्रभु को पाना ही है – अपनी आत्मा का मिलाप परमात्मा में करवाना। हम अपनी प्रत्येक सांसारिक इच्छा को पूरा करने में ही अपनी मूल्यवान साँसें ज़ाया कर लेते हैं। अंत में हम देखते हैं कि इनमें से कोई भी इच्छा हमें स्थाई सुख, ख़ुशियाँ और संतुष्टि प्रदान नहीं कर पाई है। यदि हम अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप को जानने व परमात्मा को पाने की ही इच्छा रखेंगे, तो हम देखेंगे कि हमें किसी भी सांसारिक इच्छा की पूर्ति से कहीं अधिक ख़ुशी और संतुष्टि प्राप्त होगी।