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प्रभु सृष्टि के नेटवर्क के मास्टर कम्प्यूटर को चला रहे हैं जिससे जुडी हमारी आत्माएँ छोटे-छोटे व्यक्तिगत कम्प्यूटर हैं : संत राजिंदर सिंह जी महाराज

प्रभु सृष्टि के नेटवर्क के मास्टर कम्प्यूटर को चला रहे हैं जिससे जुडी हमारी आत्माएँ छोटे-छोटे व्यक्तिगत कम्प्यूटर हैं
:साईंस आफ स्प्रिचुअलिती [Science of Spirituality ] के परम पूज्य संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने मानव जीवन को प्रभु के लिए एक खुली किताब बताते हुए हर समय अच्छे से अच्छा व्यवहार करने की और सद्गुण दर्शाने का उपदेश दिया है| महाराज आज कल शिकागो में हैं|उन्होंने फ़रमाया कि प्रभु इस संपूर्ण सृष्टि के नेटवर्क के मास्टर कम्प्यूटर को चला रहे हैं और हमारी आत्माएँ इस नेटवर्क से जुड़े छोटे-छोटे व्यक्तिगत कम्प्यूटर हैं। जो कुछ भी हम सोचते, कहते, और करते हैं, वो सब प्रभु को पता चल जाता है| सावन कृपाल रूहानी मिशन की गद्दी के मौजूदा वारिस परम पूज्य संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने फ़रमाया है कि प्रभु सदा हमारे साथ रहते हैं लेकिन कई लोग इस सच्चाई से अनजान रहकर ही जीवन गुज़ार देते हैं |यदि हम दिन भर में दूसरों के साथ अपने व्यवहार की जाँच करें,तो हम देखेंगे कि हम उस वक्त अलग ढंग से बर्ताव करते हैं जब हमें लगता है कि कोई हमें देख रहा है। हम उस समय बेहतर ढंग से व्यवहार करते हैं जब हमें लगता है कि कोई अधिकारी, या कोई वरिष्ठ कर्मचारी, या कोई ऐसा व्यक्ति जिसे हम प्रभावित करना चाहते हैं,हमें देख रहा है। लेकिन अगर हमें पता चल जाए कि प्रभु हर समय हमें देख रहे हैं तो?तब क्या हम अपने व्यवहार में सद्गुणों को नहीं ढालेंगे?
महाराज ने मानव प्रवर्ती को उजागर करते हुए कहा कि मनुष्य का यह स्वभाव है कि वो तब अच्छे से अच्छा व्यवहार करने की कोशिश करता है जब उसे लगता है कि कोई और उसे देख रहा है। जब हम आफि़स में होते हैं,या अपने पड़ोसियों और मित्रों के साथ होते हैं, तब क्या हम इस तरह का व्यवहार नहीं करते कि सभी हमें एक अच्छा व्यक्ति समझें? यदि हमारे अंदर कोई बुरी आदतें या दुर्गुण हैं, तो क्या हम उन्हें दूसरों से छुपाने की कोशिश नहीं करते?
यदि हमारी समझ में आ जाए कि जिन बातों को हम दूसरों से छुपा रहे हैं वो प्रभु के लिए एक खुली किताब हैं, तो शायद हम हर समय अच्छे से अच्छा व्यवहार करने की और सद्गुण दर्शाने की ही कोशिश करेंगे।
लोग पूछते हैं, “प्रभु कहाँ हैं?” संत-महापुरुष हमें बताते हैं कि प्रभु हमारे भीतर ही हैं। हम जहाँ भी रहें या जो कुछ भी करें, प्रभु हमें देख रहे होते हैं। प्रभु ही वो ताक़त है जो हमें जान दे रही है। इसी ताक़त या सत्ता ने हमें जिन्दगी दी है। भौतिक पदार्थ से बना हमारा यह शरीर हमारा असली आपा नहीं है। जो ताक़त इस शरीर को चला रही है, वो परमात्मा की ताक़त है। उसी सर्वव्यापी ताक़त का एक अंश, यानी हमारी आत्मा, इस शरीर के अंदर मौजूद है। हमारी आत्मा वास्तव में परमात्मा की ही एक बूंद है। यह प्रभु का ही अंश है। परमात्मा का अंश होने के नाते जो कुछ भी हमारी आत्मा करती है, वो परमात्मा को अपने आप ही पता चल जाता है।

हम इसे एक कम्प्यूटर नेटवर्क के समान समझ सकते हैं। एक नेटवर्क में मास्टर या प्रमुख कम्प्यूटर अन्य सभी कम्प्यूटरों से जुड़ा होता है। मास्टर कम्प्यूटर को चलाने वाला व्यक्ति एक ही समय में देख सकता है कि उससे जुड़े सभी अलग-अलग कम्प्यूटरों पर क्या-क्या चल रहा है। हो सकता है कि उन अलग-अलग कम्प्यूटरों को चलाने वाले व्यक्तियों को यह पता ही न हो कि मास्टर कम्प्यूटर चलाने वाला व्यक्ति उनकी हरेक कार्यवाही को देख सकता है। अगर उन्हें पता चल जाए कि कोई उनके ई-मेल्स और टैक्स्ट मैसेज आदि देख रहा है, तो वे सावधान हो जायेंगे और उचित ई-मेल्स ही भेजेंगे। लेकिन जिन्हें यह न पता हो, वे शायद ऐसी बातें भी लिख देंगे जोकि वे नहीं चाहते कि किसी और को पता चलें।

इसी प्रकार, प्रभु इस संपूर्ण सृष्टि के नेटवर्क के मास्टर कम्प्यूटर को चला रहे हैं और हमारी आत्माएँ इस नेटवर्क से जुड़े छोटे-छोटे व्यक्तिगत कम्प्यूटर हैं। जो कुछ भी हम सोचते, कहते, और करते हैं, वो सब प्रभु को पता चल जाता है। यदि हम इस बात को अच्छी तरह से समझ जायें कि प्रभु हर वक्त हमें देख रहे हैं, तो हम हर समय अच्छा व्यवहार ही करेंगे। यदि हम जान जायें कि प्रभु हमें देख रहे हैं, तो यक़ीनन हमारे जीवन में बड़ा भारी परिवर्तन आ जाएगा।
यदि हमें पता हो कि प्रभु हमारे हरेक विचार और बोल को सुन रहे हैं, और हमारे प्रत्येक कार्य को देख रहे हैं, तो ज़रा सोचिए कि कितनी जल्दी हमारे व्यवहार में सुधार आ जाएगा। हम बेहद सतर्क रहेंगे कि हमसे अहिंसा, सच्चाई, पवित्रता, और नम्रता जैसे सद्गुणों के क्षेत्रों में कोई ग़लती न हो। यदि हम अपनी कमियों को दूर कर पायेंगे, तथा ध्यानाभ्यास और निष्काम सेवा में नियमित रूप से समय देंगे, तो हम बेहद तेज़ी से आध्यात्मिक तरक्क़ी कर पायेंगे।

हम सभी एक ही प्रभु के अंश हैं, इसीलिए प्रभु का जानने का हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है:संत राजिंदर सिंह जी महाराज

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज फ़र्माते हैं कि अध्यात्म का अर्थ है यह जानना कि बाहरी नामों और लेबलों के नीचे हम सब वास्तव में एक ही प्रभु का अंश हैं।इसीलिए प्रभु का जानने का हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है क्यूंकि हम सब एक ही बड़े परिवार के सदस्य हैं।
अध्यात्मिक विज्ञान और सावन कृपाल रूहानी मिशन के प्रमुख संत राजिंदर जी महाराज का कहना है कि जब हम इस दृष्टिकोण के साथ जीने लगते हैं, तो हमारे अंदर कोई पूर्वाग्रह या भेद-भाव नहीं रहता और हम वो सभी दीवारें तोड़ डालते हैं जो एक इंसान को दूसरे से अलग करती हैं। हम महसूस करते हैं कि हम सब आत्मा के स्तर पर एक हैं। इस एकता और जुड़ाव का अनुभव करने से हम एक-दूसरे का ख़याल रखने लगते हैं; हम एक-दूसरे की सेवा व सहायता करने लगते हैं। हमारा दृष्टिकोण व्यापक हो जाता है और हम सभी इंसानों के साथ करुणा से पेश आते हैं।
साइंस आफ़ स्पिरिच्युएलिटी’ तथा ‘सावन कृपाल रूहानी मिशन’ के अध्यक्ष संत राजिन्दर सिंह जी महाराज अध्यात्म के द्वारा आंतरिक और बाह्य शांति का प्रसार करने के अपने अथक प्रयासों के लिये अंतर्राष्ट्रीय रूप से जाने जाते हैं। विश्व भर में उनके द्वारा किये गये महान् योगदानों के लिये उन्हें प्रदत्त अनेक पुरस्कारों व सम्मानों में सम्मानार्थ डाक्टरेट की पाँच उपाधियाँ शामिल हैं।भारत में जन्मे तथा वैज्ञानिक के रूप में शिक्षित संत राजिन्दर सिंह जी महाराज अध्यात्म और विज्ञान दोनों की गूढ़ समझ रखते हैं। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक शिक्षा भारत के दो महान् पूर्ण संतों – संत कृपाल सिंह जी महाराज (1894-1974) व संत दर्शन सिंह जी महाराज (1921-1989)- के द्वारा प्राप्त की।
यूनाइटेड स्टेट्स आफ़ अमेरिका से विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने बीस वर्ष तक विज्ञान एवं संचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। अध्यात्म और विज्ञान दोनों का इतना गहरा ज्ञान होने के कारण वे पुरातन व गूढ़ आध्यात्मिक शिक्षाओं को आज की सरल, स्पष्ट एवं तार्किक भाषा में समझाने में सफल रहे हैं।संत जी महाराज सेवा कार्यों के लिए दान पर निर्भर नही है वरन अपनी व्यतिगत कमाई लगाते हैं |

दूसरों के कल्याणार्थ किये गए बलिदान को केवल मेमोरियल डे पर ही नही वरन प्रति दिन याद करना चाहिए

अध्यात्मिक विज्ञानं और सावन कृपाल रूहानी मिशन के मौजूदा संत राजेंदर सिंह जी ने फरमाया है कि मानव जीवन में प्रत्येक दिन मेमोरियल डे (स्मृति दिवस) होता है|Every day is a Memorial Day
उन्होंने बताया कि यूनाइटेड स्टेट्स आफ अमेरिका में हर साल मई में एक दिन ‘मेमोरियल डे’ (स्मृति दिवस) के रूप में मनाया जाता है, उन लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए जिन्होंने दूसरों के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया। अपनी जान कुर्बान करने वालों को सम्मानित करने के लिए इस दिन परेड, भाषण, और बलिदानियों की कब्रों पर जाना आम बात है। लेकिन इन महारथियों को साल में केवल एक दिन याद करने के बजाय हमें उन्हें प्रतिदिन याद करना चाहिए।
जब हम ‘मेमोरियल डे’ (स्मृति दिवस) के बारे में सोचते हैं, तो हम देखते हैं कि ऐसे भी कई लोग होंगे जिन्होंने दूसरों के लिए अपने जीवन का बलिदान तो दिया होगा, लेकिन जिनके बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण या रिकार्ड नहीं है। इन वीरों ने दूसरों की सहायता इसलिए नहीं की ताकि उनका नाम हो सके; उन्होंने तो ऐसा इसलिए किया क्योंकि सेवा और त्याग इंसानियत का एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं।
यह हमारी आंतरिक दिव्य प्रवृत्ति है कि हम नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा व सहायता करें। इसका अर्थ है कि हम अपने लिए कोई लाभ या ईनाम चाहे बिना दूसरों की सहायता करें। हम देखते हैं कि आज जिन्हें हम सम्मानित कर रहे हैं, उन्होंने किसी ईनाम के बारे में नहीं सोचा था। उन्होंने तो वो कार्य इसलिए किया क्योंकि वैसा ही करना उन्हें उचित लगा। इसी तरह, निष्काम भाव से सेवा इसलिए की जाती है क्योंकि वैसा ही करना सही और उचित होता है। जब हम किसी को तकलीफ़ या मुसीबत में देखते हैं, तो हमारे दिल में ईनाम पाने का ख़याल नहीं आता; हम तो बस आगे बढ़ते हैं और उस इंसान की मदद करते हैं।
यह आंतरिक दिव्य प्रवृत्ति हम सभी के भीतर मौजूद है। प्रभु का अंश होने के नाते हम सभी के अंदर वो दिव्यता विद्यमान है। इसी दिव्यता का एक भाग है सबसे प्रेम करना, जिसका मतलब है सभी को प्रभु के एक ही परिवार का सदस्य समझना। जिस प्रकार हम ज़रूरत पड़ने पर अपने परिवारजनों की सहायता करते हैं, उसी तरह हम दूसरों को भी अपने ही परिवार का सदस्य जानकर उनकी भी सहायता करने लगते हैं।

इस संसार में संतुष्टि प्राप्त करना

अधिकतर लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति में ही लगे रहते हैं। हमारी इच्छा एक कार ख़रीदने की हो सकती है; एक मकान ख़रीदने की हो सकती है; इतिहास या विज्ञान पढ़ने की हो सकती है; या इस संसार की किसी भी अन्य वस्तु से संबंधित हो सकती है। हमारा ध्यान इसी ओर रहता है कि हम अपनी इच्छाओं को पूरा कैसे करें।
हमारा जीवन इसी प्रकार गुज़रता रहता है जिसमें हम एक के बाद एक इच्छा को पूरा करने में लगे रहते हैं। वास्तविकता यह है कि इच्छाओं का तो कोई अंत होता नहीं। जैसे ही हमारी एक इच्छा पूरी होती है, तो दूसरी उसकी जगह उत्पन्न हो जाती है। वो पूरी करने के बाद कोई तीसरी इच्छा हमारे मन में जाग उठती है, और उसके बाद एक और, और उसके बाद एक और। इस तरह हमारा जीवन बस इन इच्छाओं को पूरा करने में ही गुज़र जाता है।
चूँकि इंसानी जीवन इच्छाओं की पूर्ति पर ही आधारित है, तो आवश्यकता है सही इच्छा रखने की। सबसे पहले तो हमें एक लक्ष्य निर्धारित कर लेना चाहिए। और सही लक्ष्य केवल प्रभु को पाना ही है – अपनी आत्मा का मिलाप परमात्मा में करवाना। हम अपनी प्रत्येक सांसारिक इच्छा को पूरा करने में ही अपनी मूल्यवान साँसें ज़ाया कर लेते हैं। अंत में हम देखते हैं कि इनमें से कोई भी इच्छा हमें स्थाई सुख, ख़ुशियाँ और संतुष्टि प्रदान नहीं कर पाई है। यदि हम अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप को जानने व परमात्मा को पाने की ही इच्छा रखेंगे, तो हम देखेंगे कि हमें किसी भी सांसारिक इच्छा की पूर्ति से कहीं अधिक ख़ुशी और संतुष्टि प्राप्त होगी।

शरीर की प्रयोगशाला में ध्यान के फार्मूले से ईश्वर को पाया जा सकता है: संत राजेंद्र सिंह जी महाराज

संत कृपाल रूहानी मिशन SKRM की अध्यात्मिक गद्दी के मौजूदा वारिस संत राजेंद्र सिंह जी महाराज अध्यात्मिक विज्ञानं की गंगा केवल अपने देश में ही नहीं वरन अमेरिका+कनाडा+और यूरोप में भी बहा रहे हैं|महाराज का मानना है कि ईश्वर को बाह्य भौतिक संसार के बजाय ध्यान +तप से अपने अन्दर ही तलाशना होगा| संत राजेंद्र सिंह जी महाराज ने नवीनतम उपदेश में अपने ही शरीर रुपी प्रयोगशाला में ध्यान का प्रयोग के फार्मूले भी बताये हैं |महाराज ने बताया है कि उनसे अक्सर ईश्वर के विषय में प्रश्न किये जाते हैं|आत्मा+रूह+जीवन के विषय में जिज्ञासू पूछते रहते हैं| परमाणु [ATOM] में से सूक्ष्म को तलाशने के लिए सभी यत्न किये जा रहे हैं|बेशक आज कल ईश्वरीय पदार्थ की खोज के लिए भौतिक वादी संसार में नित नए प्रयोग किये जा रहे हैं| शक्तिशाली टेलेस्कोप+और स्पेस शिप भी बना लिए गए हैं| ईश्वर की खोज की सफलता के प्रति विश्व में अभी भी प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है| लेकिन अबी तक हम लोग भौतिक वादी बाह्य संसार में ईश्वर के अस्तित्व को ढूंढ नही पाए हैं|इसीलिए प्रक्रति के रचियेता को को अपने अन्दर ही तलाशना होगा| इसके लिए संत+ महापुरुष सदियों से मार्ग दर्शन करते आ रहे हैं| संतो महापुरुषों ने ध्यान तप[ meditation ]से इष्ट देव को प्राप्त भी किया है|
संत राजेंद्र सिंह जी महाराज ने ध्यान +तप के विषय में ज्ञान देते हुए बताया कि कुछ लोग ध्यान को अपने शरीर और दिमाग की तंदरुस्ती के लिए केवल व्यायाम ही मानते हैंलेकिन संतों के अनुसार ध्यान ईश्वर की प्राप्ति का साधन है|
कुछ संतों के अनुसार शरीर रुपी मंदिर में ईश्वर का वास है| इसकी व्याख्या करते हुए संत महाराज ने बताया है कि चूंकि मानव शरीर में वास कर रही आत्मा स्वयम ईश्वर का ही सुक्ष स्वरुप है इसीलिए प्रत्येक जीव में ईश्वर का वास है जिसे देखने के लिए स्वयम के अन्दर ध्यान के माध्यम से झांकना होगा|
ध्यान प्रक्रियाको बेहद आसान बताते हुए संत राजेंद्र सिंह जी ने बताया कि सुविधाजनक एकांत स्थान पर अपनी ऑंखें बंद करके अपने अन्दर झांकना है |इस प्रक्रिया में दिमाग हमें अनेक विचारों से भटकाता है इसीलिए इस भटकाव से बचने के लिए आध्यामिक शब्दों [ spiritually charged words]को बार बार दोहराना होता है|प्रारम्भिक जिज्ञासूं को ज्योति ध्यान [Jyoti Meditation,]जरुरी है|इसके अंतर्गत अपने ईष्ट देव के नाम को दोहराना होता है|इस प्रक्रिया को रोजाना करने से इच्छा की पूर्ती होती है|
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गुरु मिले तो मुहब्बत के राज खुलते हैं , निजात मिलती है सारे गुनाह धुलते हैं: संत दर्शन सिंह जी महाराज

संत और महापुरुष पौराणिक काल से अपनी अमर वाणी में गुरु की महिमा का वर्णन करके समाज का मार्ग दर्शन करते आ रहे हैं |प्रस्तुत है ऐसे ही दो महापुरुषों की वाणी के कुछ शब्द
[१]गुरु बिन कभी न उतरे पार ।
नाम बिन कभी न होय उधार ।
शब्द : स्वामी शिवदयालसिंह जी महाराज
संत दर्शन सिंह जी महाराज ने भी अपने एक रूहानी शेर में फ़रमाया है :-
[२]गुरु मिले तो मुहब्बत के राज खुलते हैं ।
निजात मिलती है सारे गुनाह धुलते हैं ।।
भाव : स्वामीजी महाराज हमें समझाते हैं हमें काल के दायरे से बाहर निकलना है किसी गुरु के बिना हम ऐसा नहीं कर सकते । हमें या ऐसे गुरु की तलाश करनी चाहिए जो स्वयं रूहानियत के रास्ते पर चलता हो, एक ऐसा महापुरुष जो प्रभु के हुक्म से यहाँ भेजा गया हो ।ऐसा गुरु जब हमें परमात्मा के शब्द से जोड़ता है तो हमारा उद्धार संभव है
: स्वामी शिवदयालसिंह जी महाराज ,
रूहानी शायरी के शिरोमणि संत दर्शन सिंह जी महाराज,
प्रस्तुति राकेश खुराना