Ad

Tag: Sant Rajender Singh Ji Maharaj

संत राजिंदर सिंह जी महाराज का ६८ वां जन्मोत्सव२० सितम्बर को धूम धाम से मनाया जाएगा

[मेरठ]संत राजिंदर सिंह जी महाराज का ६८ वां जन्मोत्सव प्रत्येक वर्ष की भांति २० सितम्बर को धूम धाम से मनाया जाएगा |संत राजिंदर सिंह जी सावन कृपाल रूहानी मिशन+वर्ल्ड रिलीजन्स +साइंस आफ स्प्रिटुअलिटी के प्रमुख संत है|
मेरठ छावनी स्थित सावन कृपाल रूहानी मिशन के प्रांगण में २० सितम्बर को जन्मोत्सव मनाया जाएगा |मिशन के स्थानीय प्रधान सुरेन्द्र कपूर+मंत्री कृष्ण बजाज के अनुसार सांय चार बजे से प्रारम्भ होने वाले इस जन्मोत्सव में दर्शन अकेडमी के बच्चों + बाल सत्संग द्वारा भजन गायन होगा+प्रचारक द्वारा गुरु जी महाराज का सन्देश भी सुनाया जाएगा |अंत में गुरु का अटूट लंगर भी छकाया जाएगा

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj Preaches Meditation For Peace

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj Preaches Meditation For Peace
Head Sant of Science Of Spirituality And Sawan Kripal Ruhani Mission Rajinder Singh Ji Maharaj Preaches That Meditation Is The Appropriate Tool To Find Peace in a Troubled World
Replying To Question Sant Rajinder Singh Ji Maharaj Says Technology has knit the world together through the Internet+ social media+television+radio+emails+text messages. Thus, we can get instantaneous news reports of what is happening throughout the globe. On any given day we hear of Natural calamities Like Earthquakes+volcanoes+floods+hurricanes+tornadoes+tsunamis+fires, or people of all ages dying from disease+ accidents+ crime.
Those with a compassionate and sensitive heart feel the pain of the suffering that other people experience. When we feel other people’s pain we suffer. How can we find peace when there is so much sorrow in the world?
Since the purpose of our human life is to realize who we truly are as soul and realize the Divine who created all, we need to stay focused on that goal to achieve it in our lifetime. With time being short, we only have a limited number of years to achieve that goal. Thus, we need to make priorities so that we do not run out of time before we realize the Divine.
One way to do this is to choose wisely how to spend our time. Our first priority should be spending time in meditation. In meditation we find a place of peaceful retreat within us. During that time we are engulfed in bliss and joy far greater than any we know in this world. We are elevated to a place far removed from pain and sorrow.
When we come out of meditation, we are pulsating with loving energy and peace. We then can radiate it to others. We spread that peace by our very presence, bringing calm and relief into the lives of those around us. If each person were to meditate and radiate peace to others, it would not be long before peace would spread and bring relief from pain to people all over the world. While we cannot eliminate global catastrophes and pain in the world, we can bring solace and understanding to help others accept the plight of the world. We can then find peace ourselves in a troubled world and radiate that to others, giving them a balm to soothe their wounds.
Through meditation we can find inner peace and bring about outer peace in the world.
Question Raised Was
How can we find peace when daily the news reports on tragedies and troubles from around the world? We can find a calm retreat within, offering relief from the pains of life through meditation?

Divert Attention From Physical Body Into essence of God ,Which Is Immortal Soul:Sant Rajinder Singh Ji Maharaj

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj Preaches That There Is No Escape From Death For Physical Body So One Should Divert Attention From Mortal Body Into Immortal essence of God , Which Is Soul
Present Sant Of Sawan Kripal Ruhani Mission[SKRM] And Science of Spirituality, Maharaj Ji Describes The Secrets Of Human Life as under ” When my friends pass away it’s like a wake up call. I think about how fragile life is and wonder if I’m living my life as I should. But then things get busy and I forget. I get so caught up in the world it seems like death will happen to everyone but me.”Rajinder_Singh
Sant Maharaj Ji Says “A point comes in everyone’s life in which he or she realizes that the body will die, and the bodies of our loved ones will also die. There is no escape from this. We need to turn our attention from seeking immortality through the physical body into searching for eternity through identification with the soul”.
While Describing The Importance Of Soul Maharaj Ji Says “Most do not want to accept the fact that we are mortal at the physical level. Only those who realize the inevitability of death turn their attention to finding another way out of this suffering. They stop identifying with the body and start identifying with the soul”
“Saints and mystics are conscious of the realities of existence. They are aware that they are souls who have come from God. They know that when we identify with the soul, we will have a true spaceship that can escape the gravitational pull of this physical world. The soul is not made of matter; rather, it is made of spirit. The soul alone can soar beyond the physical realm into realms of spirit. Spirit is not destructible. It is made of the same essence of God and is eternal. If we could identify with the soul, we would not be bound to the chains of physical existence. There is no escape for the body from this bondage of life, but there is an escape for the soul.
How can we identify with the soul? Meditation is the way to peel off the coverings of the body. Just as we take off our coat, sweater, shirt, or blouse that cover our body, we can take off the layer of our physical body to uncover our soul. Meditation unveils our true self by removing our body covering. In this way, we can discover that we are not the body, but the soul enlivening it. destructible”

ध्यानाभ्यास में पारंगत होने पर दर्द और तकलीफ़ों से बचा जा सकता है, अंतर में सुख और शांति मिल सकती है:संत राजिंदर सिंह जी

साइंस आफ स्पिरिच्युएलिटी’ + सावन कृपाल रूहानी मिशन के संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने जीवन में तनाव को दूर करने के लिए नियमित ध्यानाभ्यास का उपदेश दिया |
संत महाराज ने अपने नवीनतम न्यूज लैटर में फ़रमाया है कि डाक्टर और वैज्ञानिक शरीर और मन के पारस्परिक संबंध और स्वास्थ्य पर प्रभाव का अध्ययन कर रहे हैं,|
चिकित्सकों ने यह पता लगाया है कि कुछ रोगों का हमारी मानसिक और भावनात्मक अवस्था के साथ सीधा संबंध होता है। उन्होंने पाया है कि जब भी हम मानसिक तनाव या भावनात्मक पीड़ा या बेहद निराशा के दौर
से गुज़रते हैं, तो विभिन्न रोगों के लिए हमारी प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर पड़ जाती है। हमें रोग होने की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि उस समय हमारा रोग-प्रतिरोधी तंत्र बेहतरीन स्थिति में नहीं रह जाता।
विज्ञान के अनुसार कुछ रोग, जैसे कि पाचन संबंधी विकार, साँस की बीमारियाँ, हृदयरोग, माइग्रेन सिरदर्द आदि, अक्सर तनाव के कारण ही उत्पन्न होती हैं। ध्यानाभ्यास कई तरीक़ों से हमारी मदद करता है। पहला, ये हमारे तनाव को कम करता है, और इस तरह हमें तनाव-संबंधी रोग होने की संभावना कम हो जाती है। आज के इस भागदौड़ वाले माहौल में, हमारा मन अक्सर कई तरह के तनावों और दबावों से जूझता रहता है। जीवन इतना अधिक जटिल हो चुका है कि लोगों के पास करने को तो बहुत कुछ है लेकिन उसे करने के लिए समय कम है। कुछ लोगों का काम ऐसा होता है जिसमें बहुत अधिक घंटे देने पड़ते हैं और जि़म्मेदारी बहुत होती है।
महाराज ने भौतिक वादी युग कि मृग तृष्णा के साइड इफेक्ट्स का वर्णन करते हुए बताया कि कुछ लोग दो-दो नौकरियाँ करके अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। दबाव ज़्यादा हो जाने से कई बार लोग गुस्से में रहने लगते हैं + वे चिड़चिड़े हो जाते हैं+ असंतुलित हो जाते हैं,+ हमेशा तनाव में रहते हैं।
वो ऐसा व्यवहार करने लगते हैं जोकि वो सामान्य परिस्थितियों में नहीं करते। कई बार वो अपनी निराशा या कुंठा अपने प्रियजनों पर ही निकालने लगते हैं और उन्हीं को तकलीफ़ पहुँचाने लगते हैं जिन्हें उन्हें सबसे अधिक प्यार देना चाहिए।
इन साइड इफेक्ट्स को दूर करने के लिए महाराज ने बताया कि ध्यानाभ्यास द्वारा हम मानसिक तनावों से उत्पन्न असंतुलन को ठीक कर सकते हैं। ध्यानाभ्यास में समय देने से हम अपने भीतर ही अपने लिए एक शांतिपूर्ण स्थान बनाते हैं, जहाँ हम अपनी मानसिक हालत को दोबारा ठीक और संतुलित कर सकते हैं। शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि ध्यानाभ्यास कर रहे लोगों के मस्तिष्क की तरंगें गहन शांति और आराम की अवस्था दर्शाती हैं। उनका मन शांत हो जाता है। ध्यान टिकाने से शरीर भी शांत होता है। यदि हम प्रतिदिन कुछ समय ध्यानाभ्यास में दें, तो हम देखेंगे कि हमारे तनाव में काफ़ी कमी आ गई है तथा हमारा स्वास्थ्य भी बेहतर हो गया है।ध्यानाभ्यास के समय तनाव कम होने के अलावा इसका प्रभाव बाद में भी रहता है। हम दिन भर की बाक़ी गतिविधियाँ करते हुए भी पहले से अधिक शांत रहते हैं। जैसे-जैसे हम ध्यान में अधिक अभ्यस्त होते जाते हैं, हम तनाव और संघर्षों के बीच भी शांत बने रहते हैं। हम अपनी प्रतिक्रियाओं पर अधिक नियंत्रण रख पाते हैं और दूसरों के झगड़ों के बीच भी संतुलित बने रहते हैं। दिन भर में जब हमारे अंदर तनाव कम रहता है, तो हमारी तनाव-संबंधी रोगों से ग्रसित होने की संभावना भी कम हो जाती है। दूसरा, ध्यानाभ्यास से हमारी चेतनता भी उच्चतर अवस्था में पहँुच जाती है और यदि हमें कोई रोग हो भी जाए तो हम अंदर से बहुत अधिक व्यथित नहीं होते। ध्यानाभ्यास से हम अंतर में ख़ुशियों और परमानंद की अनंत धारा के साथ जुड़ जाते हैं जो हमारा ध्यान बाहरी दुनिया के दुख-तकलीफ़ों से हटा देती है। ध्यानाभ्यास में पारंगत होने से हम अंतर में सुख और शांति के स्थान पर जा सकते हैं तथा शारीरिक कष्ट के पीड़ादायक प्रभावों से दूर रह सकते हैं।
हो सकता है कि हम प्रकृति के नियमों के विरुद्ध जाने पर हम बीमार पड़ जाएँ, लेकिन ध्यानाभ्यास के द्वारा हम शारीरिक दर्द के अनुभव से दूर हो सकते हैं तथा अंतर में शांति और आराम पा सकते हैं। मृत्यु-सम अनुभवों को देखें तो हम पाएँगे कि कई बार बेहद दर्द भरी दुर्घटनाओं में आ जाने वाले लोगों ने शरीर छोड़ दिया और उस दर्द से ऊपर उठ गए। वो अपने घायल शरीर को देख पा रहे थे, लेकिन वो किसी भी तरह के दर्द का अनुभव नहीं कर रहे थे जब तक कि वो शरीर में वापस नहीं आ गए। इस परिस्थिति से हमें थोड़ा सा अनुमान हो सकता है कि अगर हम ध्यानाभ्यास में पारंगत हो जाएँ तो हम दर्द और तकलीफ़ों से कितना बच सकते हैं।
हाल ही में चिकित्सा के क्षेत्र में यह पता लगाया जा रहा है कि जो रोगी आपरेशन से पहले और बाद में प्रार्थना व ध्यानाभ्यास करते हैं, वो उनसे किस प्रकार भिन्न होते हैं जो ऐसा नहीं करते। शुरुआती अध्ययन दर्शा रहे हैं कि आपरेशन से पहले और बाद में प्रार्थना व ध्यानाभ्यास करने वाले रोगी जल्द ही ठीक हो जाते हैं।
ध्यानाभ्यास में नियमित रूप से समय देने वाले लोगों में तनाव कम हो जाता है। कई अस्पताल और चिकित्सा केंद्र अब ध्यानाभ्यास की कक्षाएँ लगाते हैं ताकि तनाव को कम किया जा सके और कई रोगों को ठीक करने में सहायता हो सके। कई लोग विश्व भर में हमारे ‘साइंस आफ़ स्पिरिच्युएलिटी’ केंद्रों में सिखाए जाने वाली प्रारंभिक ज्योति ध्यानाभ्यास की विधि सीखने आते हैं ताकि अपने तनाव में कमी ला सकें।जैसे-जैसे आप ध्यानाभ्यास में पारंगत होते जाएँगे, आपको अंतर में बेहद शांति और ख़ुशी का अनुभव होगा। ऐसा होने से आपके तनाव में भी कमी आएगी। ध्यानाभ्यास तनाव को कम करने का और भीतर से शांत होने का अति प्रभावशाली उपाय है, जिससे हम अपने शरीर को भी आरोग्य बना सकते हैं।

Habits Are Hurdles In spiritual progress,These can be worked out by Meditation:Sant Rajender Singh Ji Maharaj

Science Of Spirituality and Sawan Kripal Ruhani mission Sant Rajender Singh Ji Maharaj categorized Habits in three parts and finds hard to break them
and These habits are [1] Helpful Habits
[2]Harmful Habits And some are even
[3] Useless Habits They are always hard to break. And Hurdles in the spiritual progress.Which can be worked out by New Habit Of Meditation .
Maharaj ji said “Some habits stand in the way of our spiritual progress. How many do we engage in that keep us from meditating? The mind is in the habit of thinking. When we are meditating, we do not want to be thinking. Yet, when we sit for meditation, our mind thinks it is a time to work out our problems, have creative thoughts, or plan what we are going to do.
Sant Maharaj said “We need to decide who is in control of our meditation time—is it our mind or our soul? We need to start a new habit, one in which, when we meditate, we fix our gaze with a still mind. If we do anything else, then we have given into the useless habit of our mind trying to spend time thinking during our meditation period. We have plenty of other time during the day to think. Why do we need to waste our meditation time thinking distracting thoughts? Thinking during meditation, instead of stilling our mind to enjoy the inner spiritual vistas of Light and Sound, is a useless habit that we can learn to break.
Sant Rajender Singh Ji has warned About useless Habits and categorizes them as hurdles in the way of spiritual progress. Maharaj said These useless Habits stand in the way of developing ethical virtues. We may be in the habit of being angry+ untruthful+ egotistic+ and selfish. These useless habits need to be broken in order to grow spiritually. For example, when someone says something to us that we do not like, are we in the habit of lashing out at the person with angry words or an angry tone of voice? Are we in the habit of giving into anger instead of letting sweetness flow from our lips? There are many things that people do and say throughout the day that are not to our liking. If we are in the habit of becoming angry with them, then how will we progress spiritually?
We need to develop the habit of being compassionate and understanding of other people’s needs and plights. Everyone is coming from a different place and has different problems. Rather than being angry, we can take a few moments to understand them. Once we get to the heart of their problem or point of view, we find that people have real difficulties in life and are in need of soothing balm to relieve their pain.
If we would consider other people’s feelings and needs with empathy, we could refrain from anger. We would kindly ask them what is their problem and what do they need so we could find a way to help and comfort them. If we walk through life taking care not to tread on a single human heart, we would find a solution for the useless habit of our anger.
Maharaj advised to develop the good habit of selfless service,and habit of saying “no” to requests for help, we can get into the habit of saying “yes.”
Many people throughout the world are addicted to harmful activities. These are habits that can harm them physically and mentally as well as hurt others. Some people are addicted to drugs+alcohol+ or smoking. A habit can become so engrained that the brain sets up pathways that depend upon these activities to make it feel good. Engaging in some of these activities is more dangerous to our health than other habits, because the chemicals we are putting into our body stimulate hormones that make us have good feelings; they take over the other healthy ways in which we can have good feelings. Thus, the brain and body become dependent upon chemicals to feel good instead of deriving happiness from healthy activities. Then, the brain needs more and more doses of these chemicals to feel as good as it once did with less.
To satisfy their addictions to drugs or alcohol, people may be driven to beg+ borrow+ and steal to get money to pay for them. It is better not to get involved with such addictions in the first place, and if we already are, to get professional help to break these habits. Meditation can help by providing experiences of joy and ecstasy through natural means by putting us in contact with the divine and blissful Light and Sound within. Then, we do not need to turn to chemical means to be happy.
Sant Rajender Singh Ji Said “If we introspect and reflect on our thoughts, words, and deeds each day, we can become aware of which habits we are falling victim to and any bad habits that need to be replaced with good ones. When we meditate, we can develop helpful habits so that those that are not good for us fall away. We can develop those habits that will lead us to the bliss and lasting happiness that are awaiting us when we come in contact with the spiritual realms within.”

मानव जीवन का उद्देश्य समझने के लिए प्रत्येक इंसान के जीवन में एक क्षण अवश्य आता है और जब यह क्षण आता है तब जीवन की पूरी शैली ही बदल जाती है :संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

मानव जीवन का उच्चतर उद्देश्य समझने के लिए प्रत्येक ईन्सान के जीवन में कभी न कभी एक क्षण अवश्य आता है और जब यह क्षण आता है तब जीवन की पूरी शैली ही बदल जाती है| यह उपदेश स्प्रिचुअल साईंस और सावन कृपाल रूहानी मिशन के संत राजेंदर सिंह जी महाराज ने दिया| संत राजेंदर सिंह जी महाराज ने फरमाया कि प्रत्येक इंसान के जीवन में ऐसा क्षण आता है जबकि उसे कोई ऐसा अनुभव होता है जो उसे एहसास करवा देता है कि इस संसार में आने का उसका कोई उच्चतर मक़सद है। अचानक, रोज़ाना के सामान्य कार्यों, जागना, तैयार होना, काम पर जाना, खाना, सोना आदि, के बीच ही उसे ऐसा महसूस होता है कि जीवन में इससे बढ़कर भी कुछ है। वो पल तब आ सकता है जब हम छोटे बच्चे हों, या जब हम किशोरावस्था से गुज़र रहे हों, या बाद में हमारे वयस्क जीवन के दौरान। कुछ लोगों के जीवन में यह क्षण तब आता है जब वो युवा वयस्क हों, तो कुछ के जीवन में वृद्धावस्था के दौरान। यह पल जब भी आता है, हमें परिवर्तित कर देता है। अचानक हम सोचने लगते हैं कि हम कौन हैं, हम यहाँ क्यों आए हैं, मृत्यु के बाद हम कहाँ जाते हैं, तथा इस जीवन का उद्देश्य क्या है।
किसी भी संत-महापुरुष की जीवनी पढि़ए और आप देखेंगे कि उनके साथ कोई जिन्दगी को बदल देने वाली घटना हुई, जिससे कि उनकी आध्यात्मिक तलाश की शुरुआत हुई। एक बार जब हमारे भीतर ये ज्वलंत प्रश्न जाग उठते हैं, फिर हम इनसे ध्यान नहीं हटा पाते। हम तब तक बेचैन रहते हैं जब तक हमें इन सवालों के जवाब न मिल जायें।
इस जागृति से पूर्व हमारी ऐसी अवस्था होती है मानो हम सो रहे हों। हमारी आत्मा युगों-युगों से गहरी नींद में सोई हुई है। हमारी शुरुआत प्रभु की गोद में हुई थी, पर हम इस भौतिक संसार के आकर्षणों में फँसकर सब कुछ भुला बैठे हैं। हम अपने सच्चे घर को भूल चुके हैं। हम गहरी नींद की या भ्रम की अवस्था में जी रहे हैं, तथा भूल चुके हैं कि हम आत्मा हैं, प्रभु का अंश हैं। और इस बात से अनजान हैं कि हमारा सच्चा स्वरूप आत्मिक है और हम सृष्टिकर्ता का ही एक अंश हैं |
|

साइंस आफ़ स्पिरिच्युएलिटी के ‘वैजी फ़ैस्ट’में 25,000 से भी अधिक लोगों ने भाग लेकर शाकाहार के प्रति वैश्विक स्तर पर बढ रहे रुझान का प्रदर्शन किया

साइंस आफ़ स्पिरिच्युएलिटी के ‘वैजी फ़ैस्ट’ (शाकाहार महोत्सव) में 25,000 से भी अधिक लोगों ने भाग लेकर शाकाहार के प्रति वैश्विक स्तर पर बढ रहे रुझान का प्रदर्शन किया|
साइंस आफ़ स्पिरिच्युएलिटी के द्वारा इस माह नेपरविल, इलिनोई, में ‘वैजी फ़ैस्ट’ (शाकाहार महोत्सव) का आयोजन किया गया जिसमे 25,000 से भी अधिक लोगों ने भाग लिया। स्पष्ट है कि दुनिया भर में शाकाहार में लोगों की रूचि बढ़ रही है, तथा शाकाहारी जीवनशैली के प्रति लोगों के उत्साह में वृद्धि हो रही है।

साइंस आफ़ स्पिरिच्युएलिटी के ‘वैजी फ़ैस्ट’में 25,000 से भी अधिक लोगों ने भाग लेकर शाकाहार के प्रति वैश्विक स्तर पर बढ रहे रुझान का प्रदर्शन किया

साइंस आफ़ स्पिरिच्युएलिटी के ‘वैजी फ़ैस्ट’में 25,000 से भी अधिक लोगों ने भाग लेकर शाकाहार के प्रति वैश्विक स्तर पर बढ रहे रुझान का प्रदर्शन किया

साइंस आफ़ स्पिरिच्युएलिटी और सावन कृपाल रूहानी मिशन के मौजूदा संत राजेंदर सिंह जी ने अपने जीवन के संस्मरण को सांझा[Share]करते हुए फ़रमाया कि इस सप्ताहांत कार्यक्रम की लोकप्रियता ने मुझे याद दिला दिया कि आज हालात उस वक्त से कितना अधिक बदल चुके हैं जब मैं 1968 में ‘इलिनोई इंस्टीट्यूट आफ़ टैक्नोलाजी’ में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भारत से यूनाइटेड स्टेट्स आया था। शिकागो में एक शाकाहारी विद्यार्थी होने के नाते मुझे याद है कि जब भी हम बाहर रेस्टोरंट में खाना खाते थे, तो हम केवल सलाद, या ग्रिल्ड चीज़ सैंडविच, या पिज़्ज़ा, या पास्ता ही खा पाते थे। आज हम देखते हैं कि शहर के रेस्टोरेंटों में कई तरह के शाकाहारी, वीगन, आर्गेनिक, तथा कच्चे खाद्य पदार्थों के व्यंजन मिलते हैं, और कुछ रेस्टोरेंटों में तो सिर्फ़ इसी तरह का भोजन ही मिलता है।
आज लोगों में शाकाहार के शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक लाभों को लेकर अधिक जागृति आ चुकी है।
मेडिकल शोधकर्ता और डाक्टर भी आज बेहतर शारीरिक स्वास्थ्य के लिए शाकाहारी और वीगन (ऐसा आहार जिसमें दूध या दुग्ध पदार्थ शामिल न हों) आहार-पद्धतियों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। वे बता रहे हैं कि शाकाहारी या शाक-आधारित भोजन खाने से हृदयरोग, पक्षाघात, कई तरह के कैंसर, और अन्य कई बीमारियों से बचा जा सकता है।
आज दुनिया भर के प्रसिद्ध शाकाहारियों की सूची में बढ़ोतरी होती जा रही है, और इससे शाकाहारी भोजन पद्धतियों की ओर लोगों का ध्यान अधिक गया है। ऐसे लोग अपने आसपास के लोगों को भी प्रेरणा देते हैं, जो धीरे-धीरे ख़ुद महसूस करने लगते हैं कि माँस, मछली, मुर्गी, अंडों आदि के बिना भी जीवित रहा जा सकता है, और वास्तव में अधिक स्वस्थ रहा जा सकता है। इतिहास पर नज़र डालें, तो प्रत्येक काल में जीवन के हरेक क्षेत्र से प्रसिद्ध शाकाहारी हमारे सामने आए हैं, विभिन्न धर्मों के संस्थापकों से लेकर अनेक दार्शनिकों, मानवतावादियों, लेखकों, सामाजिक नेताओं, संगीतकारों, कलाकारों, खिलाडि़यों, और अन्य प्रसिद्ध लोगों तक।
आध्यात्मिक रूप से भी शाकाहार के अनेक लाभ हैं। सबसे पहले तो यह अहिंसा के आध्यात्मिक सिद्धांत के अनुरूप है। दूसरे, शाकाहारी भोजन हमें वो आंतरिक शांति प्राप्त करने में मदद करता है जोकि ध्यानाभ्यास के लिए आवश्यक होती है। शाकाहारी और वीगन आहार उग्र नहीं होते और हमें शांति प्रदान करते हैं, इसलिए जब हम ध्यान टिकाने के लिए बैठते हैं तो हमारा मन अधिक शांत होता है। इससे हम बेहतर तरीक़े से अंतर में एकाग्र हो पाते हैं। ध्यानाभ्यास से हमें मिली शांति फिर हमसे होकर दूसरों तक भी पहुँचती है, और इस तरह हम विश्व प्रेम और शांति में अपना योगदान दे पाते हैं।

प्रभु सृष्टि के नेटवर्क के मास्टर कम्प्यूटर को चला रहे हैं जिससे जुडी हमारी आत्माएँ छोटे-छोटे व्यक्तिगत कम्प्यूटर हैं : संत राजिंदर सिंह जी महाराज

प्रभु सृष्टि के नेटवर्क के मास्टर कम्प्यूटर को चला रहे हैं जिससे जुडी हमारी आत्माएँ छोटे-छोटे व्यक्तिगत कम्प्यूटर हैं
:साईंस आफ स्प्रिचुअलिती [Science of Spirituality ] के परम पूज्य संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने मानव जीवन को प्रभु के लिए एक खुली किताब बताते हुए हर समय अच्छे से अच्छा व्यवहार करने की और सद्गुण दर्शाने का उपदेश दिया है| महाराज आज कल शिकागो में हैं|उन्होंने फ़रमाया कि प्रभु इस संपूर्ण सृष्टि के नेटवर्क के मास्टर कम्प्यूटर को चला रहे हैं और हमारी आत्माएँ इस नेटवर्क से जुड़े छोटे-छोटे व्यक्तिगत कम्प्यूटर हैं। जो कुछ भी हम सोचते, कहते, और करते हैं, वो सब प्रभु को पता चल जाता है| सावन कृपाल रूहानी मिशन की गद्दी के मौजूदा वारिस परम पूज्य संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने फ़रमाया है कि प्रभु सदा हमारे साथ रहते हैं लेकिन कई लोग इस सच्चाई से अनजान रहकर ही जीवन गुज़ार देते हैं |यदि हम दिन भर में दूसरों के साथ अपने व्यवहार की जाँच करें,तो हम देखेंगे कि हम उस वक्त अलग ढंग से बर्ताव करते हैं जब हमें लगता है कि कोई हमें देख रहा है। हम उस समय बेहतर ढंग से व्यवहार करते हैं जब हमें लगता है कि कोई अधिकारी, या कोई वरिष्ठ कर्मचारी, या कोई ऐसा व्यक्ति जिसे हम प्रभावित करना चाहते हैं,हमें देख रहा है। लेकिन अगर हमें पता चल जाए कि प्रभु हर समय हमें देख रहे हैं तो?तब क्या हम अपने व्यवहार में सद्गुणों को नहीं ढालेंगे?
महाराज ने मानव प्रवर्ती को उजागर करते हुए कहा कि मनुष्य का यह स्वभाव है कि वो तब अच्छे से अच्छा व्यवहार करने की कोशिश करता है जब उसे लगता है कि कोई और उसे देख रहा है। जब हम आफि़स में होते हैं,या अपने पड़ोसियों और मित्रों के साथ होते हैं, तब क्या हम इस तरह का व्यवहार नहीं करते कि सभी हमें एक अच्छा व्यक्ति समझें? यदि हमारे अंदर कोई बुरी आदतें या दुर्गुण हैं, तो क्या हम उन्हें दूसरों से छुपाने की कोशिश नहीं करते?
यदि हमारी समझ में आ जाए कि जिन बातों को हम दूसरों से छुपा रहे हैं वो प्रभु के लिए एक खुली किताब हैं, तो शायद हम हर समय अच्छे से अच्छा व्यवहार करने की और सद्गुण दर्शाने की ही कोशिश करेंगे।
लोग पूछते हैं, “प्रभु कहाँ हैं?” संत-महापुरुष हमें बताते हैं कि प्रभु हमारे भीतर ही हैं। हम जहाँ भी रहें या जो कुछ भी करें, प्रभु हमें देख रहे होते हैं। प्रभु ही वो ताक़त है जो हमें जान दे रही है। इसी ताक़त या सत्ता ने हमें जिन्दगी दी है। भौतिक पदार्थ से बना हमारा यह शरीर हमारा असली आपा नहीं है। जो ताक़त इस शरीर को चला रही है, वो परमात्मा की ताक़त है। उसी सर्वव्यापी ताक़त का एक अंश, यानी हमारी आत्मा, इस शरीर के अंदर मौजूद है। हमारी आत्मा वास्तव में परमात्मा की ही एक बूंद है। यह प्रभु का ही अंश है। परमात्मा का अंश होने के नाते जो कुछ भी हमारी आत्मा करती है, वो परमात्मा को अपने आप ही पता चल जाता है।

हम इसे एक कम्प्यूटर नेटवर्क के समान समझ सकते हैं। एक नेटवर्क में मास्टर या प्रमुख कम्प्यूटर अन्य सभी कम्प्यूटरों से जुड़ा होता है। मास्टर कम्प्यूटर को चलाने वाला व्यक्ति एक ही समय में देख सकता है कि उससे जुड़े सभी अलग-अलग कम्प्यूटरों पर क्या-क्या चल रहा है। हो सकता है कि उन अलग-अलग कम्प्यूटरों को चलाने वाले व्यक्तियों को यह पता ही न हो कि मास्टर कम्प्यूटर चलाने वाला व्यक्ति उनकी हरेक कार्यवाही को देख सकता है। अगर उन्हें पता चल जाए कि कोई उनके ई-मेल्स और टैक्स्ट मैसेज आदि देख रहा है, तो वे सावधान हो जायेंगे और उचित ई-मेल्स ही भेजेंगे। लेकिन जिन्हें यह न पता हो, वे शायद ऐसी बातें भी लिख देंगे जोकि वे नहीं चाहते कि किसी और को पता चलें।

इसी प्रकार, प्रभु इस संपूर्ण सृष्टि के नेटवर्क के मास्टर कम्प्यूटर को चला रहे हैं और हमारी आत्माएँ इस नेटवर्क से जुड़े छोटे-छोटे व्यक्तिगत कम्प्यूटर हैं। जो कुछ भी हम सोचते, कहते, और करते हैं, वो सब प्रभु को पता चल जाता है। यदि हम इस बात को अच्छी तरह से समझ जायें कि प्रभु हर वक्त हमें देख रहे हैं, तो हम हर समय अच्छा व्यवहार ही करेंगे। यदि हम जान जायें कि प्रभु हमें देख रहे हैं, तो यक़ीनन हमारे जीवन में बड़ा भारी परिवर्तन आ जाएगा।
यदि हमें पता हो कि प्रभु हमारे हरेक विचार और बोल को सुन रहे हैं, और हमारे प्रत्येक कार्य को देख रहे हैं, तो ज़रा सोचिए कि कितनी जल्दी हमारे व्यवहार में सुधार आ जाएगा। हम बेहद सतर्क रहेंगे कि हमसे अहिंसा, सच्चाई, पवित्रता, और नम्रता जैसे सद्गुणों के क्षेत्रों में कोई ग़लती न हो। यदि हम अपनी कमियों को दूर कर पायेंगे, तथा ध्यानाभ्यास और निष्काम सेवा में नियमित रूप से समय देंगे, तो हम बेहद तेज़ी से आध्यात्मिक तरक्क़ी कर पायेंगे।

स्वस्थ आत्मा के लिए स्प्रिचुअल फिटनेस+सिमरन+और प्रभु की मीठी याद रूपी नैतिक मूल्यों को मन में बैठाना आवश्यक हैSANT RAJENDER SINGH

साईंस आफ स्प्रिचुअल्स के संत राजेंद्र सिंह जी महाराज ने कहा कि जिस प्रकार शारीरिक स्वस्थता के लिए लचीलापन [FLEXIBILITY]+व्यायाम[ Aerobics ]+वजन ट्रेनिंग की बेहद जरुरत होती है|ठीक उसी प्रकार स्वस्थ आत्मा के लिए स्प्रिचुअल फिटनेस+सिमरन+और प्रभु की मीठी याद रूपी नैतिक मूल्यों को मन में बैठाना आवश्यक है| इसके साथ ही ध्यान से हमें हमारे लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता मिलती है|शिकागो से दिल्ली आते समय संत राजेंद्र सिंह महाराज ने युरोपियन समाज के लोगों स इभी मुलाक़ात करके उनके प्रश्नों के उत्तर भी दिए और अपने अमृत वचनों से सभी की जिज्ञासा भी शांत की

दूसरों के कल्याणार्थ किये गए बलिदान को केवल मेमोरियल डे पर ही नही वरन प्रति दिन याद करना चाहिए

अध्यात्मिक विज्ञानं और सावन कृपाल रूहानी मिशन के मौजूदा संत राजेंदर सिंह जी ने फरमाया है कि मानव जीवन में प्रत्येक दिन मेमोरियल डे (स्मृति दिवस) होता है|Every day is a Memorial Day
उन्होंने बताया कि यूनाइटेड स्टेट्स आफ अमेरिका में हर साल मई में एक दिन ‘मेमोरियल डे’ (स्मृति दिवस) के रूप में मनाया जाता है, उन लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए जिन्होंने दूसरों के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया। अपनी जान कुर्बान करने वालों को सम्मानित करने के लिए इस दिन परेड, भाषण, और बलिदानियों की कब्रों पर जाना आम बात है। लेकिन इन महारथियों को साल में केवल एक दिन याद करने के बजाय हमें उन्हें प्रतिदिन याद करना चाहिए।
जब हम ‘मेमोरियल डे’ (स्मृति दिवस) के बारे में सोचते हैं, तो हम देखते हैं कि ऐसे भी कई लोग होंगे जिन्होंने दूसरों के लिए अपने जीवन का बलिदान तो दिया होगा, लेकिन जिनके बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण या रिकार्ड नहीं है। इन वीरों ने दूसरों की सहायता इसलिए नहीं की ताकि उनका नाम हो सके; उन्होंने तो ऐसा इसलिए किया क्योंकि सेवा और त्याग इंसानियत का एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं।
यह हमारी आंतरिक दिव्य प्रवृत्ति है कि हम नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा व सहायता करें। इसका अर्थ है कि हम अपने लिए कोई लाभ या ईनाम चाहे बिना दूसरों की सहायता करें। हम देखते हैं कि आज जिन्हें हम सम्मानित कर रहे हैं, उन्होंने किसी ईनाम के बारे में नहीं सोचा था। उन्होंने तो वो कार्य इसलिए किया क्योंकि वैसा ही करना उन्हें उचित लगा। इसी तरह, निष्काम भाव से सेवा इसलिए की जाती है क्योंकि वैसा ही करना सही और उचित होता है। जब हम किसी को तकलीफ़ या मुसीबत में देखते हैं, तो हमारे दिल में ईनाम पाने का ख़याल नहीं आता; हम तो बस आगे बढ़ते हैं और उस इंसान की मदद करते हैं।
यह आंतरिक दिव्य प्रवृत्ति हम सभी के भीतर मौजूद है। प्रभु का अंश होने के नाते हम सभी के अंदर वो दिव्यता विद्यमान है। इसी दिव्यता का एक भाग है सबसे प्रेम करना, जिसका मतलब है सभी को प्रभु के एक ही परिवार का सदस्य समझना। जिस प्रकार हम ज़रूरत पड़ने पर अपने परिवारजनों की सहायता करते हैं, उसी तरह हम दूसरों को भी अपने ही परिवार का सदस्य जानकर उनकी भी सहायता करने लगते हैं।

इस संसार में संतुष्टि प्राप्त करना

अधिकतर लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति में ही लगे रहते हैं। हमारी इच्छा एक कार ख़रीदने की हो सकती है; एक मकान ख़रीदने की हो सकती है; इतिहास या विज्ञान पढ़ने की हो सकती है; या इस संसार की किसी भी अन्य वस्तु से संबंधित हो सकती है। हमारा ध्यान इसी ओर रहता है कि हम अपनी इच्छाओं को पूरा कैसे करें।
हमारा जीवन इसी प्रकार गुज़रता रहता है जिसमें हम एक के बाद एक इच्छा को पूरा करने में लगे रहते हैं। वास्तविकता यह है कि इच्छाओं का तो कोई अंत होता नहीं। जैसे ही हमारी एक इच्छा पूरी होती है, तो दूसरी उसकी जगह उत्पन्न हो जाती है। वो पूरी करने के बाद कोई तीसरी इच्छा हमारे मन में जाग उठती है, और उसके बाद एक और, और उसके बाद एक और। इस तरह हमारा जीवन बस इन इच्छाओं को पूरा करने में ही गुज़र जाता है।
चूँकि इंसानी जीवन इच्छाओं की पूर्ति पर ही आधारित है, तो आवश्यकता है सही इच्छा रखने की। सबसे पहले तो हमें एक लक्ष्य निर्धारित कर लेना चाहिए। और सही लक्ष्य केवल प्रभु को पाना ही है – अपनी आत्मा का मिलाप परमात्मा में करवाना। हम अपनी प्रत्येक सांसारिक इच्छा को पूरा करने में ही अपनी मूल्यवान साँसें ज़ाया कर लेते हैं। अंत में हम देखते हैं कि इनमें से कोई भी इच्छा हमें स्थाई सुख, ख़ुशियाँ और संतुष्टि प्रदान नहीं कर पाई है। यदि हम अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप को जानने व परमात्मा को पाने की ही इच्छा रखेंगे, तो हम देखेंगे कि हमें किसी भी सांसारिक इच्छा की पूर्ति से कहीं अधिक ख़ुशी और संतुष्टि प्राप्त होगी।