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रूहानी मिशन के संत दर्शन सिंह जी की २७ वी पूण्य बरसी पर भावभीनी श्रद्धांजलि

sant Darshan Singh Ji

sant Darshan Singh Ji

[मेरठ,यूपी]रूहानी सत्संग सावन आश्रम में दयाल पुरुष संत दर्शन सिंह जी की २७ वी पूण्य बरसी पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई|इस अवसर पर भंडारा और मीठे पानी के छबील[प्याऊ] भी लगाए गए |
श्रद्धालुजनों ने संत जी के साथ अपने अनुभवों को सांझा किया| और उनके प्रेरणादायक उपदेशों का वर्णन किया | सावन कृपाल रूहानी मिशन और साइंस ऑफ़ स्प्रिचुअलिटी के प्रभारी संत राजिंदर सिंह जी का वीडियो सत्संग भी चलाया गया |एस के आर एम के विश्व भर में २००० से अधिक ध्यान केंद्र हैं जिसका अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय अमेरिका में स्थापित है |

संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने निराशा पर विजय पाने के लिए ध्यानाभ्यास कामार्ग दिखाया

[नई दिल्ली]संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने निराशा पर विजय और संतोष पाने के लिए ध्यानाभ्यास का उपदेश दिया |महाराज संत कृपाल रूहानी मिशन के प्रभारी संत हैं |
संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने कहा के “हम सोचते हैं कि बाक़ी सब लोग ख़ुश हैं और केवल हमको ही मुसीबतों और परेशानियों ने घेरा हुआ है। हम अपने भाग्य को कोसते रहते हैं, और यह सोच-सोचकर निराशा के गर्त में गिर जाते हैं कि हम तो दुखों के सागर में डूबे हुए हैं जबकि बाक़ी सभी ख़ुशियों से भरपूर जीवन बिता रहे हैं। जो बात हम समझ नहीं पाते, वो यह है कि हरेक व्यक्ति को किसी न किसी समस्या ने जकड़ा हुआ है।हमें लगता है कि दूसरों के पास हमसे ज़्यादा ह+हमें लगता है कि दूसरों की नौकरियाँ बेहतर हैं+दूसरों का स्वास्थ्य हमसे बेहतर है+ दूसरों के रिश्ते हमसे बेहतर हैं+ हम दूसरों की ओर देखने में ही समय नष्ट कर देते हैं और सोचते रहते हैं कि काश हमारे पास भी वो सबकुछ होता जो उनके पास है।
बहुत कम लोगों का यह एहसास होता है कि सभी के जीवन में भी कोई न कोई परेशानी अवश्य होती है। यदि हम दूसरों के जीवन को क़रीब से देखें, तो हमें पता चलेगा कि वे तो शायद हमसे भी अधिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। अगर हम उनसे कहें कि आइए हम अपनी समस्याएँ आपस में अदल-बदल कर लें, तो हम पाएँगे कि अधिकतर लोग अपनी ख़ुद की समस्याओं से ही निपटना चाहेंगे।
यह सोचने के बजाय कि दूसरे कितने सुखी हैं, हमें उन देनों की ओर ध्यान देना चाहिए जो हमें अपने जीवन में मिली हैं। जिस प्रकार हम प्रभु से शिकायतें करने में इतना सारा समय लगा देते हैं, उसी प्रकार हमें प्रभु के उपहारों को याद करने और उनका शुक्राना करने में भी समय बिताना चाहिए। हमें उन सारे दिनों को याद करना चाहिए जब हमारा स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक रहा। हमें उन सभी दिनों को याद करना चाहिए जब हमारे पास पर्याप्त धन रहा कि हम अपने सिरों पर छत, पेट में भोजन, और शरीर पर वस्त्र रख सके। हमें अपने परिवार के सदस्यों और प्रियजनों को मिली देनों को भी याद करना चाहिए। हमें प्रभु द्वारा मिले आध्यात्मिक उपहारों को भी याद करना चाहिए। यदि हम किसी ऐसे पूर्ण सत्गुरु की शरण में पहुँच चुके हैं जिन्होंने हमें ध्यानाभ्यास की विधि सिखाकर अंतर में प्रभु की ज्योति और श्रुति के साथ जोड़ दिया है, तो हमें प्रभु को धन्यवाद देना चाहिए। यदि हमें किसी पूर्ण संत की संगति में समय बिताने का और उनसे आध्यात्मिक जागृति प्राप्त करने का सौभाग्य मिला है, तो इसके लिए हमें प्रभु का शुक्राना करना चाहिए।
हममें से हरेक के जीवन में अच्छी चीज़ें भी होती हैं और परेशानियाँ भी। इस सच्चाई से तो कोई भी बच नहीं सकता। इसीलिए हमें यह नहीं लगना चाहिए कि दूसरों का जीवन हमसे अधिक आसान या बेहतर है। हरेक व्यक्ति को अपने हिस्से की मुसीबतें और कष्ट सहने ही पड़ते हैं।
संतोष का विकास करने का एक तरीक़ा है ध्यानाभ्यास में समय बिताना ताकि हम आंतरिक आनंद का अनुभव कर सकें। हमें अपने जीवन में होने वाली अच्छी चीज़ों की ओर ही ध्यान देना चाहिए और उनके लिए प्रभु का शुक्रगुज़ार होना चाहिए। हमें परेशानियों को जीवन का एक हिस्सा ही मानना चाहिए, और यह भी समझना चाहिए कि दूसरे भी किसी न किसी परेशानी से अवश्य गुज़र रहे होते हैं। यदि हम ऐसा कर सकें, तो हम देखेंगे कि हम दुख, निराशा, और अवसाद की भावनाओं से आसानी से बाहर आ सकेंगे तथा जीवन के प्रति संतुष्टिदायक रवैया रख पाएँगे, और इस तरह हमेशा ख़ुश रहने के रहस्य को जान जाएँगे।

प्रभु के रचनात्मक कौशल से मिले असीम उपहारों के लिए हमें प्रभु का शुक्राना अदा करना चाहिए:संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

[नई दिल्ली]संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने कहा कि विकसित देशों के भी वैज्ञानिक केवल उन चीज़ों की खोज मात्र ही कर रहे हैं जो प्रभु द्वारा पहले ही बनाई जा चुकी हैं इसीलिए प्रभु के रचनात्मक कौशल की और से हमें दिए गए असीम उपहारों के लिए हमें प्रभु का शुक्राना अदा करना चाहिए।\संत राजिंदर सिंह जी साइंस आफ स्प्रिच्युअलिटी और सावन कृपाल रूहानी मिशन के प्रभारी संत हैं|
पिछले सप्ताह विश्व के कुछ हिस्सों में थैंक्सगिविंग (धन्यवाद दिवस) का त्यौहार मनाया गया। इस पर्व पर हम अपने जीवन की हरेक अच्छी चीज़ के लिए प्रभु को धन्यवाद देते हैं, तथा बुरी चीज़ों को भूल जाते हैं और माफ़ कर देते हैं।
कृतज्ञता या शुक्राने का भाव हमारे अंदर प्रभु की बनाई हुई इस अद्भुत सृष्टि को देखकर भी उत्पन्न होता है। पश्चिमी देशों की मानसिकता आध्यात्मिक होने के बजाय वैज्ञानिक और भौतिक अधिक है। परंतु, विज्ञान के लिहाज़ से भी, हम इस बात पर चमत्कृत रह जाते हैं कि यह सृष्टि कितनी भव्य और शानदार है। वैज्ञानिकों को अपनी खोजों और अन्वेषणों के लिए नोबल अवाॅर्ड से सम्मानित किया जाता है, लेकिन अगर हम इस बारे में ध्यान से सोचें तो समझ जायेंगे कि वैज्ञानिक तो केवल उन चीज़ों की खोज मात्र ही कर रहे हैं जो प्रभु द्वारा पहले ही बनाई जा चुकी हैं।
प्रभु द्वारा रचित धरती के सबसे छोटे पौधे से लेकर सबसे बड़े पशु के अंदर ऐसा कुछ न कुछ ज़रूर है जो बाक़ी संसार के लिए लाभदायक होता है। धरती के हरेक प्राणी के अंदर जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण ऐसी कोई न कोई चीज़ अवश्य है जो इस संसार को बाक़ी जीवों के लिए बेहतर बना सकती है।
प्रभु के रचनात्मक कौशल की और हमें दिए गए उपहारों की कोई सीमा नहीं है, जिनके लिए हमें उनका शुक्राना अदा करना चाहिए।

Meditate for SomeTime Daily And Enjoy Brilliant Godly Lights Forever:Sant Rajinder Singh Ji

[New Delhi] Meditate for some time daily And enjoy Brilliant Godly Lights Forever :Sant Rajinder Singh Ji Maharaj
The Spiritual Guru Sant Rajinder Singh Ji Maharaj Inspires To Meditate And Light The Soul
Head Guru Of Science Of Spirituality And Sawan Kripal Ruhani Mission Sant Rajinder Singh Ji Maharaj ,While Showing the importance of festivals ,says that The festival of Diwali, or “The Festival of Lights,” is a holiday in which families light lamps, which illumine the night.On Diwali, it is traditional to light candles and lamps But It is a time to reflect upon the importance of lighting our inner lamps—the light of the soul.
That light within us is the Light and Sound of God. Once lit it burns forever.The Light of God is within.
By meditating daily, we can see for ourselves the Light of God burning within. As we meditate and go within, we see the same Light of God that shines in us glowing in all other people as well. That sense of unity breaks down the outer divisions that typically divide people. Such holidays which are celebrated as one family are an expression of our sense of oneness both internally and externally.
This holiday is a time to remember to not only enjoy the outer lights but to go within to enjoy the inner Lights. Brilliant lights await us within.We need only to sit in meditation for some time daily to enjoy them.

संत राजिंदर सिंह जी महाराज के ६८ वें जन्मोत्सव की खुशियाँ संगत ने लुटाई

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj BIRTH Day Celebration

Sant Rajinder Singh Ji Maharaj BIRTH Day Celebration

[मेरठ]संत राजिंदर सिंह जी महाराज का ६८ वां जन्मोत्सव प्रत्येक वर्ष की भांति धूम धाम से मनाया गया |संत राजिंदर सिंह जी सावन कृपाल रूहानी मिशन+वर्ल्ड कौंसिल रिलीजन्स +साइंस आफ स्प्रिटुअलिटी के प्रमुख संत है|
मेरठ छावनी स्थित सावन कृपाल रूहानी मिशन के रूहानी सत्संग सावन आश्रम के प्रांगण में जन्मोत्सव मनाया गया |प्रचारक गजराज पाल ने महाराज की प्रेरणा दायक जीवनी पर प्रकाश डाला |शिकागो से प्रसारित महाराज जी का सन्देश श्रद्धाभाव से सुना गया |अपने वीडियो सन्देश में महाराज ने कहा कि मानव जब शरीर धारण करता है तब उसे जन्म कहा जाता है|खुशियाँ मनाई जाती है +मिठाइयां दी जाती है और अपने सेज सम्बन्धियों के साथ प्रसन्नता बांटी जाती है |ऐसा खुशियों भरा व्यवहार प्रत्येक दिन मनाना चाहिए क्योंकि प्रत्येक दिन हम जब सो कर जागते हैं तो वोह हमारा नया जन्म होता है| इसीलिए प्रत्येक दिन को जन्म दिन कि तरह मनाया जाना चाहिए| उन्होंने मानव जीवन को जग को सुगन्धित करने वाले गुलाब और जग को प्रकाश देने वाले चिराग की भन्ति ढालने का भी आह्वाहन किया रात्री ९ बजे हजारों की संख्या में एकत्रित प्रत्येक आयुवर्ग की संगत ने नाच नाच कर एक दूसरे को महाराज के जन्म दिन की बधाई बांटी
मिशन के स्थानीय प्रधान सुरेन्द्र कपूर +कृष्ण बजाज के सञ्चालन में दर्शन अकेडमी के बच्चों+बाल सत्संग ने भजन गायन से सांगत को निहाल किया + |अंत में गुरु का अटूट लंगर भी छकाया गया |
गौरतलब है के संत राजिंदर सिंह जी महाराज सम्पूर्ण विश्व में ध्यान अभ्यास द्वारा प्रेम+एकता +शांति का संदेश प्रसारित कर रहे हैं|पांच डॉक्ट्रेट की उपाधियों से सम्मानित एम एस संत राजिंदर सिंह जी वर्तमान में शिकागो में वरिष्ठ टेक्नोक्रेट हैं |विश्व में इनके १८०० केंद्र हैं ५५ भाषाओं में इनका आध्यात्मिक साहित्य छप चुका है|मुख्यालय दिल्ली में और अंतराष्ट्रीय मुख्यालय अमेरिका में है |

रंगमंच के कलाकार की भांति ,मानव को मृत्यु के पश्चात अपने स्वरुप”आत्मा” को ही प्राप्त करना है:संत राजिंदर सिंह जी

रंगमंच के कलाकार की भांति ,मानव को मृत्यु के पश्चात अपने स्वरुप”आत्मा” को ही प्राप्त करना है:संत राजिंदर सिंह जी
साइंस ऑफ़ स्प्रिचुअलिटी और सावन कृपाल रूहानी मिशन के मौजूदा संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने अपने फॉलोवर्स के प्रश्नों के उत्तर देते हुए मानव जीवन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला |उन्होंने बताया कि जिस प्रकार भूमिका समाप्त होने पर एक कलाकार अपनी पोशाक उतारकर अपना वास्तविक रूप धारण करता है ठीक उसी प्रकार मानव का उदेश्य भी मृत्यु के पश्चात अपने वास्तविक स्वरुप अर्थार्त “आत्मा” को प्राप्त करना होता है | यह दुनिया प्रभु का रचाया एक खेल या नाटक है,और हम इसमें केवल अभिनेता और अभिनेत्री हैं।भूमिका ख़त्म हो जाती है, तो अभिनेता और अभिनेत्री अपनी-अपनी पोशाक उतारते हैं और घर वापस चले जाते हैं। फिर वो अपने वास्तविक स्वरूप में लौट जाते हैं।जीवन के इस आध्यत्मिक रहस्य के जिज्ञासु के प्रश्न और महाराज जी के उत्तर इस प्रकार हैं:
[१]प्रश्नः मैंने अक्सर यह सुना है कि इस भौतिक दुनिया में जो कुछ चल रहा है वो एक नाटक के समान ही है, फिर भी हमें ये सब बिल्कुल सच लगता है। क्या आप इस बारे में बतायेंगे?
राजिंदर सिंह जी का उत्तरः
संत मत के महापुरुष हमें सच्चाई के प्रति जागृत करने के लिए ही इस संसार में आते हैं। वो हमें बताते हैं कि यह दुनिया प्रभु का रचाया एक खेल या नाटक है, और हम इसमें केवल अभिनेता और अभिनेत्री हैं। जब नाटक में उनका रोल या भूमिका ख़त्म हो जाती है, तो अभिनेता और अभिनेत्री अपनी-अपनी पोशाक उतारते हैं और घर वापस चले जाते हैं। फिर वो अपने वास्तविक स्वरूप में लौट जाते हैं। इसी प्रकार, हम इस दुनिया में जीते हुए अपनी-अपनी भूमिकाओं में इतना अधिक खो गए हैं कि अपने सच्चे स्वरूप को ही भूल चुके हैं। हमारा सच्चा स्वरूप है हमारी आत्मा। ये ही प्रभु का वो अंश है जो इस दुनियावी भूमिका को अदा कर रही है।
यदि हम इस सच्चे स्वरूप को पहचान जायें, तो हम सम्पूर्ण सृष्टि के पीछे की असलियत को जान जायेंगे। हम समझ जायेंगे कि यह सांसारिक जीवन प्रभु रूपी लेखक द्वारा लिखी गई एक कहानी या नाटिका भर है। तब हम अपना जीवन अलग ढंग से जीने लगेंगे।
महापुरुष हमें केवल यही नहीं बताते कि यह जीवन एक अस्थाई नाटक है। वे तो हमें सच्चाई का साक्षात् अनुभव प्रदान करते हैं। नामदान के समय वे हमारे अंदरूनी आँख और कान खोल देते हैं। वे हमें ध्यानाभ्यास सिखाकर आंतरिक दिव्य ज्योति और श्रुति के संपर्क में ले आते हैं। उनके निर्देशों का पालन करके हम अंतर में ध्यान टिकाकर इस भौतिक संसार से ऊपर उठ सकते हैं।
हम इस दुनिया के रंगमंच से ऊपर उठकर वास्तविक संसार में जा सकते हैं। तब हम अनुभव कर लेते हैं कि यह दुनिया एक अस्थाई मंच ही है जहाँ हम एक भूमिका निभाने के लिए आए हैं, लेकिन वो भूमिका हमारा सच्चा आपा नहीं है।
हम आंतरिक मंडलों में ऊपर उठते चले जाते हैं। हम अंड के मंडल के रंगमंच में पहुँचते हैं, जोकि इस भ्रम का ही हिस्सा है लेकिन इस पिंड के मंडल से अधिक सूक्ष्म है। उससे ऊपर उठकर हम ब्रह्मंड के मंडल में पहुँचते हैं, जोकि है तो भ्रम ही परंतु अंड और पिंड के मंडलों से अधिक सूक्ष्म है। अंत में हम माया के इन तीनों निचले मंडलों से ऊपर उठकर पारब्रह्म और फिर सचखंड के आध्यात्मिक मंडलों में पहुँच जाते हैं। यहाँ सारी माया ख़त्म हो जाती है और हम स्वयं को परमात्मा के अंश आत्मा के रूप में देख पाते हैं। यहाँ आकर अभिनेता और अभिनेत्री अपने सारे आवरण उतार देते हैं और अपने सच्चे स्वरूप में वापस लौट आते हैं।

मौत के क़रीब से गुज़रे बिना ही,ध्यानाभ्यास से अनंत प्रकाश,सुंदरता ख़ुशियों भरी दुनिया की सैर संभव है:संत राजिंदर सिंह जी

मौत के क़रीब से गुज़रे बिना ही,ध्यानाभ्यास से अनंत प्रकाश,सुंदरता ख़ुशियों भरी दुनिया की सैर संभव है:संत राजिंदर सिंह जी साइंस आफ स्प्रिचुअलिटी और सावन कृपाल रूहानी मिशन के मौजूदा संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने आंतरिक प्रकाश के मंडलों की सैर के लिए ध्यानाभ्यास का मंत्र दिया|
महाराज जी ने अपने साप्ताहिक सन्देश में फरमाया है कि ध्यानाभ्यास के द्वारा हम मृत्यु-सम अनुभव के आघात के बिना ही आंतरिक प्रकाश के मंडलों में पहुँच सकते हैं।
आज विश्व भर में मृत्यु-सम अनुभवों या near death experiences के विषय को लेकर अत्यधिक रूचि है। आधुनिक विज्ञान की सहूलियतों के कारण आज डाक्टर कई ऐसे लोगों को पुनर्जीवित करने में सफल रहे हैं जिन्हें डाक्टरी रूप से मृत घोषित कर दिया गया था।
पिछली शताब्दियों में, जब डाक्टरी चिकित्सा ने इतनी तरक़्क़ी नहीं की थी कि दिल का दौरा पड़े किसी व्यक्ति को जीवनदान दे सके, तब हमारे पास इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं था कि अगर किसी व्यक्ति की दुर्घटना में, या किसी आघात से, या आपरेशन टेबल पर मौत हो जाए, तो उसके साथ क्या होता है। आज जबकि डाक्टर हृदय को फिर से शुरू कर सकते हैं, तो हम यह जान पाएँ हैं कि उस समय लोगों के साथ क्या होता है जब वो डाक्टरी रूप से मृत होते हैं।
जब डाक्टरी रूप से मृत घोषित लोगों को पुनर्जीवित किया गया, तो उनमें से कइयों ने बताया कि उस बीच में उनके साथ क्या हुआ। जब उन लोगों का शरीर मृत था, उस दौरान उनको जो अनुभव हुआ उसी को ‘मृत्यु-सम अनुभव’ कहा जाता है। विश्व भर में लाखों लोगों ने ऐसे मृत्यु-सम अनुभव होने की बात स्वीकार की है जिसमें उन्होंने इस संसार से आगे भी जीवन का अनुभव किया।
मृत्यु-सम अनुभव का अर्थ यह नहीं कि उस व्यक्ति की वास्तव में मृत्यु हो गई। जब शरीर डाॅक्टरी रूप से मृत हो गया, तब हमारे अस्तित्व के एक हिस्से ने इस दुनिया से आगे की दुनिया की सुंदरता को अनुभव किया।
संत राजिंदर सिंह जी ने फरमाया कि इस भौतिक संसार से आगे की दुनिया का अनुभव करने के लिए हमें मृत्यु-सम अनुभव का आघात सहने की ज़रूरत नहीं। हज़ारों सालों से पूर्व के देशों के लोग ध्यानाभ्यास के द्वारा यहाँ से आगे की दुनिया का अनुभव करते चले आए हैं। ध्यानाभ्यास की विधि द्वारा हम अपना ध्यान भौतिक संसार से हटाकर आंतरिक दिव्य मंडलों में टिका सकते हैं। हम ऐसा पूरी तरह से जीवित रहते हुए कर सकते हैं। इस अवस्था को और भी कई नामों से पुकारा जाता है, जैसे शरीर से ऊपर उठना, निर्वाण, आत्म-ज्ञान, प्रभु-ज्ञान आदि। इस अवस्था में हम ध्यानाभ्यास द्वारा पहुँच सकते हैं।
‘सावन कृपाल रूहानी मिशन’/‘साइंस आफ़ स्पिरिच्युएलिटी’ में हम ध्यान टिकाने की एक बेहद सरल विधि का अभ्यास करते हैं। इससे हम मृत्यु-सम अनुभव के आघात सहे बिना ही अलौकिक प्रकाश के मंडलों का अनुभव कर सकते हैं। अंतर में प्रभु की दिव्य ज्योति और श्रुति पर ध्यान टिकाने से हम मृत्यु के हादसे के बिना ही इस दुनिया के परे के मंडलों के असीम प्रकाश और सुंदरता का अनुभव कर पाते हैं। जो लोग स्वयं यह देखना चाहते हैं कि ध्यानाभ्यास की विधि कितनी सरल है, वे ध्यान टिकाने की एक प्रारंभिक विधि का अभ्यास कर सकते हैं, जिसे ‘ज्योति मेडीटेशन’ कहा जाता है, जिसका अभ्यास घर पर भी आराम से किया जा सकता है। हर दिन थोड़ी देर के लिए ध्यानाभ्यास करने से हम निश्चय ही शांति का अनुभव करेंगे।
जैसे-जैसे हम दिव्य ज्योति और श्रुति पर ध्यान टिकाने की गहन विधि या ‘शब्द मेडीटेशन’ का अभ्यास करने लगेंगे, तो हम भी एक दिन, मौत के क़रीब से गुज़रे बिना ही, उस अनुभव को पा लेंगे जो लाखों लोगों को मृत्यु के हादसे से गुज़रने के बाद प्राप्त होता है – कि इस दुनिया से परे भी अनंत प्रकाश, सुंदरता और ख़ुशियों भरी एक दुनिया है।

शांत मन से ध्यानाभ्यास पर बैठ कर सभी संबंध भी शांतिपूर्ण हो जाते हैं:संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

साइंस आॅफ़ स्पिरिच्युएलिटी SOSऔर सावन कृपाल रूहानी मिशनSKRM के वर्तमान संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने अध्यात्म और विज्ञान के संबंधों के प्रति जिज्ञासा से सम्बंधित प्रश्नो का उत्तर दिया|
[१]प्रश्न:
आप ध्यानाभ्यास की विधि सिखाते हैं और आपकी संस्था का नाम ‘साइंस आॅफ़ स्पिरिच्युएलिटी’ है? अध्यात्म और विज्ञान के बीच भला क्या संबंध है?
संत राजिन्दर सिंह जी:
हम आज एक अति वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं। आज का समय ऐसा नहीं है जबकि लोग अंधविश्वास में पड़कर बस चीज़ों को मान लें। आज के समय में हम उसी चीज़ में विश्वास करते हैं जिसे हम स्वयं अनुभव कर सकते हों। हमारी संस्था का नाम ‘साइंस आॅफ़ स्पिरिच्युएलिटी’ है क्योंकि हम मानते हैं कि अध्यात्म भी एक तरह का विज्ञान ही है। इसमें भी हम स्वयं अनुभव किए बिना किसी चीज़ को यूँ ही नहीं मान लेते।
[२]प्रश्न:
विज्ञान का तरीका तो है प्रयोग करना, क्या अध्यात्म का तरीका भी प्रयोग करना ही है?
संत राजिन्दर सिंह जी:
अध्यात्म का तरीका, या जिस तरीके द्वारा हम अपने सच्चे स्वरूप को जान सकते हैं, वो एक प्रयोग ही है। इस प्रयोग में हम शारीरिक चेतनता से ऊपर उठते हैं। इस प्रयोग को बार-बार दोहराया जा सकता है, और सही व नियमित ढंग से करने पर इस प्रयोग के नतीजे भी हमेशा ज्ञात और प्रमाणित होते हैं। विज्ञान में भी यही होता है। हम एक प्रयोग करते हैं, और हमें अपेक्षित नतीजे हासिल होते हैं। अध्यात्म को भी प्रयोग के द्वारा प्रमाणित किया जाता है।
[३]प्रश्न:
यह प्रमाणित किया जा सकता है?
संत राजिन्दर सिंह जी:
यह बिल्कुल प्रमाणित किया जा सकता है। हम मानव शरीर को एक प्रयोगशाला की तरह इस्तेमाल करते हैं। जब हम भौतिकशास्त्र या रसायनशास्त्र पढ़ते हैं, तो हम एक प्रयोगशाला में जाते हैं और प्रयोग करते हैं। हो सकता है कि हम एक ट्यूब में कोई ऐसिड डालें और रंगीन धुँआ बाहर निकले। हमारे शिक्षक हमें पहले ही बता देते हैं कि सही ढंग से प्रयोग करने पर किस तरह का और कौन से रंग का धुँआ निकलेगा। इसी तरह, जब हम ध्यानाभ्यास करते हैं, तो हम अपने अंतर में जा पाते हैं। हम अपने भीतर दिव्य प्रकाश देख पाते हैं और दिव्य श्रुति को सुन पाते हैं। तो यह मानव शरीर भी एक प्रयोगशाला है जिसमें हम अपने सच्चे स्वरूप को, अपनी आत्मा को जानने के लिए प्रयोग करते हैं।
जब हम संतुष्ट होते हैं, तो हम जीवन में जो कुछ वास्तव में महत्त्वपूर्ण है, उस पर ध्यान दे पाते हैं। हम एक शांत मन के साथ ध्यानाभ्यास पर बैठ पाते हैं। अपने परिवारजनों और मित्रों के साथ हमारे संबंध शांतिपूर्ण हो जाते हैं। हम लगातार अपनी इच्छाओं को पूरा करने की भागदौड़ में नहीं लगे रहते। ऐसा करने से हम जीवन के कई तनावों से बच सकते हैं।