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रूहानी मिशन के संत दर्शन सिंह जी की २७ वी पूण्य बरसी पर भावभीनी श्रद्धांजलि

sant Darshan Singh Ji

sant Darshan Singh Ji

[मेरठ,यूपी]रूहानी सत्संग सावन आश्रम में दयाल पुरुष संत दर्शन सिंह जी की २७ वी पूण्य बरसी पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई|इस अवसर पर भंडारा और मीठे पानी के छबील[प्याऊ] भी लगाए गए |
श्रद्धालुजनों ने संत जी के साथ अपने अनुभवों को सांझा किया| और उनके प्रेरणादायक उपदेशों का वर्णन किया | सावन कृपाल रूहानी मिशन और साइंस ऑफ़ स्प्रिचुअलिटी के प्रभारी संत राजिंदर सिंह जी का वीडियो सत्संग भी चलाया गया |एस के आर एम के विश्व भर में २००० से अधिक ध्यान केंद्र हैं जिसका अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय अमेरिका में स्थापित है |

संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने प्रत्येक दिवस को ईश्वर से नजदीकियां विकसित करने का अवसर बताया

संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने प्रत्येक दिवस को ईश्वर से नजदीकियां विकसित करने का अवसर बताया|नववर्ष के सन्देश में साइंस ऑफ़ स्प्रिचुअलिटी और सावन कृपाल रूहानी मिशन के सर्वोच्च संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने कहा कि मानव अस्तित्व का उच्चतम उद्देश्य आत्मा के रूप को जानना और भगवान का एहसास करना है। संतों और महा पुरुषों ने यह सिखाया है कि आत्मा और ईश्वर की इस खोज के लिए ध्यान उचित माध्यम हैं | इस दिशा में अपनी उपलब्धियों का आंकलन करनेऔर नए वर्ष के लिए प्लानिंग करने का नया साल उपयुक्त समय होता है |
संत महाराज ने बताया कि अवर्णनीय आनंद, स्थायी शांति, और असीम खुशी हम में से प्रत्येक के भीतर का इंतजार है। दुनिया की समस्याओं का अंतहीन लगता है, हम ध्यान के माध्यम से हमारे भीतर शांति+शांत+ खुशी की एक जगह पर वापसी कर सकते हैं। ध्यान सब में परमेश्वर के प्रकाश को देखने के लिए हमारे दिल को खोलता है, और हम तो भगवान के निर्माण के सभी प्यार के साथ काम करते हैं। हम भगवान की लाइट और दिव्य प्रेम को ग्रहणशीलता के एक राज्य में हमारे जीवन जीते हैं।
यह इस नए साल में हम प्रत्येक परमानंद, शांति का अनुभव कर सकते हैं |इसके लिए हमें चाहिए कि हम दूसरों को न परखें। इसके बजाय हमें स्वयं को परखना चाहिए कि हम किस तरह का जीवन जी रहे हैं। क्या हम प्रेम से भरपूर जीवन जी रहे हैं? क्या हम करुणा से भरपूर जीवन जी रहे हैं?

प्रभु के रचनात्मक कौशल से मिले असीम उपहारों के लिए हमें प्रभु का शुक्राना अदा करना चाहिए:संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

[नई दिल्ली]संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने कहा कि विकसित देशों के भी वैज्ञानिक केवल उन चीज़ों की खोज मात्र ही कर रहे हैं जो प्रभु द्वारा पहले ही बनाई जा चुकी हैं इसीलिए प्रभु के रचनात्मक कौशल की और से हमें दिए गए असीम उपहारों के लिए हमें प्रभु का शुक्राना अदा करना चाहिए।\संत राजिंदर सिंह जी साइंस आफ स्प्रिच्युअलिटी और सावन कृपाल रूहानी मिशन के प्रभारी संत हैं|
पिछले सप्ताह विश्व के कुछ हिस्सों में थैंक्सगिविंग (धन्यवाद दिवस) का त्यौहार मनाया गया। इस पर्व पर हम अपने जीवन की हरेक अच्छी चीज़ के लिए प्रभु को धन्यवाद देते हैं, तथा बुरी चीज़ों को भूल जाते हैं और माफ़ कर देते हैं।
कृतज्ञता या शुक्राने का भाव हमारे अंदर प्रभु की बनाई हुई इस अद्भुत सृष्टि को देखकर भी उत्पन्न होता है। पश्चिमी देशों की मानसिकता आध्यात्मिक होने के बजाय वैज्ञानिक और भौतिक अधिक है। परंतु, विज्ञान के लिहाज़ से भी, हम इस बात पर चमत्कृत रह जाते हैं कि यह सृष्टि कितनी भव्य और शानदार है। वैज्ञानिकों को अपनी खोजों और अन्वेषणों के लिए नोबल अवाॅर्ड से सम्मानित किया जाता है, लेकिन अगर हम इस बारे में ध्यान से सोचें तो समझ जायेंगे कि वैज्ञानिक तो केवल उन चीज़ों की खोज मात्र ही कर रहे हैं जो प्रभु द्वारा पहले ही बनाई जा चुकी हैं।
प्रभु द्वारा रचित धरती के सबसे छोटे पौधे से लेकर सबसे बड़े पशु के अंदर ऐसा कुछ न कुछ ज़रूर है जो बाक़ी संसार के लिए लाभदायक होता है। धरती के हरेक प्राणी के अंदर जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण ऐसी कोई न कोई चीज़ अवश्य है जो इस संसार को बाक़ी जीवों के लिए बेहतर बना सकती है।
प्रभु के रचनात्मक कौशल की और हमें दिए गए उपहारों की कोई सीमा नहीं है, जिनके लिए हमें उनका शुक्राना अदा करना चाहिए।

Meditate for SomeTime Daily And Enjoy Brilliant Godly Lights Forever:Sant Rajinder Singh Ji

[New Delhi] Meditate for some time daily And enjoy Brilliant Godly Lights Forever :Sant Rajinder Singh Ji Maharaj
The Spiritual Guru Sant Rajinder Singh Ji Maharaj Inspires To Meditate And Light The Soul
Head Guru Of Science Of Spirituality And Sawan Kripal Ruhani Mission Sant Rajinder Singh Ji Maharaj ,While Showing the importance of festivals ,says that The festival of Diwali, or “The Festival of Lights,” is a holiday in which families light lamps, which illumine the night.On Diwali, it is traditional to light candles and lamps But It is a time to reflect upon the importance of lighting our inner lamps—the light of the soul.
That light within us is the Light and Sound of God. Once lit it burns forever.The Light of God is within.
By meditating daily, we can see for ourselves the Light of God burning within. As we meditate and go within, we see the same Light of God that shines in us glowing in all other people as well. That sense of unity breaks down the outer divisions that typically divide people. Such holidays which are celebrated as one family are an expression of our sense of oneness both internally and externally.
This holiday is a time to remember to not only enjoy the outer lights but to go within to enjoy the inner Lights. Brilliant lights await us within.We need only to sit in meditation for some time daily to enjoy them.

We Witness Dawning Golden Age Of Meditation+Vegetarianism:Sant Rajinder Singh

We Witness Dawning Golden Age Of Meditation+Vegetarianism:Sant Rajinder Singh
Science Of Spirituality And Sawan Kripal Ruhani Mission’s Present Sant Sant Rajinder Singh Ji Maharaj says that Meditation is no longer confined to practitioners in the East, but has become a part of everyday life throughout the globe And People are choosing vegetarian diets for spiritual, moral, ecological, and health reasons.
Scientists and doctors have been citing meditation as a means to improved health and wellness. It is being promoted as a means for increased concentration for students, workers, professionals, and athletes. People are using it to improve their emotional and psychological well-being..
While Remembering Hazur Baba Sawan Singh Ji Maharaj ,Sant Rajinder Singh Ji Maharaj says that The dawning of the golden age of spirituality was prophesied by Hazur Baba Sawan Singh Ji Maharaj, whose birth anniversary is celebrated on July 27. Although the great saint who taught meditation on the inner Light and Sound lived from 1858-1948, we see signs of his prophecy of spiritual enlightenment blossoming throughout the world today.
. Maharaj Says Vegetarianism is also on the rise. Previously a diet restricted to a few people around the world who did not want to take the life of any animal for food, it is now flourishing as a diet recommended by doctors and health practitioners to reduce the risk of many diseases. Whereas one could hardly find anything for a vegetarian to eat in a restaurant, now people can find many vegetarian options in many restaurants and grocery stores, as well as entire dining establishments devoted to serving only vegetarian foods.
In fact, Veggie Fest, an annual festival devoted to the physical, mental, and spiritual benefits of vegetarianism, being held at the Science of Spirituality Center in Naperville, Illinois this coming August 9 and 10, has been acclaimed as one of the largest vegetarian festivals in North America; over 25,000 people attended last year.
Offering Tribute sant Rajinder singh ji Maharaj Says The rise of people interested in meditation and vegetarianism bears out the words of Hazur Baba Sawan Singh Ji who spoke of a coming golden age, and we are witnessing its dawning.

रंगमंच के कलाकार की भांति ,मानव को मृत्यु के पश्चात अपने स्वरुप”आत्मा” को ही प्राप्त करना है:संत राजिंदर सिंह जी

रंगमंच के कलाकार की भांति ,मानव को मृत्यु के पश्चात अपने स्वरुप”आत्मा” को ही प्राप्त करना है:संत राजिंदर सिंह जी
साइंस ऑफ़ स्प्रिचुअलिटी और सावन कृपाल रूहानी मिशन के मौजूदा संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने अपने फॉलोवर्स के प्रश्नों के उत्तर देते हुए मानव जीवन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला |उन्होंने बताया कि जिस प्रकार भूमिका समाप्त होने पर एक कलाकार अपनी पोशाक उतारकर अपना वास्तविक रूप धारण करता है ठीक उसी प्रकार मानव का उदेश्य भी मृत्यु के पश्चात अपने वास्तविक स्वरुप अर्थार्त “आत्मा” को प्राप्त करना होता है | यह दुनिया प्रभु का रचाया एक खेल या नाटक है,और हम इसमें केवल अभिनेता और अभिनेत्री हैं।भूमिका ख़त्म हो जाती है, तो अभिनेता और अभिनेत्री अपनी-अपनी पोशाक उतारते हैं और घर वापस चले जाते हैं। फिर वो अपने वास्तविक स्वरूप में लौट जाते हैं।जीवन के इस आध्यत्मिक रहस्य के जिज्ञासु के प्रश्न और महाराज जी के उत्तर इस प्रकार हैं:
[१]प्रश्नः मैंने अक्सर यह सुना है कि इस भौतिक दुनिया में जो कुछ चल रहा है वो एक नाटक के समान ही है, फिर भी हमें ये सब बिल्कुल सच लगता है। क्या आप इस बारे में बतायेंगे?
राजिंदर सिंह जी का उत्तरः
संत मत के महापुरुष हमें सच्चाई के प्रति जागृत करने के लिए ही इस संसार में आते हैं। वो हमें बताते हैं कि यह दुनिया प्रभु का रचाया एक खेल या नाटक है, और हम इसमें केवल अभिनेता और अभिनेत्री हैं। जब नाटक में उनका रोल या भूमिका ख़त्म हो जाती है, तो अभिनेता और अभिनेत्री अपनी-अपनी पोशाक उतारते हैं और घर वापस चले जाते हैं। फिर वो अपने वास्तविक स्वरूप में लौट जाते हैं। इसी प्रकार, हम इस दुनिया में जीते हुए अपनी-अपनी भूमिकाओं में इतना अधिक खो गए हैं कि अपने सच्चे स्वरूप को ही भूल चुके हैं। हमारा सच्चा स्वरूप है हमारी आत्मा। ये ही प्रभु का वो अंश है जो इस दुनियावी भूमिका को अदा कर रही है।
यदि हम इस सच्चे स्वरूप को पहचान जायें, तो हम सम्पूर्ण सृष्टि के पीछे की असलियत को जान जायेंगे। हम समझ जायेंगे कि यह सांसारिक जीवन प्रभु रूपी लेखक द्वारा लिखी गई एक कहानी या नाटिका भर है। तब हम अपना जीवन अलग ढंग से जीने लगेंगे।
महापुरुष हमें केवल यही नहीं बताते कि यह जीवन एक अस्थाई नाटक है। वे तो हमें सच्चाई का साक्षात् अनुभव प्रदान करते हैं। नामदान के समय वे हमारे अंदरूनी आँख और कान खोल देते हैं। वे हमें ध्यानाभ्यास सिखाकर आंतरिक दिव्य ज्योति और श्रुति के संपर्क में ले आते हैं। उनके निर्देशों का पालन करके हम अंतर में ध्यान टिकाकर इस भौतिक संसार से ऊपर उठ सकते हैं।
हम इस दुनिया के रंगमंच से ऊपर उठकर वास्तविक संसार में जा सकते हैं। तब हम अनुभव कर लेते हैं कि यह दुनिया एक अस्थाई मंच ही है जहाँ हम एक भूमिका निभाने के लिए आए हैं, लेकिन वो भूमिका हमारा सच्चा आपा नहीं है।
हम आंतरिक मंडलों में ऊपर उठते चले जाते हैं। हम अंड के मंडल के रंगमंच में पहुँचते हैं, जोकि इस भ्रम का ही हिस्सा है लेकिन इस पिंड के मंडल से अधिक सूक्ष्म है। उससे ऊपर उठकर हम ब्रह्मंड के मंडल में पहुँचते हैं, जोकि है तो भ्रम ही परंतु अंड और पिंड के मंडलों से अधिक सूक्ष्म है। अंत में हम माया के इन तीनों निचले मंडलों से ऊपर उठकर पारब्रह्म और फिर सचखंड के आध्यात्मिक मंडलों में पहुँच जाते हैं। यहाँ सारी माया ख़त्म हो जाती है और हम स्वयं को परमात्मा के अंश आत्मा के रूप में देख पाते हैं। यहाँ आकर अभिनेता और अभिनेत्री अपने सारे आवरण उतार देते हैं और अपने सच्चे स्वरूप में वापस लौट आते हैं।