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डॉ. हर्षवर्धन ने राजनीती में भी ऑर्थोडॉक्स चिकित्सा पद्धति के अनुसार कंडोम और यौन शिक्षा के नुस्खे बदले

केंद्रीय स्वास्थय मंत्री डॉ हर्षवर्धन राजनीती में भी ऑर्थोडॉक्स चिकित्सा पद्धति का इस्तेमाल करते दिख रहे हैं |इस पुरानी पद्धति के अनुसार इलाज के दौरान दवाइयाँ बदल बदल कर एक्सपेरिमेंट किये जाते हैं कमोबेश इसी आधार पर आज कल डॉ हर्षवर्धन ने कंडोम से लेकर भोग शिक्षा के विरोध में बाबा राम देव और अपनी आर एस एस के सामाजिक मूल्यों वाली योग शिक्षा के नुस्खों को आजमाना शुरू कर दिया है |
कंडोम के इस्तेमाल को बदलने की कवायद में स्वयं डॉ की ही सेहत जब बिगड़ने लग गई तो उन्होंने तत्काल यौन शिक्षा के स्थान पर योग शिक्षा को प्रेस्क्राइब कर दिया |अब इसके रिएक्शन में मीडिया के साथ ही सत्ता गवाँ बैठे कांग्रेस जन भी हाय हल्ला करने लग गए |इस पर स्पष्टीकरण देते हुए स्वास्थ्य मंत्री ने बिना अश्लीलता के यौन शिक्षा की हिमायत की हैं |डॉ हर्षवर्धन के अनुसार यौन शिक्षा जरूरी, लेकिन अश्‍लीलता के बिना ”सभी देशों को सामाजिक मूल्‍यों के साथ यह शिक्षा देनी चाहिए”
केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री की व्‍यक्तिगत वेबसाइट www.drharshvardhan.com/ drharshvardhan-views-on-education.aspx में ” त‍थाकथित यौन शिक्षा की ” आलोचना को लेकर मीडिया के एक वर्ग ने विवाद खड़ा किया है। इस पोस्ट को वर्ष २००७ की पोस्ट बताया जा रहा हैं |
सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मामलों पर अलग-अलग राय रखने की मीडिया की परम्‍परा के आगे नतमस्तक होते हुए, डॉ हर्षवर्धन ने विस्‍तृत रूप से इस बात का खंडन किया है कि उन्‍होंने यौन शिक्षा पर रोक लगाने का प्रस्‍ताव किया था जैसा कि एक प्रमुख अख़बार ने आज अपनी बैनर हेडलाइन में कहा है।
डॉ हर्षवर्धन, जो इन दिनों अमरीका की सरकारी यात्रा पर हैं, ने कहा ”मैं एक मेडिकल पेशेवर हूं जिसने हमेशा तर्कों को अपनाया है और मैं तहेदिल से ऐसी शिक्षा का समर्थन करता हूं जो वैज्ञानिक और सांस्‍कृतिक दृष्टि से लोगों को स्‍वीकार्य हो। ऐसी कोई भी बात, जो आम आदमी को चोट पहुंचाती हो और जो चाहे वह किसी भी जिम्‍मेदार व्‍यक्ति द्वारा स्‍पष्‍ट रूप से कही गई हो उसे अस्‍वीकार कर दिया जाना चाहिए और उसके स्‍थान पर ज्ञान की ऐसी प्रक्रिया अपनानी चाहिए जिस पर सभी की आम सहमति हो। उन्‍होंने स्‍पष्‍ट किया कि वेबसाइट पर उन्‍होंने जो विचार व्‍यक्‍त किए थे वो उनके अपने थे। उन्‍होंने किशोर शिक्षा कार्यक्रम शुरू करने के बारे में यूपीए सरकार द्वारा 2007 में किए गए फैसले के संदर्भ में यह बात कही थी। यहां तक कि यूपीए शासित राज्‍यों के मुख्य मंत्रियों ने भी इस पर आपत्ति व्‍यक्‍त की थी और इसमें संशोधन किया गया था।
डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि 2013 के चुनाव में अपनी पार्टी के मुख्‍यमंत्री पद के उम्‍मीदवार के रूप में उन्‍होंने कहा था कि उन्‍हें शासन के अन्‍य विषयों के अलावा शिक्षा के लिए पारदर्शी एजेंडा बनाने का पूरा अधिकार है। मूल्‍य आधारित स्‍कूली ज्ञान की प्रक्रिया सभी देशों में समान है और उन्‍होंने दिल्‍ली के स्‍कूलों में इस तरह का प्रारूप लागू करने के बारे में सोचा था। उन्‍होंने कहा कि सितम्‍बर 2002 में उच्‍चतम न्यायालय की एक खंडपीठ ने सरकार के इस अधिकार को बरकरार रखा था कि स्‍कूली पाठ्यक्रम में मानव मूल्‍य शिक्षा शुरू की जाये। (2002 की बी.जी.वर्गीज, अरुणा रॉय और अन्‍य बनाम एनसीईआरटी रिट याचिका 98)
डॉ हर्षवर्धन ने स्‍पष्‍ट रूप से यूं पी ऐ पर हमला बोलते हुए कहा कि यूपीए के तथाकथित यौन शिक्षा कार्यक्रम में सांस्‍कृतिक दृष्टि से आपत्तिजनक प्रतीकों के अपरिष्‍कृत और लिखित बयानों को यौन शिक्षा नहीं कहा जा सकता। प्रत्‍येक शिक्षा प्रणाली में एक आदर्श पाठ्यक्रम अवश्‍य होना चाहिए और उस सीमा तक मेरी राय वैध है।
स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री, जिनके पास 1993 से 1998 के बीच दिल्‍ली सरकार में स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय के साथ-साथ शिक्षा मंत्रालय का कार्यभार भी था, ने अनेक विशेषज्ञों की सलाह से दिल्‍ली के स्‍कूलों के पाठ्यक्रम में अनेक स्‍थाई सुधार शुरू किए थे। डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि उस समय भी पाठ्यक्रम में यौन शिक्षा को कुछ हद तक शामिल किया गया था लेकिन उस समय किसी के विरोध करने की खबर नहीं आई।
उन्‍होंने कहा कि एईपी में पर्याप्त संशोधन किया गया है। अब इसे नये एचआईवी संक्रमण की रोकथाम और संक्रमण के प्रति सामाजिक संवेदनशीलता को कम करने में प्रमुख हस्‍तक्षेप के रूप में शिक्षा विभाग और राष्‍ट्रीय एडस नियंत्रण संगठन द्वारा उचित स्‍थान मिला है। डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि इस कार्यक्रम को राज्‍य एडस नियंत्रण सोसाइटियों के सहयोग से शिक्षा विभाग के जरिए देश भर में लागू किया गया है। उन्‍होंने कहा कि एईपी का उद्देश्‍य देश के सभी सीनियर स्‍कूलों में शत-प्रतिशत गुणवत्‍ता प्रदान करना है ताकि नौंवी और दसवीं कक्षा के छात्रों को एचआईवी के बारे में सही और पर्याप्‍त जानकारी मिल सके।
डॉ हर्षवर्धन ने अंत में संक्षेप में कहा, ”यौन शिक्षा का लक्ष्‍य समाज को लिंग भेदभाव, किशोरियों में गर्भधारण, एचआईवी-एडस के प्रसार, अश्‍लील साहित्‍य की लत से मुक्‍त समाज का निर्माण होना चाहिए।
गौरतलब हैं के डॉ हर्षवर्धन ने दो दिन पहले ही एक विवादित बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि एड्स के प्रति जागरूकता अभियान चलाते समय कंडोम के इस्तेमाल को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। उनकी दलील थी कि यदि व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहे तो कंडोम की जरूरत ही नहीं है।
एड्स के खिलाफ अभियान में जुटे संगठनों ने उनके इस बयान का विरोध किया था, जिसके बाद स्वास्थ्य मंत्री को सफाई भी देना पड़ी थी।
फोटो कैप्शन
The Union Minister for Health and Family Welfare, Dr. Harsh Vardhan presenting a copy of his book “A tale of two drops” to the United States Secretary for Health and Human Services, Ms. Sylvia Mathews Burwell, during their meeting, in Washington DC on June 25, 2014.