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Indian Money in Swiss Banks Fell 80% in Modi’s 4 Yrs

[New Delhi]Indian Money in Swiss Banks Fell 80% in Modi’s 4 Yrs
Indian deposits in Swiss banks fell by 34.5 per cent in 2017 and by 80% since the Narendra Modi government came to power in 2014, Finance Minister Piyush Goyal said today, citing data from the global body of central banks, the Bank for International Settlements (BIS).
He said this in Parliament rebutting last month’s reports, which quoted the Swiss National Bank, the country’s central bank, as saying in its annual report that Indian deposits had risen by 50 per cent in 2017.
He told Rajya Sabha during question hour that he discussed the issue with Swiss authorities, who told him in a written reply that media reports “have not taken account of the way the (SNB) figures have to be interpreted”.
Last month, PTI had reported SNB data that the money parked by Indians in Swiss banks rose to CHF 1.01 billion (Rs. 7,000 crore) in 2017 after falling for three consecutive years.
However, his reply did not satisfy Trinamool Congress members who stormed into the Well of the House demanding that black money stashed in Swiss banks be brought back, forcing Chairman M Venkaiah Naidu to adjourn the proceedings for about 90 minutes.

कपिल[सिब्बल] और[अरविन्द] केजरीवाल ने मोदी[नरेंद्र] की टांग पकड़ कर १६ वी लोक सभा में पहुँचने की जुगत लड़ाई

झल्ले दी झल्लियां गल्लां

उत्साहित आम आदमी पार्टी चीयर लीडर

ओये झल्लेया हसाडे राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द जी केजरीवाल जी ने एक बार फिर अम्बानी और नरेंद्र मोदी के साथ राहुल गांधी को भी लपेट लिया है | केजरीवाल जी साहब ने भाजपा के पी एम् के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को भारी भरकम चिट्ठी लिख मारी है और राहुल गांधी को लिखने की घोषणा कर दी है कजेरीवाल ने इस चिट्ठी में मोदी की दुखती रग को दबा कर गैस के दामो पर मोदी से उनका रुख तलब कर लिया है |इसके अलावा अम्बानी बंधुओं के लिंक स्विस बैंक से भी जोड़ दिए यहाँ तक स्विस बैंक में खातों की संख्या और अकाउंट नंबर भी दे दिए है ब्लैक मनी से मोदी के रिश्ते भी पूछ लिए हैं |यहाँ तक ही बस नहीं की है इस आरोप पत्र की करोडो प्रतियां भी बांटने की बात की है |ओये अब तो अम्बानी की ब्लैक मनी पर ऐश करने वाला “मोदी” गया बारह के भाव

झल्ला

भापा जी हसाडे जीते जी गैस सस्ती हो जाये, स्विस बैंकों से ब्लैक मनी आ जाये तो इससे अच्छी बात और कोई हो ही नहीं सकती लेकिन आप जी के अरविन्द केजरीवाल से पहले कांग्रेसी कपिल सिब्बल ने भी राजीव गांधी के हत्यारों को रिहाई देने वाले जय ललिता के आदेशों पर मोदी से उनकी राय पूछ ली है अब केजरीवाल और कपिल के आगे पीछे सवालों से लगता है कि इन दोनों ने मोदी की टांग पकड़[खींच] कर १६ वी लोक सभा में पहुँचने के लिए यह जुगत लड़ाई है|झल्ले की शुभ कामनाएं

श्याम धन पर केंद्र सरकार के श्वेत पत्र पर अपने ब्लॉग में लाल पीले हुए एल के अडवाणी

श्याम धन पर केंद्र सरकार ने संसद में बेशक श्वेत पत्र रख कर अपने ऊपर लगे काले दागों को धोने का प्रयास किया हो लेकिन इस संसदीय घटना के एक साल बीत जाने पर भी अवैध ढंग से विदेशों में जमाबिना किसी रंग के धन में से एक पैसा भी वापस देश में नही लाया जा सका है |इस निराशाजनक स्थिति पर लाल पीले होते हुए लाल कृषण आडवाणी ने अपने ब्लाग में राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग करते हुए एक बार फिर केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने का प्रयास किया है|
प्रस्तुत है एन डी ऐ के पी एम् इन वेटिंग + वरिष्ठ पत्रकार एल के अडवाणी के ब्लॉग से
मई, 2012 में तत्कालीन वित्त मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने काले धन पर एक श्वेत पत्र (White Paper) संसद में प्रस्तुत किया। इस श्वेत पत्र में यूपीए सरकार ने वायदा किया कि देश में काले धन के प्रचलन को नियंत्रित किया जाएगा, विदेशों के टैक्स हेवन्स में इसके अवैध हस्तांतरण को रोकने के साथ-साथ हमारी इस अवैध धनराशि को भारत वापस लाने के प्रभावी उपाय सुनिश्चित किए जाएंगे।
मई, 2013 इस महत्वपूर्ण दस्तावेज के प्रस्तुत करने की पहली वर्षगांठ है। अत: सर्वप्रथम यह जानना समीचीन होगा कि इस श्वेत पत्र को सरकार को क्यों लाना पड़ा और आज तक इस पर कार्रवाई के रूप में क्या कदम उठाए गए हैं।
पांच वर्ष पहले से, भाजपा लगातार काले धन के मुद्दे को मुखरित करती आ रही है। जब सन् 2008 में पहली बार इसे उठाया गया तब कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ताओं ने इसकी खिल्ली उड़ाई थी। हालांकि 6 अप्रैल, 2008 को मैंने प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह को सम्बोधित अपने पत्र मे मैंनें लिखा था:
हाल ही में, जर्मन सरकार ने अपने देश में टैक्स चोरी करने वालों के विरुध्द एक व्यापक जांच अभियान शुरु किया है, और इस प्रक्रिया में जर्मन गुप्तचर एजेंसियों को बताते हैं कि लीशेंस्टाइन के एलटीजी बैंक से उसके 1400 से अधिक ग्राहकों की गोपनीय जानकारी मिली है। इनमें से 600 जर्मनी के हैं और शेष अन्य देशों से सम्बंधित हैं।
इन रहस्योद्धाटनों से पहले ही डायचे पोस्ट-पूर्व जर्मनी मेल सर्विस-दुनिया में एक बड़ी लॉजिस्टिक कम्पनी-के प्रमुख का त्यागपत्र हो चुका है।
जर्मन वित मंत्रालय ने बताते हैं कि सार्वजनिक रुप से घोषणा की है कि वह किसी भी सरकार को यदि वे चाहती हैं तो बगैर किसी शुल्क के जानकारी उसे देने को तैयार हैं।
फिनलैण्ड, नार्वे और स्वीडन जैसे कुछ यूरोपीय देशों ने यह जानकारी पाने में पहले ही अपनी रुचि दिखाई है।
इन घटनाक्रमों के साथ-साथ, ऐसी भी रिपोर्ट आ रहीं हैं कि स्विटज़रलैण्ड पर यह दबाव भी बन रहा है कि वह टैक्स से चुरा कर उनके बैंको में जमा कालेधन को एक अपराध माना जाए और वह ऐसे धन का पता लगाने के लिए अन्य देशों से सहयोग करने हेतु अपने आंतरिक नियमों को बदले।
मैं मानता हूं कि भारत सरकार अपनी उपयुक्त एजेंसियों के माध्यम से जर्मन सरकार से अनुरोध करे वह एलटीजी के ग्राहकों का डाटा हमें बताए। हमारी सरकार को यूरोपीय सरकारों द्वारा स्विट्ज़रलैण्ड तथा अन्य टैक्स हेवन्स विशेषकर अन्य देशों से सम्बंधित जमा राशि की बैंकिग पध्दति में और ज्यादा पारदर्शिता लाने के संभावित आगामी कदमों को समर्थन देना चाहिए।
यदि हम जर्मनी से एलटीजी ग्रुप के ग्राहकों का सम्बंधित डाटा मांगते हैं तो यह हमारी उस स्थिति को पुन: मजबूत करेगा कि हम उन राष्ट्रों के समुदाय के जिम्मेदार सदस्य हैं जो वित्तीय प्रामाणिकता और पारदर्शी नियमों के पक्षधर हैं। यह भविष्य में, इन टैक्स हेवन्स की कार्यप्रणाली से कुछ अवांछनीय पहलुओं को समाप्त कर वैश्विक वित्तिय प्रणाली को स्वच्छ बनाने में हमारी सहभागिता का मार्ग प्रशस्त करेगा।
सम्भवत: प्रधानमंत्री के निर्देश पर वित्त मंत्री श्री चिदम्बरम ने मई, 2008 में इसके उत्तर में लिखा कि उनकी सरकार इस मुद्दे पर जर्मनी के टैक्स ऑफिस से सम्पर्क कर प्रयास कर रही है।
मार्च, 2010 में मैंने इस विषय पर लिखे अपने ब्लॉग में लीशेंस्टाइन के एलटीजी बैंक प्रकरण की याद दिलाते हुए सरकार से आग्रह किया था कि वह औपचारिक रुप से काले धन पर एक विस्तृत श्वेत पत्र प्रकाशित करे।
इस बीच भाजपा ने इस विषय के अध्ययन हेतु एक चार सदस्यीय टास्क फोर्स (कार्यदल) का गठन किया। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त सामग्री का अध्ययन करने के पश्चात् यह टास्क फोर्स इस निष्कर्ष पर पहुंची कि विदेशों में अवैध ढंग से जमा भारतीयों का धन अनुमानतया 25 लाख करोड़ से 70 लाख करोड़ रूपये के बीच होगा।
जब तक पश्चिमी प्रभुत्व वाली विश्व अर्थव्यवस्था अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों के लिए ठीक ठाक चल रही थी जब तक समूचे विश्व को लगता था कि इन टैक्स हेवन्स के बैंकिग गोपनीयता सम्बन्धी प्रावधानों से कोई दिक्कत नहीं है। उस समय ऐसा महसूस किया जाता था कि इन देशों के कानूनों के बारे में कुछ नहीं किया जा सकता। लेकिन विश्व अर्थव्यवस्था के संकट से न केवल राष्ट्रपति ओबामा अपितु ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे अनेक यूरोपीय देशों के रुख में बदलाव आया और उन्होंने एकजुट होकर इन देशों के बैंकिग गोपनीय कानूनों में बदलाव के लिए दृढ़ प्रयास किए।
सन् 2009 में वाशिंगटन ने यूबीएस जैसे स्विट्जरलैंड के बड़े बैंक को उन 4450 अमेरिकी ग्राहकों के नाम उद्धाटित करने पर बाध्य किया, जिन पर स्विट्ज़रलैंड में सम्पत्ति छिपाने का संदेह था।
सन् 2009 के लोकसभाई चुनावों में भाजपा ने काले धन को चुनावी मुद्दा बनाया। स्वामी रामदेव जैसे संन्यासियों ने अपने प्रवचनों में लगातार इसे प्रचारित किया। फाइनेंसियल टाइम्स में ”इंडियंस कर्स ऑफ ब्लैकमनी” शीर्षक से प्रकाशित लेख के लेखक रेमण्ड बेकर (निदेशक, ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी) ने लिखा है कि: ”भारत ने दिखा दिया है कि यह मुद्दा मतदाताओं को छूता है। अन्य विकासशील लोकतंत्र के राजनीतिज्ञों को इसे ध्यान में रखना समझदारी होगी।”
अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में आर्थिक संकट ने इन देशों को इस तथ्य के प्रति सचेत किया कि भ्रष्टाचार, काला धन इत्यादि न केवल राष्ट्र विशेष की समस्या है अपितु यह दुनिया के लोकतंत्र, कानून के शासन और सुशासन के लिए भी चुनौती है। इसलिए सन् 2004 में संयुक्त राष्ट्र के ड्रग्स और क्राइम कार्यालय (United Nations Office on Drugs and Crime) द्वारा भ्रष्टाचार के विरुध्द एक विस्तृत कन्वेंशन औपचारिक रुप से अंगीकृत किया गया था। 56 पृष्ठीय दस्तावेज में संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्कालीन महासचिव श्री कोफी अन्नान की सशक्त प्रस्तावना थी, जो कहती है:
भ्रष्टाचार एक घातक प्लेग है जिसके समाज पर बहुव्यापी क्षयकारी प्रभाव पड़ते हैं:
इससे लोकतंत्र और कानून का शासन खोखला होता है।
मानवाधिकारों का हनन होता है।
बाजार का विकृतिकरण।
जीवन की गुणवत्ता का क्षय होता है, और
संगठित अपराध, आतंकवाद और मानव सुरक्षा के प्रति खतरे बढ़ते हैं।
भ्रष्टाचार के विरुध्द इस कन्वेंशन के अनुच्छेद 67 के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश दिसम्बर, 2005 तक इसे स्वीकृति देंगे, तत्पश्चात् शीघ्र ही सम्बंधित देश इसे पुष्ट करेंगे और स्वीकृति पत्र संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के पास जमा कराएंगे।
सन् 2010 में यूपीए सरकार ने इस मुद्दे को औपचारिक रुप से ध्यान में लेते हुए उस वर्ष के संसद के बजट सत्र में होने वाले राष्ट्रपति के पारम्परिक अभिभाषण में इसका उल्लेख करते हुए कहा ”भारत कर सम्बंधी सूचना के आदान-प्रदान को सुगम बनाने तथा कर चोरी की सुविधा देने वाले क्षेत्रों के खिलाफ कार्रवाई करने सम्बन्धी वैश्विक प्रयासों में सक्रिय भागीदारी निभा रहा है।”
सन् 2011 के अंतिम महीनों में भाजपा द्वारा आयोजित जन चेतना यात्रा ने तीन मुद्दों पर जोर दिया: महंगाई, भ्रष्टाचार और काला धन। सन् 2008 के कामॅनवेल्थ खेलों, भ्रष्टाचार और मंहगाई मीडिया के साथ-साथ संसद में सभी राजनीतिक चर्चाओं में प्रमुख स्थान पर रहे, परन्तु मैंने पाया कि यात्रा के दौरान जब भी मैं सभाओं को सम्बोधित करता था तो काले धन के मुद्दे पर जनता की प्रतिक्रिया बहुत ज्यादा अनुकूल रहता था।
सन् 2011 की जनचेतना यात्रा मेरी अब तक की यात्राओं की कड़ी में ताजा यात्रा थी। चालीस दिनों तक यह चली। देश के प्रत्येक प्रदेश और सभी संघ शासित प्रदेशों में मुझे जाने का अवसर मिला। आम धारणा है कि 1990 की मेरी पहली यात्रा-सोमनाथ से अयोध्या तक की, जो समस्तीपुर में रुक गई थी-को सर्वाधिक समर्थन मिला। अक्सर यह भी कहा जाता है कि इतना उत्साह इसलिए उमड़ा कि उसका मुद्दा मुख्य रुप से धार्मिक यानी राम मंदिर था। लेकिन मैं यहां उल्लेख करना चाहूंगा कि मेरी दो यात्राएं-1997 की स्वर्ण जयंती रथ यात्रा और 2011 की जन चेतना यात्रा को अभी तक सर्वाधिक समर्थन मिला है। ये दोनों सुशासन और लोगों की आर्थिक भलाई से जुड़ी थीं!
16 मई, 2012 को संसद में कालेधन पर प्रस्तुत श्वेत पत्र के आमुख में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने स्वीकार किया कि 2011 में ”भ्रष्टाचार और कालेधन के मुद्दों पर जनता की आवाज सामने आई।”
अपनी प्रस्तावना में श्री प्रणव मुखर्जी ने यह भी कहा:
”मुझे अत्यन्त प्रसन्नता होती यदि मैं उन तीनों प्रमुख संस्थानों जिन्हें काले धन की मात्रा और आकार पता लगाने के लिए कहा गया है, की रिपोर्टों के निष्कर्षों को भी इस में शामिल कर पाता। ये रिपोटर् इस वर्ष के अंत तक मिलने की उम्मीद है। फिर भी मैंने इस दस्तावेज को इसलिए रखा है कि संसद में इस हेतु आश्वासन दिया गया था।”
प्रणव दा ने इस श्वेत पत्र को इसलिए प्रस्तुत किया कि भाजपा ने इसकी मांग की थी, उन्होंने स्वीकारा:
”इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे जीवन के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में काले धन के प्रस्फुटीकरण का असर शासन के संस्थानों और देश में जननीति के संचालन पर पड़ता है। प्रणाली में शासन का अभाव और भ्रष्टाचार गरीबों को ज्यादा प्रभावित करता है। समावेशी विकास रणनीति की सफलता मुख्य रुप से हमारे समाज से भ्रष्टचार की बुराई के खात्मे और काले धन को जड़ से उखाड़ फेंकने की क्षमता पर निर्भर करती है।”
मुझे दु:ख है कि श्वेत पत्र पर कार्रवाई निराश करने वाली है।
उन तीन प्रमुख संस्थानों ने जिन्हें कालेधन की मात्रा पर रिपोर्ट देनी थी, ने अभी तक अपनी रिपोटर् नहीं सौपी हैं। न केवल अमेरिका, जर्मनी जैसे अधिक शक्तिशाली राष्ट्रों अपितु नाइजीरिया, पेरु और फिलीपीन्स जैसे छोटे देश भी टैक्स हेवन्स से अपनी अवैध लुटी सम्पत्ति को वापस पाने में सफल रहे हैं। दूसरी तरफ, भारत में हमें कुछ रिपोटर् देखने को मिली हैं जिनमें वे नाम हैं जिन पर स्विस बैंकों या ऐसे अन्य टैक्स हेवन्स में खाते रखने का संदेह है। लेकिन यह सुनने को नहीं मिला है कि अवैध ढंग से विदेशों में ले जाए धन में से एक पैसा भी वापस देश में लाया जा सका है।
श्री प्रणव मुखर्जी जो श्वेत पत्र प्रस्तुत करने के समय की तुलना में आज, ज्यादा निर्णायक भूमिका में हैं, से मैं अनुरोध करता हूं कि वे श्वेतपत्र में जनता से किए गए वायदे को सरकार द्वारा अक्षरश: पूरा करवाएं।