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Tag: TimePassJhalli Poetry

लोकी उगा लेन्दे ने हत्तान व्हिच सरसों मरजाणी हसाड़ी तली हींग वी नहीं धरदी

लोकी उगा लेन्दे ने हत्तान व्हिच सरसों
मरजाणी हसाड़ी तली हींग वी नहीं धरदी
अस्सी वी धो रखियां हथेलियाँ शैम्पू नाल
मंग के खाँण वाले कदे भूक्खहे नहीं मरदे

जाग कर भी सोने वाले सफ़ेद पॉश हुकमरान एक नहीं हजार मिलते हैं

जागते हुए सोने वाले सफ़ेद पॉश हुकमरान हजार मिलते हैं जीहाँ हर तरफ मिलते हैं
शायद यही वजह है जन्नत में रहने वाले भी जहन्नुम की ही आग में बिलखते हैं
कश्मीर है जन्नते हिन्दुस्तान ये सबने माना है सबने जाना है विदेशी भी दीवाना है
हुकमरानों की गफलतों से दोनों तरफ के कश्मीर में मचा हुआ दोजखी कोहराम है
हमें जाग जाने को कह रहे हैं आज कल, ऐसे कई जो दशकों से खोये हैं गफलतों में
हमें सोये हुए ख़्वाब देखने का हक़ नही ,हुकमरान जाग कर भी इंद्र लोक सजाये हैं
ये कया कह दिया कहाँ मिलते हैं जाग कर भी सोने वाले ऐसे सफ़ेद पॉश हुकमरान
अरे हुजूर ज़रा नजरें घुमा कर नजदीक देखिये एक नहीं ऐसे तो हजार मिलते हैं

ख़ुशी बेच ,उम्मीदों की सीढ़ियां बढ़ा,पूरी कर ख्वाहिशें,जिंदगी सुकून से गुजरती जाएगी

नफरतों की आँधियाँ यूं हीं बहा करती नही ,तन्हाईयों से खेलने का शगुल भी जिम्मेदार है
अरे पगले दुनिया पर ज़रा नजरें डाल कर तो देख,जवानी हर उम्र की अंगड़ाईयाँ ले रही है
खौफ,इन्तेजार,बोझिल शब्दों को डाल समुद्र में खुशियां बुनने को एक छोटी सी डोरी तूँ बना
कोशिश ईमानदार हो,नतीजे गर असरदार हों ,जमाना खुद ही हो जाएगा तुझ पर मेहरबान
जिंदगानी को खुशग़वारी का बस झोँका तो दिखा ,रूह में बसी खुशबू ये बोलेगी खुदबखुद
ख़ुशी बेच ,उम्मीदों की सीढ़ियां बढ़ा,ख्वाहिशें पूरी कर ,जिंदगी सुकून से गुजरती जाएगी

बालों में सफेदी,आँखों पर चढ़ा चश्मा लेकिन कमबख्त का सर झटकने से दिल ही नहीं भरा

बाँकी पलकें झुका कर कातिल अदा से उठाई उस जालिम ने
इस कदर उनमे खोया “झल्ला” पलकें झपकाना भूल गया
बालों को संवारने को जब उसने दिया अपने सर को झटका
कसम उस झटके की दिल उन्हींं जुल्फों में जाकर अटका
कसमे उसकी+खुद्की खा कर जब होने लगा मुह बदमज़ा
बालों में है उसके सफेदी और आँखों पर चढ़ा मोटा चश्मा
लेकिन कमबख्त का सर को झटकने से दिल ही नहीं भरा

वेस्टर्न यूं पी सिहर रही है+जनता सुलग रही है और सत्तारुड सपा उछल रही है

वेस्टर्न यूं पी सिहर रही है+ईस्टर्न यूं पी चमक रही है
जनता बेचारी सिमट+सुबग+सिसक रही है और
सपा तो उछल रही है इसीलिए सभी को खटक रही है
बिजली हो+बीमारी हो+अपराध हो या भाई चारे का नाश
कांग्रेस भटक रही है+बसपा भाम्भड भूसे है
और भाजपा बिलख बिलख ओनली उछल रही है
और अभिशिप्त बेचारी वेस्टर्न यूं पी सुलग रही है

चुनावी समय है बूथ तक ही जाना है ,लड़खड़ा गए तो कहाँ संभल पाओगे

बहुत कह चुके बहुत सह चुके, कब तक यूं ही गिड़गिड़ाओगे,
किस्मत का नहीं है ये दोष,अपनी करनी सामने पाओगे
महंगाई+बेरोजगारी को लेकर, कब तक कर्म फ़ुड़वाओगे
,करनी जो है दूसरों की कब तक खुद के मत्थे मढ़ते जाओगे
नींद से जागोगे तभी कुछ पाओगे ,सोते रह गए तो हेल्थ भी गवाओगे
चुनावी समय है बूथ तक ही जाना है ,लड़खड़ा गए तो कहाँ संभल पाओगे
माना नही है तुम्हें बदलाव की आस, गन्दी सियासत से हो चुके हो निराश
आने वाली पीढ़ी को क्या देकर जाओगे ,ये सोचोगे तभी कदम बढ़ाओगे
जो बढाए अपना हाथ मीना उसी का है ,ये खुला राज तुम कब जान पाओगे

होली के स्वगातार्थ हो रहा शायद अभ्यास ,मौसेरे थे ओनली दो अब तीन मचावें शोर

चोर चोर का देखो भैया शोर मचा चंहु और,चोर, चोर ढूंढ़ने लगे मिल्या चोर नहीं कोई
मोदी और राहुल बतावें एक दूसरे को चोर ,मोदी के राहुल है तो राहुल के दूसर नाकोई
एक नया खिलाड़ी आया नया पैंतरा लाया ,कहने को ये “आप” है चोर औरों को बताया
मोदी ,राहुल चोर हैं केजरीवाल ने समझाया,तीनो महान एक दूसरे पर कीचड़ रहे उछाल
होली के स्वगातार्थ हो रहा शायद अभ्यास ,मौसेरे थे ओनली दो अब तीन मचावें शोर

हाँ दिल कभी कहते नहीं थकता था वन्स मोर वन्स मोर अब तो बर्दाश्त नहीं होता इस किस्म का कोई भी शोर

चाँद मांगे रोज मुझसे जो कभी चाँद दिखता था |
अब में कैसे उसे बताऊँ हाल अपने बूढ़े दिल का ||
हाँ था जरूर कभी अरमान चाँद को चाँद दिलाने का |
जज्बा था ,हौंसला था,हिम्मत थी जब दिल जवाँ था||
हाँ दिल कभी कहते नहीं थकता था वन्स मोर वन्स मोर|
अब तो बर्दाश्त नहीं होता इस किस्म का कोई भी शोर||
जिस आसमानी चाँद की ख्वाहिश हुई है जाती उम्र में|
अपने लिए वोह चाँद भी अब वोह वाला चाँद कहाँ रहा||

पहली जवाँ छुवन का अहसास रहता है जिंदगी भर याद

यादों के सहारे सबकी जिंदगानी कट ही जाती है झल्ला
अपने लिए तो जवाँ नजर का पहला अहसास ही काफी है
पहली कमाई संजों कर रखने की रहती है सबको आस
पहली नजर का पहला नजराना भी होता है कुदरती देन
पहली जवाँ छुवन का अहसास रहता है जिंदगी भर याद
असली होती है ,पवित्र होती है, होती है ये पहली सौगात

महंगी सब्जियों के लिए सारा दोष देसी गरीबों पर ही लगाया ,कोई इनसे पूछे क्यूँ कर खेती की भूमि पर सब्सिडी घटाया

महँगी हुई सब्जी इस हकीकत को ,कांग्रेस ने भी मान लिया
इसके बचाव में कपिल सिब्बल का ताजा तरीन ब्यान आया
कोसा गरीबों को सब्जियां खाने पर ,सब्जी महंगी कराने को
महंगी सब्जियों के लिए सारा दोष देसी गरीबों पर ही लगाया
पहले चावल का संकट आया था जिसके लिए जान बचाने को
गेहूं खाने वाले भी चावल खाने लगे हैं कुछ ऐसा ही कहा गया
अब ये दलील स्वाभाविक रूप से कुछ अपील नहीं कर रही
कोई इनसे पूछे क्यूँ कर खेती की भूमि पर सब्सिडी घटाया