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Tag: Vote Bank Politics

Airports in AP Is Not A Vote Bank Politics But Implementation Of Mandate

Airports in AP Is Not A Vote Bank Politics: It Is Implementation Of Mandate. Ministry of Civil Aviation In Government of India Issued This Clarification
A section of the Press carried an article wherein it has been insinuated that international airports in Tirupati, Vijayawada and Vishakhapatnam are sought to be built with a view to please voters.
Responding to this news item,the Ministry of Civil Aviation clarifies that the said insinuation is far from the truth. As a result of bifurcation of the State of the erstwhile Andhra Pradesh, the residual state of Andhra Pradesh has been left bereft of a capital city and an international airport. Thus, the move to develop international airports at Vijayawada, Vishakhapatnam and Tirupati is only a step being taken to implement the mandate given in the Andhra Pradesh Reorganisation Act, 2014 and it is not to please any section of voters in the state of Andhra Pradesh.

वोट बैंक की तुष्टिकरण के कारण अल्प संख्यको के कल्याणकारी कार्यक्रम फाइलों से बाहर नहीं आ पा रहे हैं

Indian Parliament

Indian Parliament

अल्प संख्यको के कल्याण के लिए आज कल तमाम दावे किये + आश्वासन दिए जा रहे है लेकिन आंकड़े बताते हैं के ये तमाम दावे केवल वोट बैंक की तुष्टिकरण ही हैजो की संसद में दिए गए बयानों से साबित भी होता है| अल्पसंख्यक कार्य राज्य मंत्री श्री निनोंग ईरींग+भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उपक्रम मंत्री प्रफुल्ल पटेल के आलावा प्रधानमंत्री के सलाहकार सैम पित्रोदा ने भी किसी न किसी रूप में इसे स्वीकार किया है और उस पर पर चिंता भी व्यक्त की है| आज देश में नौकरियों के अवसर नहीं हैं +इंडस्ट्रीज निष्क्रिय होती जा रही हैं+महंगाई काबू से बाहर होती जा रही हैं यहाँ तक कि सरकार की विश्वसनीयता+कार्य क्षमता पर देश और विदेश में भी प्रश्न चिन्ह लगने लगे हैं|संसदीय प्रणाली में संसद आये दिन ठप्प की जा रही है|अपनी अक्षमताओं को ढकने के लिए सम्प्रदाईक्ता की मारिजुआना[नशा] हवा में मिलाया जा रहा है|शायद इसी सब से एक बरस में ढाई कोस चालने वाली कहावत अब ज्यादा चरितार्थ हो रही है|
देश में वर्तमान १ ,०२८ ,६१० ,३२८ की जनसंख्या में अल्प संख्यको की संख्या १३८ ,१८८ ,२४० बताई जा रही है जो 13.43%: है| केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों के अनुसार प्रदेशों में कुल बजट का १५% अल्प संख्यको के कल्याण के लिए रखा जाना है| |बिहार में मदरसों के शिक्षकों के वेतन के लिए दस करोड़ की राशी अवमुक्त की जाती है तो उत्तर प्रदेश में अल्प संख्यकों के लिए बजट का २०% आरक्षित किया जाता है| ये सभी बातें अच्छी लगती हैं वास्तविकता इसके अनुरूप दिखाई नही देती ||
भारत में शिक्षा की मौजूदा गुणवत्ता पर चिंता जाहिर करते हुए प्रधानमंत्री के सलाहकार सैम पित्रोदा ने स्वयम कहा है कि सरकारी मंत्रालयों एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग :यूजीसी: की मानसिकता में तेजी से बदलाव नहीं हो रहा और वे अब भी अंधकार युग में ही जी रहे हैं|
जाहिर है इसीके फलस्वरूप कल्याण कारी कार्यक्रम फाईलों से बाहर नहीं आ पाते हैं| यहाँ तक के शिक्षा का स्तर भी ऊपर नहीं उठ रहा है| इसके आलावा
[अ] राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में वित्त तथा कर्मचारियों की कमी है
[१] केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रमों में कर्मचारियों की संख्या 28 .8 %कम हुई है।
[२]भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उपक्रम मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने आज लोकसभा को बताया कि 31 मार्च 2012 की स्थिति के मुताबिक कर्मचारियों की संख्या घटकर 13 . 98 लाख रह गयी है जो 1997-98 में 19 . 65 लाख थी।
[३]उन्होंने एक सवाल के लिखित जवाब मेंं बताया कि 31 मार्च 2012 की स्थिति के अनुसार केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रमों की संख्या 260 थी। 2010-11 में यह संख्या 248 थी।
[४]कर्मचारियों/अधिकारियों की सेवानिवृत्ति के कारण एनसीएम में कतिपय पद खाली पड़े हैं|
[५] एनसीएम [ नेशनल माइनॉरिटी कमीशन ]कोई कल्याणकारी परियोजनाएं नहीं चला रहा है|
[६] राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को संवैधानिक दर्ज़ा नहीं दिया गया है|
अल्पसंख्यक कार्य राज्य मंत्री श्री निनोंग ईरींग ने आज लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि पिछले तीन वर्षों और मौजूदा वर्ष में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) को दी गई निधियों के परिव्यय और एनसीएम द्वारा वास्तविक व्यय के ब्यौरे नीचे दिए गए हैं :
(करोड़ रुपये में)
क्रम संख्या
वर्ष== परिव्यय= =व्यय
[१]2010- ११=5.२६= 4.50
[२]2011-१२==5.६५==4.67
[३]2012-१३=6.३६=3.32 (31.12.2013 तक)
[४]2013-१४=5.६३===-
श्री ईरोंग ने यह भी स्वीकार किया कि
[क]एनसीएम पिछले तीन वर्षों के दौरान आबंटित निधियों को व्यय करने में असमर्थ रहा है ।
[का] एक बजटीय संगठन होने से एनसीएम प्रशासनिक मंत्रालय के आईएफडी के माध्यम से सीधे व्यय वहन कर रहा है ।
[ख ]इसके अलावा कर्मचारियों/अधिकारियों की सेवानिवृत्ति के कारण एनसीएम में कतिपय पद खाली पड़े हैं ।
[खा]एनसीएम कोई कल्याणकारी परियोजनाएं नहीं चला रहा है ।

उत्तर प्रदेश में स्मारकों के व्यवसाईक उपयोग और उसके विरोध को लेकर वोट बैंक की राजनीती शुरू हो गई है

:उत्तर प्रदेश में जाति धर्म के आधार पर राजनीती करने वाली सत्ता रुड समाज वादी [एस पी]और विपक्षी बहुजन समाज वादी[बी एस पी] पार्टियां लगता है अब जातियों को आपस में लड़ाने की तैय्यारी में लग गई है तभी दलित उत्थान के नाम पर बनाए गए स्मारकों को लड़ाई का मैदान बनाया जा रहा है| प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार ने दलित महापुरुषों की याद में बने १० अरब की लागत के विशाल स्मारकों से अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए स्मारकों के खाली हिस्सों को मैरिज होम्स [शादी-ब्याह] की तरह प्रोफेशनल उपयोग की इजाजत दे दी है जिसके विरोध में बी एस पी ने दलितों के सड़क पर उतरने की चेतावनी देते हुए सरकार को बर्खास्त करने की मांग की है|मुख्य मंत्री का कहना है कि स्मारकों में जनता का पैसा खर्च हुआ है। वहां शादी होने से शादी करने वालों की नहीं, स्मारकों की ख्याति ही बढे़गी। उनका प्रचार भी होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि चुनाव के समय स्मारकों में अस्पताल खोलने और बेहतर इस्तेमाल की बात हुई थी, तब उसे अंदर से नहीं देखा था। यहां के एक स्मारक में अष्टधातु के जानवर और पेड़ लगे हैं। वहां के खाली स्थानों में शादी-ब्याह होने से कौन सी दिक्कत है। मुख्यमंत्री बिना नाम लिए हुए कहा कि एक सरकारी स्थान की बुकिंग के लिए लाइन रहती है, क्योंकि सब जानते हैं कि अच्छे स्थान पर कम पैसों में शादी हो जाएगी। ऐसे में स्मारक का बेहतर इस्तेमाल हो जाएगा। शादी ब्याह होगा तो उनका प्रचार भी हो जाएगा। स्मारकों की ख्याति भी फैल जाएगी।
इस सरकारी घोषणा के विरुद्ध बी एस पी कड़ी हो गई है|सत्ता मुक्त हुई बी एस पी ने इस मुद्दे को सडकों पर ले जाने की बात कह दी है और जाति वादी युद्ध की भूमिका की तरफ इशारा भी कर दिया है|पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने राष्ट्रपति से मुलाकात करके प्रदेश सरकर के निर्णय को दलित विरोधी बताते हुए सरकार को तत्काल बर्खास्त किये जाने के मांग भी कर दी है|
लगता है के २०१४ में होने वाले लोक सभा के चुनावों में अपने अपने वोट बैंक को जोड़े रखने के लिए दोनों पार्टियों को एक मुद्दा मिल गया है|