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Tag: World Heritage Committee at Doha

यूनेस्को ने गुजरात के पाटण में स्थित ११ शताब्दी की रानी की वव[बावली] को विश्व धरोहर माना

गुजरात के टूरिज्म को यूनेस्को ने एक आज एक सौगात दी है | पाटण में स्थित ११ शताब्दी की रानी की वव को अब विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है |इससे गुजरात में पर्यटन को और बढ़ावा मिलेगा|
दोहा, कतर में इस समय यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति के चल रहे सत्र में यह मान्यता प्रदान की गई है । यूनेस्को ने इसे तकनीकी विकास का एक ऐसा उत्कृष्ट उदाहरण मानते हुए मान्यता प्रदान की है जिसमें जल-प्रबंधन की बेहतर व्यवस्था और भूमिगत जल का इस्तेमाल इस खूबी के साथ किया गया है कि व्यवस्था के साथ इसमें एक सौंदर्य भी झलकता है।
रानी की वव 11वीं सदी में बनी एक ऐसी सीढ़ीदार बावली है जो काफी विकसित और विस्तृत होने के साथ-साथ प्राचीन भारतीय शिल्प के सौंदर्य का भी एक अनुपम उदाहरण है। यह भारत में बावलियों के सर्वोच्च विकास का एक सुन्दर नमूना है। यह एक काफी बड़ी और जटिल सरंचना वाली बावली है जिसमें शिल्पकला से सजीं सात मंजिला सुन्दर पट्टियां है जो मारू-गुर्जरा शैली की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करती है।
भूगर्भीय परिवर्तनों के कारण आने वाली बाढ़ और लुप्त हुई सरस्वती नदी के कारण यह बहुमूल्य धरोहर तकरीबन सात दशकों तक गाद की परतों तले दबी रही। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इसे बड़े ही अनूठे तरीके से संरक्षित करके रखे रखा। इस बावली से संबंधित पूरे विवरण को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, सीवाईएआरके और स्कॉटिश टेन ने आपसी सहयोग से डिजिटल रूप में संभाल कर रख लिया है।
फरवरी 2013 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इसे विश्व धरोहर सूची के लिए नामांकित किया था। रानी की वव को नामांकित करने की प्रक्रिया और इस सम्पत्ति के प्रबंधन के लिए अपनाई गई रणनीति यूनेस्को के दिशा-निर्देशों के अनुसार ही अपनाई गई है। इसके लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग और गुजरात सरकार ने मिलकर काम किया। गुजरात सरकार ने रानी की वव के आसपास के क्षेत्र को भी विकास योजना में संरक्षित बनाए रखने को समर्थन दिया है। राज्य सरकार ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के साथ मिलकर रानी की वव के आसपास और ऐतिहासिक सहस्रलिंग तालाब के आसपास के खुदाई वाले क्षेत्र और निकट के दूसरे क्षेत्र को भी विकास योजना में भविष्य के लिए संरक्षित घोषित किया है।
रानी की वव ऐसी इकलौती बावली है जो विश्व धरोहर सूची में शामिल हुई है। जो इस बात का सबूत है कि प्राचीन भारत में जल-प्रबंधन की व्यवस्था कितनी बेहतरीन थी। भारत की इस अनमोल धरोहर को विश्व धरोहर सूची में शामिल करवाने में पाटण के स्थानीय लोगों का भी महत्वपूर्ण योगदान है जिन्होंने इस पूरी प्रक्रिया के दौरान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग और राज्य सरकार को हर कदम पर अपना पूरा सहयोग दिया है।

सांस्‍कृतिक मंत्रालय ने महत्व कांक्षी परियोजना “मौसम” को अंतर्राष्‍ट्रीय समुदाय के सामने प्रस्‍तुत किया

सांस्‍कृतिक मंत्रालय ने अपनी महत्व कांक्षी परियोजना “मौसम” को अंतर्राष्‍ट्रीय समुदाय के सामने प्रस्‍तुत किया। इस परियोजना की मुख्‍य विशेषता पूरे हिन्‍द महासागर क्षेत्र में यूनेस्‍को की विश्‍व धरोहर सूची की अंतर्राष्‍ट्रीय संपत्ति के रूप में समुद्रतटीय सांस्‍कृतिक क्षेत्र को नामांकित करना है।
संस्‍कृति मंत्रालय के सचिव श्री रविन्‍द्र सिंह ने 20 जून 2014 विश्‍व धरोहर समिति के 38वें सत्र में कतर के दोहा में सांस्‍कृतिक मंत्रालय की परियोजना मौसम को अंतर्राष्‍ट्रीय समुदाय के सामने प्रस्‍तुत किया।
इस मौके पर मौजूद यूनेस्‍को के महानिदेशक ने इस परियोजना में काफी रूचि दिखाई। चीन+संयुक्त अरब अमीरात+ कतर+ईरान+म्‍यामार + वियतनाम के राजदूतों ने भी बहुआयामी परियोजना के प्रति रूचि व्‍यक्‍त की।
सांस्‍कृतिक मंत्रालय के अनुसार मौसम परियोजना की विशेषताएं-मौसम : समुद्रतटीय मार्ग और सांस्‍कृतिक क्षेत्र को दो स्‍तरों पर स्‍थापित करना होगा। सामूहिक स्‍तर पर हिंद महासागर क्षेत्र के विभिन्‍न देशों के बीच फिर से संवाद और संबंधों की स्‍थापना करना जिससे इन देशों के बीच सांस्‍कृतिक मूल्‍यों और हितों को लेकर आपसी समझ विकसित हो सके। जबकि छोटे स्‍तर पर मुख्‍य ध्‍यान क्षेत्रीय समुद्र तटीय के मद्देनजर राष्‍ट्रीय संस्‍कृतियों को समझना है।
इस परियोजना से न केवल हिंद महासागर के विभिन्‍न तटवर्ती इलाके आपस में जुड़ सकेंगे बल्कि इस क्षेत्र के विभिन्‍न देशों के अंदरूनी क्षेत्रों से भी उनका संपर्क सुलभ हो सकेगा।
इस नई परियोजना पर प्रारंभिक कार्य की शुरूआत हो चुकी है इस संबंध में आईजीएनसीए+ राष्‍ट्रीय स्‍मारक प्राधिकरण (एनएमए), नई दिल्‍ली + आईआईसी के सहयोग से नई दिल्‍ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी) में व्‍याख्‍यानों की एक श्रृंखला शुरू की गई है। फरवरी 2015 में होने वाले पहले अंतर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन का आयोजन अनुसंधान में राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय भागीदार और सहयोगियों के साथ मिलकर किया गया।
मौसम परियोजना एक ऐसी उत्‍साहवर्धक परियोजना है जिससे हिंद महासागर क्षेत्र के विभिन्‍न देशों के बीच धुंधले पड़ चुके आपसी संबंधों में एक नया उत्‍साह और नई आशा का संचार होने से आपसी सहयोग और आदान-प्रदान के एक नए युग की शुरूआत होगी।

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