जाल परे जल जात बहि , तजि मीनन को मोह ।
रहिमन मछरी नीर को , तऊ न छाडत छोह ।
Rakesh khurana On Sant Rahim Das Ji
अर्थ : जब मछली पकड़ने के लिए नदी में जाल डाला जाता तब मछली जाल में फंस जाती है , और पानी अपनी सखी मछली का मोह त्याग कर आगे निकल जाता है , परन्तु मछली का जल से इतना प्रेम है कि वह पानी के बिना तड़प – तड़प कर मर जाती है ।
भाव : यहाँ कवि ने स्वार्थ और प्रेम की जल और मछली के रूपक से अच्छी व्याख्या की है कि स्वार्थी व्यक्ति का प्रेम सकारण होता है , किन्तु जिसने सच्चा प्यार किया है वह अपने प्रिय के वियोग में अपने प्राण तक दे देता है ।
मछुआरा मछली पकड़ने के लिए पानी में जाल फैलाता है ।मछली उसमें फंस भी जाती है , किन्तु जल तो अपने भीतर रहने वाली मछली का मोह एकदम से त्याग देता है और जाल से निकल जाता है , किन्तु जल के अभाव में बेचारी मछली दम तोड़ देती है ।
संत रहीम दास जी
प्रस्तुति राकेश खुराना
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