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Category: Poetry

मेरा मुझ में कुछ नहीं , जो कुछ है सब तोर

मेरा मुझ में कुछ नहीं , जो कुछ है सब तोर ।
तेरा तुझ को सोंपते , क्या लागत है मोर ।
भाव : शिष्य गुरु को दे ही क्या सकता है । यह तो कहने की बात है कि मैंने दे दिया । यह तन तो मैंने इसलिए वार दिया क्योंकि गुरु का करम है मुझ पर , जो आज मेरा तन कायम है । मन जब तक मेरा नहीं होता , मैं दे नहीं सकता और मन को काबू में करने के लिए गुरु की नजरे इनायत की जरुरत है । उसके करम की जरुरत है । जो धन है वह तो देन उसी की है , तो मैंने अपना क्या दिया ? मैं दे ही क्या सकता हूँ ?
प्रस्तुति राकेश खुराना

सबकी गठरी में नाम रूपी लाल है, जड़ -चेतन की गांठ खोल कर देख लो

भीखा भूखा को नहीं , सब की गठरी लाल।
गिरह खोल नहीं जानते , ताते भये कंगाल ।
वाणी :- भीखा साहब जी

Rakesh Khurana


भाव : भीखा साहब जी कहते हैं कि सबके पल्ले में ‘नाम’ रुपी लाल बंधा पड़ा है पर उसमे जड़ -चेतन की ग्रंथि (गाँठ) बंधी पड़ी है । जब तक यह गाँठ न खुले , अर्थात पिंड से ऊपर आकर नाम का अनुभव न मिले , हम भूखे के भूखे रह जाते हैं । दौलत के होते हुए भी हम भूखे हैं परन्तु
‘नाम’ को पाकर हम सुखी हो जाते हैं । ‘नाम’ सब में परिपूर्ण है , फिर भी हम दुखी हैं ? वे कहते हैं कि हमने उसे प्रकट नहीं किया है ।
वाणी :- भीखा साहब जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

प्रभु की रोशनी की किरण बनने से ज़िंदगी का ध्येय पूरा होगा:संत दर्शन सिंह जी

जो रूह बन के समा जाए हर रगों -पै में ।
तो फिर न शहद में लज्ज़त न सागरे – मैं में ।
वही है साज के पर्दे में , लेहन में , लै में ।
उसी की ज़ात की परछाइयाँ हर इक शै में ।
न मौज है न सितारों की आब है कोई ।

प्रभु की रोशनी की किरण बनने से ज़िंदगी का ध्येय पूरा होगा:संत दर्शन सिंह जी


तजल्लियों के उधर आफ़ताब है कोई ।
संत दर्शन सिंह जी महाराज
भाव: संत दर्शन सिंह जी महाराज फरमाते हैं जब हमारी रूह सिमटती है और प्रभु के शब्द के साथ जुडती है
तो उसमे इतनी मिठास आ जाती है जितनी न तो शहद में है , न मैं के पैमानों में है , वह तो सुरीले संगीत
में मस्त हो जाती है । बाहर के संगीत से उसका कोई मुकाबला नहीं हो सकता । जैसे लहरें समुद्र का हिस्सा
होती हैं , वैसे ही अंतर्मुख होने पर हम उस शब्द का हिस्सा बन जाते हैं , प्रभु में लीन हो जाते हैं । वह मस्ती
न इन सितारों में है , न आसमान में है , न सूर्य में है , न चंद्रमा में है । इस मंडल के पार जो दुनिया है उसका
अपना सूर्य है , उनका इशारा प्रभु की ओर है । प्रभु की रोशनी से ही चारों ओर उजाला है । उस सूर्य की हमें
किरणें बनना है । जब हमारी अंदरूनी आँख इस सूर्य को देखेगी तो हमारी ज़िंदगी का ध्येय पूरा हो जायेगा ।
सावन कृपाल रूहानी सत्संग के संत दर्शन सिंह जी महाराज की रूहानी शायरी
प्रस्तुति राकेश खुराना

प्रभुजी मेरे औगुन चित न धरो

प्रभुजी मेरे औगुन चित न धरो ।
समदरसी है नाम तिहारो , अब मोहिं पार करो ।
महाकवि संत सूरदास

प्रभुजी मेरे औगुन चित न धरो

भाव : महाकवि संत सूरदास कहते हैं हे प्रभु , आप मेरे पिता हैं और मैं तो एक बालक हूँ। बालक तो अक्सर गलतियाँ करता रहता है ।
कृपया आप मेरी गलतियों पर ध्यान न दें । आप तो सबको एक नजर से दखते हैं । आप के अन्दर तो समभाव है । हम माया
के जाल में फँसे हुए हैं , हे प्रभु आप से प्रार्थना है कि आप हमें इस चौरासी लाख जियाजून के चक्कर से निकालिये । मूलरूप से
हम प्रभु का ही अंश हैं , हम सब चाहते हैं कि वापस परमात्मा में जाकर लीन हो जायें ।
सूरदास जी को महाकवि[सूर सूर ] कहा जाता है इनकी संगीत मय कृष्ण भक्ति से समकालीन बादशाह अकबर भी इनके भजनों के कायल थे|महा कवि ने कृष्ण भक्ति में जीवन गुजार दिया| जीवन के अंतिम समय में इन्होने कृष्ण जन्म भूमि पर कृष्ण के भजन गा गा कर मौक्ष प्राप्त किया
प्रस्तुति राकेश खुराना

संतों को तो पूजते हैं लेकिन संतों के कल्याणकारी उपदेशों को नहीं मानते

अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए पुज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी नें आज राम के नाम में निहित सभी प्रकार के आनंद के रहस्य को उजागर करते हुए कहा , कि
” राम में आनंद है, राम परमानन्द है” मनुष्य सुख, चैन, प्रसन्नता , सांसारिक संपदाओं में ढूंढता है, उसे प्रसन्नता तो मिलती है
परन्तु वह क्षणिक होती हैं जबकि परम आनंद तो प्रभु के नाम में है । राम के नाम की पूँजी से हमें स्थायी प्रसन्नता मिलती है ।
हम ज्ञानहीन मनुष्य वास्तु कहीं पड़ी होती है और ढूंढते कहीं और हैं । संतजन समझाते हैं की बार-बार सत्संगों में आया करो,
संत अपने जप- ताप के बल से आपके ह्रदय में प्रभु के नाम की ज्योति जलाकर आलोकिक प्रकाश उत्पन्न कर देंगे। पर हम अज्ञानी

संतों को तो पूजते हैं लेकिन संतों के कल्याणकारी उपदेशों को नहीं मानते

जीव संतों को तो मानते हैं परन्तु संतों की बात नहीं मानते । हमारे मन पर जन्मों-जन्मों से अज्ञान, मोह, माया के अनगिनत परदे
पड़े हैं जिसके कारण हम प्रकाश का अनुभव नहीं कर पाते । धीरे-धीरे नाम जपते जपते परदे हटते रहते हैं और हम प्रकाश का आनंद
लेना शुरू कर देते हैं । हम जितना – जितना प्रभु के समीप आते हैं हमें आनंद, प्रसन्नता, सुख, चैन का अनुभव होता रहता है ।
इससे पूर्व पूज्य श्री भगत जी ने रात्रि सत्संग का शुभारम्भ माता की पावन ज्योति प्रज्ज्वलित करके किया| । गुरु वंदना एवं गणेश वंदना के पशचात भगत जी नें माता की भेटों द्वारा माँ भगवती का गुणगान किया। श्रधालुओं से खचा खच भरा सभागृह तालियों की थाप से गूँज उठा । माता रानी के जयकारों से सारा वातावरण भक्तिमय हो गया।
गौर तलब है कि लालकुर्ती स्थित श्री शक्तिधाम मंदिर , लालकुर्ती में पिछले 24 वर्षों से नवरात्री महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है| मातारानी के स्वरुप के दर्शन करने तथा पुज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी के श्रीमुख से भजन, भेटें एवं दिव्य प्रवचन श्रवण करने हेतु मेरठ तथा आस-पास के क्षेत्रों से भारी संख्या में भक्तजन मंदिर में एकत्र होते हैं। श्रधालुओं को लाने लेजाने के लिए बसों की व्यवस्था की गई है|
प्रेषक :श्री शक्ति धाम मंदिर का सेवक राकेश खुराना

मुझे चरणों में ही रखो ताकि में अन्दर बाहर आपके दर्शन कर सकूँ ।

जनम जनम के बीछुरे हरि अब रह्यो न जाय ।
क्यों मन कू दुःख देत हो बिरह तपाय तपाय ।

मुझे चरणों में रखो ताकि में अन्दर बाहर आपके दर्शन कर सकूँ ।

भाव : दयाबाई जी कहती हैं हे प्रभु ! मैं जन्म जन्म से आपसे बिछुड़ी हुई हुईं और आगे मैं ज्यादा
इंतजार नहीं कर सकती ।यह विरह मुझे हर वक्त तडपा रहा है आप अंतर में भी आ जाओ
और बाहर भी मुझे अपने चरणों में रखो ताकि में अन्दर बाहर आपके दर्शन कर सकूँ ।
वाणी : दयाबाई जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

आत्मा से आवरण को हटा कर ही जीवन चक्र से मुक्ति संभव है

जब लग चावल धान में , तब लग उपजै आय ।
जब छिलके कूँ तज निकस , मुक्त रूप हो जाय ।

आत्मा से आवरण को हटा कर ही जीवन चक्र से मुक्ति संभव है


भाव : जब तक चावल धान के रूप में होता है , उसे हम दुबारा बोकर फसल उपजा सकते हैं । अगर हम
इसे भिगोकर इसका छिलका उतार लें , जो हमारे खाने लायक चावल का रूप ले लेता है , वह चावल
फिर से उगाने के स्वरूप से मुक्ति पा लेता है ।इसी उदाहरण के जरिये सहजोबाई जी ने हमें जीवन
के गूढ़ रहस्य को समझाने का प्रयास किया है । वे चावल के दाने को आत्मा से संबोधित करती हैं ।
जब तक हमारी आत्मा पर चावल के छिलके की तरह आवरण चढ़े होते हैं , हम जीवन के आवागमन
के चक्र में चलते रहते हैं ।
वाणी : सहजो बाई जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

गिरह खोल नहीं जानते , ताते भये कंगाल

भीखा भूखा को नहीं , सब गठरी लाल ।
गिरह खोल नहीं जानते , ताते भये कंगाल ।

गिरह खोल नहीं जानते , ताते भये कंगाल


भाव : भीखा साहब कहते हैं इस जगत में नाम रुपी लाल सब के पास है , कोई भी
ऐसा नहीं है जिसके पास यह दौलत नहीं है । परन्तु उसमे जड़ -चेतन की
गाँठ बँधी पड़ी है । जब तक यह गाँठ न खुले अर्थात इस पिंड से ऊपर उठकर
नाम का अनुभव न मिले , हम भूखे के भूखे रह जाते हैं ।
वाणी : भीखा जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

हमें लगी है तलब कुछ जख्म तो और दीजिये||

हमने कहा था कब की हमें मल्ह्म्म दीजिये|
हमें लगी है तलब कुछ जख्म और दीजिये||
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हमें लगी है तलब कुछ जख्म तो और दीजिये|


मल्हम्म हमें लगा कर मुह फिर लें जरूर|
नासूर बनने का सरूर ही कुछ और है हुज़ूर||
आइयेगा एक बार शौक जरूर फरमाईयेगा |
& एक बार आइयेगा तो वापिस ना जा पाइयेगा

बिरही तीरथ में अपना ही दिल बहलाते हैं||

मोहब्बत के दिन हवा हुए ,विरहा के मायने बदल गए |
सिक्कों की उम्र बीत गई,नोटों का चलन भी छूट गया||
कहने को तीर्थ तो जाते हैं ,विरहा के गीत भी गाते हैं|
लेकिन अब बिरही तीरथ में अपना ही दिल बहलाते हैं||
यहाँ से वहां और कहाँ से कहाँ घूमघाम के आते हैं|
खोटे दिल के सिक्के दिल खोल के चड़ाते जाते हैं ||
इसीलिए काश्मीर हो या फिर हो कन्या कुमारी |
सभी जगह द्रष्टि गोचर हो रही यही महा बीमारी|