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Category: Poetry

दैविक प्रेम अमरत्व का प्रतीक है.

प्रेम भक्ति को पैडो न्यारों, हमकू गैल लगा जा.

संत मीराबाई जी सतगुरु से प्रार्थना करती हुई कहती है, हे सतगुरु! प्रेम और
भक्ति का मार्ग मेरे लिए नितांत अजनबी और कठिन है. तुम मुझे इस पथ पर लगा
दो ताकि मैं सरलता से परमात्मा के दर्शन पा सकूँ.
प्रेम कि महान मूर्ति मीराबाई के जीवन से हमें यह सन्देश मिलता है कि दैहिक प्रेम
क्षणभंगुर है जबकि दैविक प्रेम अमरत्व का प्रतीक है. क्योंकि सच्चे प्रेम को तो
परमात्मा के स्वरुप में समाहित हो जाना है. प्रभु से एकाकार होना ही सबसे बड़ी
आराधना है और उसका एकमात्र रास्ता प्रेम है.
संत मीरा बाई वाणी

ज़िन्दगी मिली है दोस्ती के वास्ते= संत दर्शन सिंह

संत दर्शन सिंह जी महाराज के देश – विदेश में किए गए प्रवचनों से लिया गया एक अंश

ज़िन्दगी हमको मिली है दोस्ती के वास्ते
जान तक दे दो मुहब्बत की ख़ुशी के वास्ते
रूहानी मिशन सावन आश्रम के संत दर्शन सिंह जी महाराज
हमारी जो जिंदगी है उसका ये मकसद है कि हम दूसरों से हमदर्दी करें , दोस्ती करें , दूसरों के दुःख – दर्द हम बांटें
और अगर हम इतिहास के पन्ने पलटें , तारीखों पर नजर डालें तो हम देखेंगे कि जितने भी महापुरुष हुए हैं उन सबने हमारे
दुखों और दर्दों को बांटने में क़ुरबानी दी है . प्रभु को पाने का जो रास्ता है , ये क़ुरबानी का रास्ता है परम संत कृपाल सिंह जी
महाराज अक्सर फ़रमाया करते थे कि प्रेम निष्काम सेवा और त्याग करना जनता है .इशु -मसीह के जीवन को देखिए वो सूली
पर चढ़ गए , शम्स तरवेज की खाल खींच ली गई. पंचम पातशाह श्री गुरु अर्जुन देव जी महाराज को गर्म तवे पर बिठाया गया .
उनके दोस्त हजरत मियां मीर से ये बात देखी नहीं गई और उन्होंने गुरु अर्जुन देव जी महाराज से कहा , अगर आप इजाजत दें
तो मैं खानदाने मुगलिया की ईंट से ईंट बजा दूँ ,तो सच्चे पातशाह ने फ़रमाया – दोस्त , क्या ये मैं नहीं कर सकता ? मगर हमारा
जो रास्ता है वो राज़ी – बा – रज़ा रहने का है वो ‘तेरा भाणा मीठा लागे ‘ का मार्ग है और यही शब्द उच्चारण करते हुए उन्होंने
प्राण त्याग दिए

आश्रम की शोभा संत महापुरुष मंदिरों की शोभा विग्रहों से है

श्री रामशरणम् आश्रम, गुरुकुल डोरली , मेरठ के परमाध्यक्ष

पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी के प्रवचन का एक अंश.

संतजन जिज्ञासुओं को समझाते हुए कहते हैं कि संसार में दो प्रकार के मंदिर हैं. एक तो चल मंदिर तथा दूसरे अचल मंदिर.
संत महापुरुष चल मंदिर अर्थात चलते फिरते मंदिर हैं. एवं अचल मंदिर ईंट तथा पत्थरों से बने मंदिर हैं. यद्यपि दोनों
ही भक्ति के साधन हैं. परन्तु चल मंदिरों से अचल मंदिरों की शोभा है.

भक्तजन आश्रमों में संत महापुरुषों के दर्शन को जाते हैं , अगर किसी आश्रम में संत महापुरुष ही न हों
तो मनुष्य दीवारों के दर्शन करने नहीं जाते हैं. अतः आश्रमों की शोभा संत महापुरुषों से ही है.

इसी प्रकार भक्तजन जब मंदिर में जाते हैं तो भगवन के स्वरुप, देव प्रतिमा के सामने नतमस्तक होते हैं.
ऐसा करने से भक्तजनों को आत्मिक प्रसन्नता प्राप्त होती है. अगर मंदिर में देव प्रतिमा नहीं हो तो
मनुष्य किसके दर्शन करने जाएगा? अतः मंदिरों की शोभा देव प्रतिमाओं से ही है.

प्रभु से दूर होने पर अमूल्य जीवन धुल समान

परम पूज्य स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित भक्ति प्रकाश ग्रन्थ का एक अंश.

मन तो तुम मैं रम रहा, केवल तन है दूर.
यदि मन होता दूर तो मैं बन जाता धूर.

भावार्थ: एक जिज्ञासु परम पिता परमात्मा को शुक्रिया अदा करते हुए कहता है कि हे प्रभु!! मुझ पर तुम्हारी
कितनी अधिक कृपा है कि मेरा मन आपके सुमिरन में लगा हुआ है. मैं केवल तन से ही आपके पावन चरणों से
दूर हूँ परन्तु मेरा मन आपके चरणों की स्तुति में लगा हुआ है. यदि मेरा मन भी आपसे दूर होता तो में कुछ भी नहीं
होता, मेरी स्थिति धूल के समान होती.

प्रभु ने यह मानव काया हमें उसका नाम लेने के लिए दी है अर्थात इस मानव जन्म का उद्देश्य नाम के जाप द्वारा प्रभु की
प्राप्ति करना है. यदि हमने सारा जीवन सांसारिक विषयों तथा माया में ही व्यर्थ कर दिया और प्रभु का नाम नहीं जपा तो
हमारा जीवन किसी काम का नहीं तथा हमारी काया की स्थिति धूल से ज्यादा नहीं है.

इन्द्रियों का प्रकाशक मन है

श्रीमदभागवद गीता के अनंत ज्ञान के सागर की कुछ बूँदें

परमात्मा सम्पूर्ण ज्योतियों की ज्योति तथा अज्ञान से अत्यंत परे हैं. परमात्मा ज्ञान स्वरुप एवं ज्ञान से प्राप्त
करने योग्य हैं. प्रभु सब के ह्रदय में विराजमान हैं.
शब्द का प्रकाशक कान है. स्पर्श का प्रकाशक त्वचा है. रूप का प्रकाशक नेत्र है. रस का प्रकाशक जिव्ह्या है.
गंध का प्रकाशक नासिका है. इन मन का प्रकाशक बुद्धि है. बुद्धि का प्रकाशक
आत्मा है एवं आत्मा का प्रकाशक परमात्मा है. परम पिता परमात्मा का प्रकाशक कोई नहीं है.
जैसे सूर्य मैं अन्धकार कभी नहीं आ सकता इसी प्रकार परम प्रकाशक परमात्मा में अज्ञान कभी नहीं आ सकता

परमात्मा की स्मृति में सभी सुख हैं =पूज्य नीरज मणि

Pujyshri Bhagat Neeraj Mani Rishi Ji Gurukul Dorli Meerut

श्री रामशरणम् आश्रम, गुरुकुल डोरली , मेरठ के परमाध्यक्ष पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी के प्रवचन का एक अंश.
हम माया के वशीभूत होकर परमेश्वर को भुला बैठते हैं. हे प्रभु हम भुलन्हार हैं आप बक्शंहार हो. आप हमें कभी न भुलाना,
हम संसार के हाथों में हैं और संसार आपके हाथों में है. हम नर हैं आप नारायण हो. आप हम पतितों को पावन करने वाले हो.
परमात्मा की स्मृति में सभी सुख हैं तथा परमात्मा से विस्मृति में सभी दुःख हैं.
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी जिज्ञासुओं को समझाते हुए कहते हैं की हमारे जीवन में उतार चढ़ाव आते हैं. मनुष्य
के जीवन में सुख भी आते हैं और दुःख भी आते हैं, यश भी मिलेगा और अपयश भी मिलेगा. हमें सुख के समय प्रभु का शुक्रिया
अदा करना चाहिए तथा दुःख के समय प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें दुःख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें, क्योंकि
परमात्मा की इच्छा के बिना हम दुःख भी नही भोग सकते.

श्री रामशरणम् आश्रम, गुरुकुल डोरली , मेरठ

संसार की प्यास हो तो परमात्मा लुप्त हो जाते हैं.

प्रभु को पाने के लिए प्यासे जिज्ञासुओं को समझाते हुए प्रभु कहते हैं कि जिसके भीतर
प्यास होती है उसे ही जल दीखता है. अगर प्यास ना हो तो जल सामने रहते हुए भी नहीं दीखता .ऐसे ही जिस में परमात्मा कि प्यास (लालसा) है, उसे परमात्मा दीखते हैं और जिसके भीतर संसार कि प्यास है , उसे संसार दीखता है. परमात्मा कि प्यास है तो संसार लुप्त हो जाता है और अगर

परमात्मा कि प्यास जाग्रत होने पर भक्त को भूतकाल का चिंतन नहीं होता, भविष्य की आशा
नहीं रहती और वर्तमान में परमात्मा को पाने की निरंतर कोशिश रहती है.

जब साधक संसार में किसी भी वस्तु-व्यक्ति को अपना तथा अपने लिए नहीं मानता बल्कि
एकमात्र भगवान् को ही अपना एवं अपने लिए मानता है, तब वह अकिंचन हो कर भगवान् का प्रेमी हो जाता है.
श्री मदभगवदगीता की अमृतमयी वर्षा की एक बूँद.

मनुष्य की विशेषताएं ईश्वरीय देन हैं

संतजन मनुष्यों को समझाते हुए कहते हैं कि मनुष्य में जो भी विशेषता आती है, वह सब भगवान से ही आती है.
अगर भगवान में विशेषता न होती तो वह मनुष्य में कैसे आती? जो वस्तु अंशी में नहीं है, वह अंश में कैसे आ सकती
है? जो विशेषता बीज में नहीं है वह वृक्ष में कैसे आएगी?
उन्ही भगवान कवित्व शक्ति कवि में आती है,
उन्हीं की वक्तृत्व शक्ति वक्ता मैं आती है!
उन्ही की लेखन शक्ति लेखक में आती है,
उन्ही की दातृत्व शक्ति दाता में आती है.
जिनसे मुक्ति, ज्ञान, प्रेम आदि मिले हैं उनकी तरफ दृष्टि ना जाने से ही ऐसा दीखता है कि मुक्ति मेरी है, ज्ञान मेरा
है, प्रेम मेरा है. यह तो देने वाले भगवान् की विशेषता है कि सबकुछ देकर भी वे अपने को प्रकट नहीं करते, जिस से
लेने वाले को वह वस्तु अपनी ही मालूम होती है. मनुष्य से यह बड़ी भूल होती है कि वह मिली हुई वस्तु को तो अपनी
मान लेता है किन्तु जहाँ से वह मिली है उसको अपना नहीं मानता.
संतवाणी

संत के चरण कमलों में मुक्ति मार्ग है

चारि पदारथ जे को मांगै, साध जना की सेवा लागै
जे को आपुना दुखु मिटावै, हरि-हरि नामु रिदै सद गावै
जे को अपुनी सोभा लोरै, साध संगी इह हउमै छोरै
जे को जनम मरण ते डरे , साध जना की सरनी परै .

भाव:

चारों पदार्थों ( धर्म, अर्थ,काम,मोक्ष) में से कोई कुछ चाहे तो उसे सद्गुरु की सेवा करनी चाहिए. अगर किसी को
दुःख और कष्टों से छुटकारा पाने की इच्छा हो तो उसे अपने आन्तरिक ह्रदय आकाश की गहराई में जाकर शब्द (नाम)
के साथ संपर्क स्थापित करना चाहिए. अगर किसी को अपनी प्रसिद्धि और नाम की इच्छा हो तो किसी संत की संगत
में जाकर अपने अहंकार का त्याग करना चाहिए. अगर किसी को जीने- मरने के कष्ट से डर लगता है तो किसी संत
के चरण कमलों का सहारा ढूँढना चाहिए.
गुरु वाणी गुरु अर्जुन देव जीl

हर घडी प्रभु की रहमत+ बरकत का शुक्र अदा करो

नफस नफस मुझे लाज़िम है शुक्र का सजदा
कि मेरे दोस्त का अहसान है जिन्दगी मेरी

भावार्थ: मेरे लिए ज़रूरी है कि मैं हर लम्हा अपने प्रभु का शुक्राना अदा करूँ क्योंकि
मेरी यह जिंदगी उसी की देन है . यह मेरे गुरु का करिश्मा है कि इस नाशवान
दुनिया में उसने मुझे अबदी जिंदगी अता कर दी , एक अमर जीवन दे दिया .
इसलिए मैं हर घड़ी उसकी बरकत का , उसकी रहमत का जिक्र करता हूँ
रूहानी .शायरी : संत दर्शन सिंह जी महाराज