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उत्तराखंड में सिविल राहत राशि और सेना के खर्चे का आडिट भी करा लेना चाहिए

उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा से हुई जान माल की भारी हानि को लेकर बढ रहे ग्राफ में इस सप्ताहांत तक कोई स्थिरता नही आ पाई है | आने वाले दो तीन दिनों में वर्षा का अनुमान लगाया जा रहा है जिससे भयावहता के बढने की आशंका जताई जाने लगी है| भारतीय सेनाओं और आम जनता द्वारा राहत कार्य जारी हैं लेकिन राजनितिक दलों में हमेशा की तरह इस विपदा पर भी राजनीति शुरू हो गई है|
विपक्ष इस आपदा की विभीषिका को देखते हुए इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किये जाने की मांग करने लगा है तो सत्ता रुड सरकारें इससे बचती दिख रही है|इसके बावजूद भी केंद्र सरकार ने एक हज़ार करोड़ रुपयों की सहायता का एलान किया है जिसमे से १४५ करोड़ रुपये रिलीज भी किये जा चुके हैं| कांग्रेस अध्यक्षा श्री मति सोनिया गांधी ने अपनी पार्टी के एम् पी और एम् एल ऐ को एक महीने का वेतन दान करने के निर्देश भी जारी कर दिए हैं|दूसरे प्रदेशों के सिख सगत +विपक्षी एम् एल ऐ+राहत भेजने लगे हैं यहाँ तक कि गुजरात के बहु चर्चित मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी देहरादून का दौरा करके गुजराती तीर्थ यात्रियों को बाहर निकालने में दिलचस्पी दिखाई है|कांग्रेस और भाजपा के विधायकों ने एक माह का वेतन दान करने की घोषणा की है|
आज न्यूज चैनलों ने एक चौंकाने वाला समाचार दिया है जिसके अनुसार स्थानीय प्रशासन ने सेना के हेलीकाप्टरों को तेल [ ऐ टी ऍफ़ ]देने से मना कर दिया है|
चैनलों पर लगातार दिखाया जा रहा है कि राहत कार्यों के तमाम दावे केवल हवाई ही साबित हो रहे हैं| अब यह स्वाभाविक सवाल पैदा उठता है कि सहायता राशि कहाँ जा रही है ? इस के मद्दे नजर यह कहना अभी जल्द बाजी कहा जा सकता है मगर पुराने अनुभवों को देखते हुए जरुरी जरुरी है कि सहायता राशि का साथ साथ आडिट भी कराया जाना चाहिए| स्वयम प्रधान मंत्री डॉ मन मोहन सिंह ने मनरेगा के एक कार्यक्र में मंत्री जय राम रमेश को सलाह देते हुए कहा था कि देखा गया है कि कई वर्षों के बाद आडिट में गड़े मुर्दे खुलते हैं ऐसे में हाथो हाथ आडिट करा लिया जाना चाहिए| उसी भावना के अंतर्गत अब इस राहत राशि का भी आडिट करा लिया जाना जरुरी है|
इसके अलावा यह भी देखा गया है कि सेना जब भी ऐड टू सिविल पॉवर में लगाई जाती है तो उसका खर्चा स्टेट को डेबिट किया जाता है |और उस खर्चे के आडिट का भी वोही हाल होता है जो सिविल में आडिट का होता है|इसीलिए सेना के खर्चे का भी आंतरिक और बाह्य आडिट करा लिया जाना चाहिए|
चूंकि आज कल इस विपदा को मानव निर्मित बता कर इसकी जांच कि मांग भी की जाने लगी है ऐसे में कोई शक नही कि मात्र एक वर्ष बाद होने वाले चुनावों में इसे मुद्दा बनाया जा सकता है इसीलिए अभी समय रहते दूध का दूध और पानी का पानी करलेना ही उचित होगा|इससे सरकार शासन का अस्तित्व दिखाई देगा| और समय रहते भ्रष्टाचार को हतोत्साहित किया जा सकेगा|