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गलती का अहसास कराके एक बार फिर संभलने का अवसर दिया जाये.

छिमा बढ़न को चाहिए, छोटेन को उत्पात ,
का रहिमन हरी को घट्यो , जो भृगु मरी लात .

व्याख्या – छोटी आयु के लोगों के द्वारा उपद्रव करने पर बड़ों का क्षमादान करना ही शोभनीय है . कवि रहीम कहते हैं कि यदि भृगु ऋषि ने
क्रोध में आकर प्रभु की छाती पर लात मार दी तो भगवन की गरिमा में कोई कमी नहीं आई.
भाव – क्षमा करना आदमी का सबसे बड़ा गुण है. इसी गुण को लेकर कवि रहीम ने इस दोहे की रचना की है.. यदि छोटे लोग कोई अपराध
करते हैं तो बड़ों का बड़प्पन इसी में है कि उन्हें क्षमा कर दिया जाये और उन्हें उनकी गलती का अहसास कराके एक बार फिर
संभलने का अवसर दिया जाये.
इसे कवि ने एक विशेष पौराणिक घटना से जोड़कर दर्शाया है एक बार भृगु ऋषि भगवान् विष्णु से मिलने गए .विष्णु को सोता देखकर
भृगु ने उनकी छाती पर लात मार दी . इससे भगवान क्रोधित नहीं हुए .अपितु उनहोंने पूछा -ऋषिवर आपके पैर में चोट तो नहीं आई ?
विष्णु जी की बात सुनकर ऋषि का क्रोध शांत हो गया . प्रस्तुति राकेश खुराना