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राजनीतिक कव्वों की दुनिया में असली कौव्वों की पहचान कायम है

[मेरठ]आज रविवार है लेकिन सुबह ही कौवों की कायं कायं से आँख खुल गई झट बाहर आकर देखा तो दसियों कौवे बिजली की तारों पर बैठे कावं कावं करने में लगे थे|बचपन में ऐसे दृश्य देख कर अक्सर मुंह से निकल आता था कि कौव्वों की बरात आ गई|
ये तो आप भी मानेंगे कि श्राद्धों के अलावा इस पक्षी को न तो देखने में कोई रुचि रहती है और नाहीं इसके संगीत में कोई इंटरेस्ट |इसके मीट के चटकारे लेने वाला तो मैंने अभी तक एक भी नहीं देखा|वैसे में बता दूँ कि कौवा एक पक्षी ही है। राजस्थानी मेँ इसे कागला तथा मारवाडी भाषा मेँ हाडा कहा जाता हैँ |विदेशों में तो इसके अनेकों नाम और प्रजातियां हैं | वैसे वैज्ञानिकों के अनुसार विंटर मेंअक्सर इनके झुण्ड देखे जाते हैं लेकिन गर्मी में इनके गुटों के दर्शन करा कर प्रकृति किसी अनहोनी की तरफ इशारा तो नहीं दे रही है|
राजस्थान मेँ एक बहुप्रचलित कहावत है-” मलके माय हाडा काळा ” अर्थात दुष्ट व्यक्ति हर जगह मिलते हैँ|जाहिर है दुष्टों के इस कर्कश संगीत से सुबह की मीठी नींद की बर्बादी से कोफ़्त तो हुई मगर यह संतोष भी हुआ कि राजनीतिक कव्वों की दुनिया में असली कौव्वों ने अपनी पहचान कायम रखी हुई है|श्राद्धों में इन्हें ढूढ़ने को मारा मारा नहीं फिरना पढ़ेगा |