झल्ले दी झल्लियां गल्लाँ
सपाई चेयर लीडर
ओये झल्लेया ये क्या हो रहा है?ओये मुल्क में प्रोटोकॉल नाम की कोई चीज रह गई है कि नहीं? ये तो हद ही हो गई यारा अब तो उच्च सदन के सदस्यों को लोक सभा के मुकाबिले निम्न स्तर का माना जाने लगा है |ओये और तो और जिला स्तर पर बनाई गई विजिलेंस कमिटी की अध्यक्षता भी लोक सभाईयों को ही दे दी गई है और राज्य सभाइयों को को-चेयरमैन बनाया जा रहा है |हसाडे हरदोईये नरेश अग्रवाल ने राज्य सभा में ये सवाल उठा दिया है| कांग्रेस ने भी प्रिविलेज मोशन ला दिया है|ओये ये तो हसाडे वड्डे राजयसभाइयों का सरासर अपमान है
झल्ला
ओ मेरे भोले पहलवान जी! जिस बचकाना तरीके से मात्र एक परिवार की ईगो शांत करने के लिए संसद के मानसून सत्र को बर्बाद किया गया |एक परिवार की संतुष्टि के लिए संसद को,बचकाना,बंद कराने वाले राज्यसभाइयों ने सीनियरिटी मांगी उससे इन राजयसभाइयों के साथ ही लोक सभाइयों की परिपक्व्वता पर प्रश्न चिन्ह लगाने शुरू हो गए हैं|इस विषय में झल्ले को कवि प्रदीप के गीत याद आ रहे हैं जिनमे उन्होंने इन्ही जैसे जागीरदारों+महलदारों की झोपड़ियों से दूरी पर आंसू बहाये हैं|झल्लेविचारानुसार उच्च सदन के लिए निर्धारित सदस्यों के बजाय हारे हुए अपनों को राज्य सभा में भेजा जा रहा है शायद इसीलिए इनका आचरण बचकाना+उपलब्धिहीन दिखाई दे रहा है|अब समय आ गया है कि इन थोपे गए हुकमरानों की ४-५ साल की निरंकुशता समाप्त कराकर जनता के प्रति एकाउंटेबल बनाय जाये |पार्टी के बजाय देश के प्रति उत्तरदाई बनाय जाये