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चश्मा चडा है हर तरफ कोई नज़र नही पिलाती: रिंद बने नहीं जन्नत भी हाथ से गई

नज़रें मिलते ही दीखता था कभी रंग गुलाबी ।
दिल से लेकर आत्मा भी हो जाती थी शराबी ।।
इस उम्र में ये क्या सितम है मेरे पालन हार।
न ही वोह नज़र है और ना ही वोह खुमार।।
चश्मा चडा है हर तरफ कोई नज़र नही पिलाती
लाल,गुलाबी रंग शबाबी सारे हो गए अब किताबी
शराब के भी पैग अब तो बस मिलते हैं हिसाबी|
रिंद तो बन नहीं सके जन्नत भी हाथ से गई