तनहा हूँ तन्खाईया नहीं हूँ , दीगर है किसी तराजू में नहीं हूँ
तेरी तरफ से काफिर बेरुखी , इसके हरगिज लायक नहीं हूँ
मत रौंद मेरी तन्हाइयों को , रकीब के गलबैय्याँ डाल कर
में कोई बीता बुरा वक्त नही,धर्म कांटें में भी तुल जाता हूँ
बेशक नहीं हूँ में चमकता हुआ टुकड़ाए सोना और चांदी ,
नादाँ मिटटी में हीरे की कद्र ,कर उसे गढना तो सीख ले