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विभाजन विभीषिका की स्मृतियां ;बलदेव राज जग्गी

#विभाजनविभीषिकास्मृतियां (1) www.jamosnews.com

भारत को आज़ाद हुए 75 वर्ष हो गई सो देश में  आज़ादी का सरकारी अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। स्वतंत्रता सेनानियों,स्मारकों को याद करके उन्हें सम्मान देने की सराहनीय शुरुआत हो चुकी है।इसी कड़ी में प्रतिवर्ष  14 अगस्त को #विभाजनविभीषिकास्मृतिदिवस मनाए जाने की घोषणा की गई है।

विश्व की सबसे बड़ी इस विभीषिका में अपने हिन्दुतत्व को बचाने की खातिर 10 लाख से ज्यादा लोग मारे गए

विभाजन विभीषिका के नॉन मुस्लिम पीड़ितों की पीड़ा 15 अगस्त 1947 को ही खत्म नही हुई वरण आज़ाद भारत मे आकर अपनों के ही हाथों लुटने पर मजबूर हो गए। किसी को रिहैबिलिटेशन क्लेम का अलॉटमेंट हुआ तो  उन्हें कब्जे नही दिए गए। जिन्हें कब्जे दिए गए तो उनके जर्जर मकान मलबों में तब्दील ह गए लेकिन उन्हें दोबारा बनाने की इजाजत नही है। विभाजन विभीषिका में प्राण बचा कर आये  अभागे भारत में भ्र्ष्टाचार का दंश झेलते रहे और अंत मे दुर्भाग्यपूर्ण  दुर्घटना का शिकार हो कर असमय परलोक सिधार गए।

#विभाजनविभीषिकास्मृतिदिवस ,की घोषणा से विभीषिका का दंश झेल रहे लाखों पीड़ितों  ने आपबीती इस प्रकार बताई।

विभाजनविभिषिका स्मृतियां

विभाजनविभिषिका स्मृतियां

#बलदेवराजजग्गी (88)रावलपिंडी के पिण्डीगहेब (चट्टे दी मारी)से मेरठ  (लालकुर्ती) आये और पुरुषार्थ के बल पर अपना और परिवार को आगे बढ़ाया।गर्व से बताया कि  उनका एक पुत्र यूपी पुलिस में वरिष्ठ अधिकारी है दूसरा सॉफ्टवेयरइंजीनियर है जबकि दो बेटे  निजी व्यवसाय में है।

विस्थापन की पीड़ा का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि उनकी उम्र बेहद छोटी थी सिर पर पिता का साया भी नही था।इसपर भी हिम्मत और हौंसले से अपनी बूढ़ी मां और तीन बहनों के साथ बस से कैमलपुर पहुंचे और वहां से खन्ना के लिए ट्रेन मिल गई।उनका सारा सामान बस स्टेशन पर ही रखवा लिया गया।उन्होंने बताया कि उस समय वहां स्टीम बस चला करती थी  जिसमे कोयले से स्टीम बनाई जाती थी।

आज़ाद भारत के सफर को याद करते हुए जग्गी जी ने बताया कि खन्ना में  कस्टोडियन से 3000 ₹ मिले लेकिन कमाई का कोई साधन नही था सो अलाहाबाद और फिरोजपुर कैम्पों में  घुमाया गया। गया।अलाहाबाद के दरभंगा के राजा की कोठी में रिफ्यूजी कैम्प बनाया गया था।कैम्पों में राशन मिलता था।और खटटी पर कपड़ा बुनने की ट्रेनिंग दी जाती थी लेकिन जिन बच्चो के सिर पर पिता का साया नही था तो उनको पढ़ाई के लिए होस्टल भी भेजा जाता था।अलाहाबाद में उन्हें भी होस्टल भेजा गया।विसंगतियों के चलते केवल आठवी कक्षा तक ही शिक्षा पाने का सौभाग्य मिला।

ITI फिरोजपुरITI फिरोजपुर 1952 में फिरोजपुर के आई टी आई सेंटर में ट्रेनिंग लेने का अवसर मिल गया। लेकिन नॉकरी नही मिली।कनखल के सन्त सुच्चा सिंह के आश्रम में शरण ली यहां एक कमरा मिला। वहां से मेरठ आ गए।लाल कुर्ती में 1200 ₹ में एक छोटा सा मकान लेकर सिर छुपाना मजबूरी था।यहां भी दुर्भाग्य ने साथ नही छोड़ा कोई काम धंदा नही मिला सो साईकल पर रौजाना मेरठ से मोदीनगर  ,मोहननगर आना जाना शुरू कर दिया।इसी बीच एम ई एस के भले अधिकारी दत्ता जी  के मार्गदर्शन में 1961 में गठित सीमा सड़क संगठन की नई कम्पनीGREF में नॉकरी लग गईजहां से जीवन को नई गति मिलनी शुरू हुई।घर मे पर्याप्त राशन पानी आने लगा।हरदोई के परिवार में शादी हो गई।यह कम्पनी आसाम के बॉर्डर पर कठिन स्थानों पर तैनात थी सो घर साल में दो महीने के लिए आना होता था। मां बढ़ती उम्र की बीमारियों से ग्रस्त थी जिनकी सेवा करने के लिए पत्नी को मेरठ में रहना जरूरी था उनकी सेवा करने के लिए मुझे अक्सर थोड़े दिनों के लिए छुट्टी मिल जाया करती थी।मां अपनी आयु पूरी करके स्वर्ग सिधार गई ।उन्होंने बताया कि खन्ना में मुस्लिम परिवार द्वारा छोड़े गए मकान में चार परिवारों ने शरण ली लेकिन वह मकान किसी और अभागे शरणार्थी को अलॉट करके हमे वहां से जाने को कह दिया गया।हमे पूरे देश मे मकान या दुकान कहीं अलॉट नही की गई।