साच कहूँ सुन लेहो सबै जिन प्रेम कियो तिनही प्रभु पायो
” सद साल इबादत कुनद नमाज़ी नेस्त
कसे को इश्क नदारद खुद राज़ी नेस्त ”
अर्थात सौ साल इबादत करता रहे , वह सही मायनों में नमाजी नहीं बन सकता । जिसके अंतर में प्रभु का प्रेम नहीं उभरा , वह प्रभु के भेद को कैसे पा सकता है ?
दसम गुरु साहब ने फ़रमाया –
” साच कहूँ सुन लेहो सबै जिन प्रेम कियो तिनही प्रभु पायो ।
गुरु गोबिंद सिंह जी की वाणी ,
प्रस्तुति राकेश खुराना