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पमात्मा को वही पाता है जो उसे और उसकी कायनात से प्रेम करता है .

कहा भयो जो दोऊ लोचन मूंदी कै
बैठ रहियो बक धिआनु लगाइयो
न्हात फिरिओ लीए सात समुद्रण
लोक गएओ परलोक गवायो
बास कीयो बिखियन सों बैठि कै
ऐसे ही ऐसे सु बैस बिताईओ
सच कहूं सुनि लेहु सभै
जिनि प्रेम कीयो तिन ही प्रभु पाएओ

भाव : दोनों आँखें मूँद कर बगुले की तरह बैठने से क्या होगा जबकि अन्दर मन में कपट भरा हो. ऐसा व्यक्ति सात समुंदर
पार करके तीर्थों में नहाता फिरे तो समझो कि उसका इहलोक और परलोक दोनों बर्बाद हैं .विषय-विकारों में सदा
लिप्त रहने वाला अपनी आयु यूं ही गँवा देता है . मैं सच कहता हूँ पमात्मा को वही पाता है जो उसे और उसकी
कायनात से प्रेम करता है .
—- वाणी दशम पादशाही गुरु गोबिंद सिंह जी