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प्रभुजी मेरे औगुन चित न धरो

प्रभुजी मेरे औगुन चित न धरो ।
समदरसी है नाम तिहारो , अब मोहिं पार करो ।
महाकवि संत सूरदास

प्रभुजी मेरे औगुन चित न धरो

भाव : महाकवि संत सूरदास कहते हैं हे प्रभु , आप मेरे पिता हैं और मैं तो एक बालक हूँ। बालक तो अक्सर गलतियाँ करता रहता है ।
कृपया आप मेरी गलतियों पर ध्यान न दें । आप तो सबको एक नजर से दखते हैं । आप के अन्दर तो समभाव है । हम माया
के जाल में फँसे हुए हैं , हे प्रभु आप से प्रार्थना है कि आप हमें इस चौरासी लाख जियाजून के चक्कर से निकालिये । मूलरूप से
हम प्रभु का ही अंश हैं , हम सब चाहते हैं कि वापस परमात्मा में जाकर लीन हो जायें ।
सूरदास जी को महाकवि[सूर सूर ] कहा जाता है इनकी संगीत मय कृष्ण भक्ति से समकालीन बादशाह अकबर भी इनके भजनों के कायल थे|महा कवि ने कृष्ण भक्ति में जीवन गुजार दिया| जीवन के अंतिम समय में इन्होने कृष्ण जन्म भूमि पर कृष्ण के भजन गा गा कर मौक्ष प्राप्त किया
प्रस्तुति राकेश खुराना