Ad

प्रभु के रचनात्मक कौशल से मिले असीम उपहारों के लिए हमें प्रभु का शुक्राना अदा करना चाहिए:संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

[नई दिल्ली]संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने कहा कि विकसित देशों के भी वैज्ञानिक केवल उन चीज़ों की खोज मात्र ही कर रहे हैं जो प्रभु द्वारा पहले ही बनाई जा चुकी हैं इसीलिए प्रभु के रचनात्मक कौशल की और से हमें दिए गए असीम उपहारों के लिए हमें प्रभु का शुक्राना अदा करना चाहिए।\संत राजिंदर सिंह जी साइंस आफ स्प्रिच्युअलिटी और सावन कृपाल रूहानी मिशन के प्रभारी संत हैं|
पिछले सप्ताह विश्व के कुछ हिस्सों में थैंक्सगिविंग (धन्यवाद दिवस) का त्यौहार मनाया गया। इस पर्व पर हम अपने जीवन की हरेक अच्छी चीज़ के लिए प्रभु को धन्यवाद देते हैं, तथा बुरी चीज़ों को भूल जाते हैं और माफ़ कर देते हैं।
कृतज्ञता या शुक्राने का भाव हमारे अंदर प्रभु की बनाई हुई इस अद्भुत सृष्टि को देखकर भी उत्पन्न होता है। पश्चिमी देशों की मानसिकता आध्यात्मिक होने के बजाय वैज्ञानिक और भौतिक अधिक है। परंतु, विज्ञान के लिहाज़ से भी, हम इस बात पर चमत्कृत रह जाते हैं कि यह सृष्टि कितनी भव्य और शानदार है। वैज्ञानिकों को अपनी खोजों और अन्वेषणों के लिए नोबल अवाॅर्ड से सम्मानित किया जाता है, लेकिन अगर हम इस बारे में ध्यान से सोचें तो समझ जायेंगे कि वैज्ञानिक तो केवल उन चीज़ों की खोज मात्र ही कर रहे हैं जो प्रभु द्वारा पहले ही बनाई जा चुकी हैं।
प्रभु द्वारा रचित धरती के सबसे छोटे पौधे से लेकर सबसे बड़े पशु के अंदर ऐसा कुछ न कुछ ज़रूर है जो बाक़ी संसार के लिए लाभदायक होता है। धरती के हरेक प्राणी के अंदर जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण ऐसी कोई न कोई चीज़ अवश्य है जो इस संसार को बाक़ी जीवों के लिए बेहतर बना सकती है।
प्रभु के रचनात्मक कौशल की और हमें दिए गए उपहारों की कोई सीमा नहीं है, जिनके लिए हमें उनका शुक्राना अदा करना चाहिए।