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प्रभु को पाने के लिए विरह – विह्वलता की आंच में तपकर आंसू बहाना भी उसकी ही कृपा द्रष्टि है

प्रभु को पाने के लिए संत कविओं ने मार्ग बताये हैं संत कबीर और आमिर खुसरो ने विरह व्हिलता को प्रभु की कृपा बताया है |प्रस्तुतु है इन दोनों महान संत कविओं की वाणी
[१]अज़ सरे बालीने – मन बरखेज़ ऐ नादाँ तबीब ।
दर्द मंदे इश्क रा , दारू बजुज़ दीदार नेस्त \

Rakesh Khurana On Amir Khusaro & Sant Kabir Das

भाव ; ऐ मूर्ख चिकित्सक ! तू मेरे सिरहाने से उठ जा , मैं तो विरह का रोगी हूँ । मेरे रोग का उपचार केवल प्रियतम(गुरु) का दर्शन है , उसकी कृपा दृष्टि है।
परम संत कबीर दास जी ने भी इसी भाव को व्यक्त किया है :-
[२]सुखिया सब संसार है , खावे और सोवे ।
दुखिया दास कबीर है , जागे और रोवे ।
अर्थात प्रभु को पाने का रास्ता आंसुओं का रास्ता है । प्रभु को जिसने भी पाया , विरह – विह्वलता की आंच में तपकर , आंसू बहा कर पाया है ।
[१] अमीर खुसरो
[२] परम संत कबीर दास जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

Comments

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