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प्रभु नाम के अंकुश से मन की चंचलता शांत होती है

श्री रामशरणम् आश्रम, गुरुकुल डोरली , मेरठ के परमाध्यक्ष

पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी के प्रवचन का एक अंश.

लाखों जन्मों से हमारा मन जगत के रसों का चाटूकार बना हुआ है. जैसे ही हम परमात्मा को
याद करने के लिए बैठते हैं हमारा मन जगत के रस की तरफ भागता है और हम प्रभु के नाम में लीनता लाभ नहीं कर पाते. इस मन को रोकने के लिए अंकुश की आवश्यकता होती है.
जैसे एक विशालकाय एवं मस्त हाथी महावत के अंकुश से काबू में आ जाता है, इसी प्रकार
प्रभु के नाम के अंकुश से हमारे मन की चंचलता शांत हो जाती है.

भोंरा तब तक गुंजार करता रहता है जब तक उसे फूलों का रस नहीं मिलता, जैसे ही वह फूल पर बैठता है उसकी गुंजार बंद हो जाती है. इसी प्रकार जैसे ही हमारा मन परमात्मा के पावन नाम का पान करता है तो इसकी चंचलता शांत हो जाती है.

Comments

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