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श्री रामशरणम् आश्रम, गुरुकुल डोरली, का वार्षिकोत्सव धूम धाम से मनाया गया
जब हमारे जीवन में कोई पुण्य कर्म जागते हैं तो प्रभु की कृपा से हमारे जीवन में संत आते हैं और संत हमें नाम , शबद से सुसज्जित करते हैं और हम नाम , सहज योग की सीढ़ी पर चढ़कर प्रभु दर्शन , प्रभु प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर होते हैं ।
प्रभु राम का रूप है – परम कृपा -(Supreme Grace) किन्तु उनका आतंरिक स्वभाव सुख देने वाला मंगल कारी है
सुखदा है शुभा कृपा, शक्ति शांति स्वरूप ।
है ज्ञान आनंदमयी, राम – कृपा अनूप ।
भावार्थ :प्रभु राम का रूप है – परम कृपा -(Supreme Grace) किन्तु उनका स्वरूप (आतंरिक स्वभाव) है – सुख देने वाला , मंगल करनेवाला, हर्ष, हित,
अच्छाई , सौभाग्य प्रदान करने वाला । उनकी कृपा अतुल्य है , वह ज्ञान एवं आनंद का भंडार है , शक्ति-सामर्थ्य , शांति-आनंद का अक्षय स्रोत है । राम कृपा सुख देने वाली है, सब का मंगल करने वाली है , शक्ति व शांति उसके निज रूप हैं , वह आनंद और ज्ञान से परिपूर्ण है अतः अनुपम है ।
रूप-स्वरूप : आभूषण का रूप है – हार, कंगन,कुंडल आदि परन्तु उसका स्वरूप है स्वर्ण । मिश्री चपटी है , दानेदार है – यह मिश्री का दिखाई देने वाला रूप है , परन्तु मिश्री का स्वरूप है- उसकी मिठास । हर प्रकार की मिश्री मीठी होती है ।
स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित अमृतवाणी का एक अंश,
प्रेषक: श्री राम शरणम् आश्रम, गुरुकुल डोरली, मेरठ,
प्रस्तुति राकेश खुराना
अध्यात्मिक मार्ग पर समर्पित भाव से आगे बढने से परमात्मा मिल जाते हैं: पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी
श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली , मेरठ में दिनांक 31 मार्च 2013 को प्रात:कालीन रविवासरीय सत्संग के अवसर पर पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए अध्यात्म मार्ग पर समर्पित भाव से आगे बढने की प्रेरणा दी
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने कहा कि अध्यात्म मार्ग समर्पण का मार्ग है। समर्पण वहां होता है जहाँ प्रेम होता है। जहाँ प्रेम नहीं होता, वहां समर्पण हो ही नहीं सकता।
जो जिज्ञासु नाम आराधन कर-कर के तथा अपने अहम् को समाप्त करके परम पिता परमात्मा ले एक मजबूत डोर में बंध गए अर्थात पूर्णतया समर्पित हो गए , उनके जीवन में परमात्मा प्रकट होते हैं।
एक जिज्ञासु नें किसी संत महापुरुष से पूछा ” आपको कुछ पाना हैं या आपको कुछ जानना है?” इसपर संत बोले ” इस जगत में अगर कोई निष्काम, निरही, पूर्ण संत मिल जाएँ और उस संत द्वारा जब पावन नाम मिल जाए तो पाने के लिए कुछ बचता ही नहीं है। और पवित्र नाम को जप-जप कर जब हमनें अपने आप को परमात्मा के चरणों में पूर्णतया समर्पित कर दिया, वो हमारा हो गया और हम उसके हो गए , अब जानने और खोने के लिए कुछ नहीं बचता हैं । ”
प्रस्तुती राकेश खुराना ,
श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली,
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी
मेरे सदगुरु सुगढ़ सुजान चुनरिया रंग देंगे
मेरे सदगुरु सुगढ़ सुजान चुनरिया रंग देंगे।
वो तो हैंगे दीनदयाल चुनरिया रंग देंगे।।
इस भजन की व्याख्या करते हुए पूज्य श्री ने बताया कि आध्यात्म के पथ पर चलते-चलते , तप की भट्ठी में तपे हुए, ध्यान रुपी अनुसन्धान करके जिन संत महापुरुषों को प्रभु के दरबार से अनुभूतियाँ हुईं , ऐसे संतों को सुगढ़ कहा जाता है । जिसे प्रभु के रहस्यों की जानकारी हो, जिसे शुभ का ज्ञान हो तथा वह प्रभु के प्रेम में ओत-प्रोत हो ऐसे संतों को सुजान कहते है।
पुज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी आगे समझाते हुए कहते हैं कि एक सुगढ़ सुजान संत वही है जिसकी नस-नस, रोम-रोम परमात्मा के गूढे रंग में रंगा हो, जो राम नाम से भरपूर हो। ऐसे महापुरुषों संतों से हमारी चित्त चुनरिया रंगती है । अगर किसी का दीपक जला हुआ हो तभी वह किसी का दीपक जला सकता हैं । ऐसे ही कोई आत्मज्ञानी , परमेश्वर को जानने वाला, अनुभवी संत किसी जिज्ञासु के अन्तःकरण में प्रभु के नाम का दीपक प्रजव्वालित करता है ।
श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली,
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी
अमृतमयी प्रवचन,
प्रस्तुती राकेश खुराना
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प्रभु का नाम नहीं जपा तो जीवन किसी काम का नहीं
मन तो तुम मैं रम रहा, केवल तन है दूर.
यदि मन होता दूर तो मैं बन जाता धूर.
भावार्थ: एक जिज्ञासु परम पिता परमात्मा को शुक्रिया अदा करते हुए कहता है कि हे प्रभु!! मुझ पर तुम्हारी कितनी अधिक कृपा है कि मेरा मन आपके सुमिरन में लगा हुआ है. मैं केवल तन से ही आपके पावन चरणों सेदूर हूँ परन्तु मेरा मन आपके चरणों की स्तुति में लगा हुआ है. यदि मेरा मन भी आपसे दूर होता तो में कुछ भी नहीं होता, मेरी स्थिति धूल के समान होती.
प्रभु ने यह मानव काया हमें उसका नाम लेने के लिए दी है अर्थात इस मानव जन्म का उद्देश्य नाम के जाप द्वारा प्रभु की
प्राप्ति करना है. यदि हमने सारा जीवन सांसारिक विषयों तथा माया में ही व्यर्थ कर दिया और प्रभु का नाम नहीं जपा तो
हमारा जीवन किसी काम का नहीं तथा हमारी काया की स्थिति धूल से ज्यादा नहीं है.
श्री रामशरणम् आश्रम ,
गुरुकुल डोरली , मेरठ,
प्रस्तुती राकेश खुराना
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने आलोकिक शक्तिओं का खजाना प्राप्त करने के लिए ध्यान रुपी अनुसन्धान मार्ग को अपनाने का उपदेश दिया
पूज्यश्री ने कहा कि संत महापुरुष वही नाम देते हैं जो ग्रंथों में लिखा हुआ है । परन्तु संत महापुरुष ध्यान रुपी अनुसन्धान करके, अपने मन को तप की भट्ठी में तपाते हैं और परमेश्वर दरबार से आलोकिक शक्तिओं का खजाना प्राप्त करते है । उन्होंने परमेश्वर कि असीम शक्तियों और उनके प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान, सामर्थ्यवान है उससे जुड़कर संतों में ऐसी समर्थता, संकल्पशक्ति आ जाती है कि उनके प्राणों में प्रभु का पावन नाम ऐसे बस जाता है जैसे कोई ब्राह्मण देव मंदिर में मूर्ति की स्थापना करता है।
इसीलिए हमें संतों महापुरुषों द्वारा जो नाम मिलता है उसमे संत का संकल्प, आत्मिक बल , संकल्प शक्ति होती है जिससे हमारी आत्मसत्ता जाग्रत होती है।
नाम लेने वाले भी मिल जाते हैं , नाम देने वाले भी मिल जाते हैं परन्तु नाम, शबद वही क्रियात्मक, फलिभूत होता है जो सच्चे सन्त महापुरुषो से मिलता है क्योंकि सजीव बीज में ही जीवन होता है, खोखला बीज फलीभूत नहीं होता ।
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ,प्रस्तुति राकेश खुराना ,
श्री रामशरणम आश्रम ,
गुरुकुल डोरली
प्रभु को समर्पित भाव से प्रेम करने पर सभी मलिनता धुल जायेगी
” न कुछ हंस के सीखा है , न कुछ रो के सीखा है ,
अगर हमने कुछ सीखा है , किसी का हो के सीखा है । ”
व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि संतजन समझाते हैं कि जब तुम किसी संत , महापुरुष की शरण में जाओ तो अपना आप संत को सौंप दो । अपना आप सौंपने का यह अर्थ नहीं है कि अपनी दौलत , जायदाद सौंप दो । अपने आप को सौंपने का अर्थ है कि अपने मन को सौंप दो जिससे तुम्हारी मन – मति समाप्त हो जाए और गुरु -मति धारण हो जाए ।
हम लोग मंदिरों और आश्रमों में आते तो हैं परन्तु हमारा मन जगत में विचरण करता है अर्थात हमारे मन की चंचलता शांत नहीं होती । हम अपनी मन – मति से मन -माने कुकर्मों को कर-करके अपने पाप कर्मों की गठरियों को बाँध – बाँध कर उसे सिर पर रखकर एक बोझित जीवन व्यतीत करते हैं । इसीलिए संतजन समझाते हैं कि परमात्मा से सच्चा प्रेम करो , जहाँ प्रेम है वहीँ समर्पण है और समपर्ण में बड़ा आनंद है । जो समर्पित और श्रद्धावान हैं परमात्मा के दरबार में उनकी भक्ति परवान चढ़ती है । परमात्मा के दरबार से आपके ह्रदय के आँगन में उसकी कृपा की जो बरसात होगी
उससे मन की मलिनता धुल जाएगी और मन शुद्ध – विशुद्ध हो जायेगा ।
प्रस्तुति राकेश खुराना
संतजन मन के चिकित्सक है ये हमारे अज्ञान , दुर्बुद्धि , दोष को समाप्त करके हमें परमानंद का वरदान देते हैं
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली में राम नाम के अमृत की वर्षा करके संगत को भाव विभोर कर दिया
“भज श्री राम, भज श्री राम , श्री रामम् भज विमल मते ।”
भाव :- संतजन जिज्ञासुओं को समझाते हुए कहते हैं कि उस पतित पावन परमेश्वर का भजन कर , उसके नाम का आराधन कर , उसका चिंतन कर , उसका सिमरन कर और सिमरन कर- करके परमेश्वर के नाम के धन का संचय कर जिससे तेरा मन परमात्मा की भक्ति के खजाने से भरपूर हो जाए ।
जैसे हमारे शरीर में रोग आने पर हम चिकित्सक के पास जाते हैं , वह चिकित्सक हमारे रोग का उपचार करता है , उसके द्वारा बताई गई औषधि लेने तथा परहेज करने से हमारे तन के रोग दूर हो जाते हैं , इसी तरह हमारे मन के चिकित्सक संतजन , महापुरुष हैं । हमारा मन लाखों जन्मों से मोह – माया , ईर्ष्या – द्वेष , मान – सम्मान , लाभ – हानि की धूल में लिप्त है । जब हमें संत – महापुरुषों की संरक्षता , सान्निध्य मिलता है , तो उनकी कृपा से हमें साधन अर्थात परमात्मा का नाम मिलता है और उस साधन से साधना अर्थात नाम का अभ्यास होता है । साधना से सिद्धि अर्थात परमात्मा के नाम का आनंद मिलता है जिससे हमारे भीतर से अज्ञान , दुर्बुद्धि , दोष समाप्त हो जाते हैं और हमारा मन निरोगी हो जाता है ।
श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली , मेरठ में प्रात:कालीन सत्संग
ह्रदय की भूमि में नाम के बीज को अंकुरित और फलित होने के लिए सत्संग, सत के नाम की जल,खाद जरुरी है
[मेरठ]श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली , मेरठ में प्रात:कालीन सत्संग के अवसर परपूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए कहा
देवो दयाल नाम देयो मंगते को , सदा रहूँ रंगराता मैं ।
सदा रहूँ रंगराता मैं , सदा रहूँ गुणगाता मैं ।
भाव : उस परिपूर्ण परमात्मा से साधकों , भक्तों ने उसकी कृपा की भिक्षा मांगी । वे परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु ! तू दयालु है , मुझे अपने नाम की भिक्षा दो । तू दयाल होकर मेरे पाप कर्मों को न देख , जितने भी मेरे पाप कर्म हैं , तेरी कृपा से अधिक नहीं हैं । तू समर्थवान है , मुझे अपने नाम की ऐसी भिक्षा दे कि हर पल तेरे नाम की स्मृति बनी रहे और मुझे अपने रंग में ऐसा रंग दे कि हर पल तेरे गीतों को गाता रहूँ , गुनगुनाता रहूँ । मेरे अंत:करण में तेरे नाम की माला निरंतर चलती रहे ।
उपस्थित साधकों को समझाते हुए पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने कहा कि हमें सत्संगों में निरंतर आते रहना चाहिए । सत्संगों में नित नई प्रेरणाएँ मिलती हैं और हमारा मन परमात्मा के भजन में यत्नवान हो जाता है । बीज कितना ही उत्तम हो , उसको यदि जल एवं खाद न दी जाए , तो वह अंकुरित नहीं होता । इसी तरह हमारे ह्रदय की भूमि में संतों ने जो नाम रुपी बीज बोया है उसे जब सत्संग का जल , और सत के नाम की खाद मिलती है तो बीज अंकुरित और फलित होता है ।
सांसारिक सुख मृगतृष्णा है और परम आनंद और सुख परमात्मा के नाम में ही है
श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली , मेरठ में दिनांक 13 जनवरी 2013 को प्रात:कालीन सत्संग के अवसर पर पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए कहा :-
ये जन्म तुझे अनमोल मिला चाहे जो इससे कमा बाबा ।
कुछ दीं कमा, कुछ दुनिया कमा, कुछ हरि के हेतु लगा बाबा ।
भाव : हमें
संत हमें समझाते हैं कि इस अनमोल जीवन को परमात्मा का नाम लेने में लगाओ क्योंकि परम आनंद और सुख परमात्मा के नाम में है इसलिए उसके नाम का भजन का करो और उनके चरणों के अनुरागी बनो
प्रस्तुति राकेश खुराना
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