परम – पुण्य प्रतीक है , परम – ईश का नाम ।
तारक-मन्त्र शक्ति घर , बीजाक्षर है राम ।
साधक-साधन साधिये , समझ सकल शुभ-सार ।
वाचक – वाच्य एक है , निश्चित धार विचार ।
भाव: परमेश्वर, स्वामी , उच्चतम शासक अर्थात भगवान का नाम परम पवित्रता का चिन्ह है – परम शुद्धता की मूर्ति है- नाम। “राम ” जो शक्ति का पुंज है , पूर्ण अर्थात मूल मन्त्र है , वह संसार सागर से पार उतरने वाला है , उद्धार करने वाला है , मोक्ष दाता है ।
अतएव हे साधक , राम-मन्त्र को सब अच्छाइयों का निचोड़ समझकर आध्यात्मिक साधनों का अभ्यास करो । इस तथ्य को निश्चित रूप से धारण करो कि जिस वस्तु तथा शब्द द्वारा उसे वर्णित किया जा रहा है , दोनों एक हैं , अर्थात अपने ह्रदय में यह सुदृढ़ विश्वास रखो कि नाम एवं नामी , वाचक एवं वाच्य एक ही हैं ।
स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित अमृतवाणी का एक अंश,
प्रस्तुति राकेश खुराना
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