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Tag: इश्वर प्राप्ति का मार्ग

माया के सुखों का उपयोग करने से परमात्मा दूर होता है

भारत वर्ष आदि काल से संत+मुनि+ऋषियों का देश है |मानव मात्र के कल्याण के लिए समर्पित ये संत जन समय समय पर मानव का मार्ग दर्शन करते रहते हैं ऐसी ही प्रस्तुत है एक संत वाणी
संत महापुरुष समझाते हुए कहते हैं कि परमात्मा ही सुख का स्वरुप है। जगत भोगों में इन्द्रियों को जो सुख जान पड़ता है, वह क्षण भंगुर, परिणामों में दुखदाई , मन बुद्धि को मलिन एवं चंचल करने वाला है। अतः परमात्मा की प्राप्ति के लिए भरसक कोशिश करनी चाहिए।
माया के सुख वास्तव में उस परमात्मा की खोज करने के लिए साधनमात्र हैं इस के अतिरिक्त इनका उपयोग करने से परमात्मा से दूर होना है।
संत वाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना

अध्यात्मिक मार्ग पर समर्पित भाव से आगे बढने से परमात्मा मिल जाते हैं: पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी

श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली , मेरठ में दिनांक 31 मार्च 2013 को प्रात:कालीन रविवासरीय सत्संग के अवसर पर पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए अध्यात्म मार्ग पर समर्पित भाव से आगे बढने की प्रेरणा दी
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने कहा कि अध्यात्म मार्ग समर्पण का मार्ग है। समर्पण वहां होता है जहाँ प्रेम होता है। जहाँ प्रेम नहीं होता, वहां समर्पण हो ही नहीं सकता।
जो जिज्ञासु नाम आराधन कर-कर के तथा अपने अहम् को समाप्त करके परम पिता परमात्मा ले एक मजबूत डोर में बंध गए अर्थात पूर्णतया समर्पित हो गए , उनके जीवन में परमात्मा प्रकट होते हैं।
एक जिज्ञासु नें किसी संत महापुरुष से पूछा ” आपको कुछ पाना हैं या आपको कुछ जानना है?” इसपर संत बोले ” इस जगत में अगर कोई निष्काम, निरही, पूर्ण संत मिल जाएँ और उस संत द्वारा जब पावन नाम मिल जाए तो पाने के लिए कुछ बचता ही नहीं है। और पवित्र नाम को जप-जप कर जब हमनें अपने आप को परमात्मा के चरणों में पूर्णतया समर्पित कर दिया, वो हमारा हो गया और हम उसके हो गए , अब जानने और खोने के लिए कुछ नहीं बचता हैं । ”
प्रस्तुती राकेश खुराना ,
श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली,
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी