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भारतीय चिकित्‍सा परिषद की मान्यता के बगैर कोई भी चिकित्सीय प्रेक्टिस नहीं कर सकता:प्रतिबंधित दवाओं पर भी सरकार का स्पष्टीकरण

भारतीय चिकित्‍सा परिषद की मान्यता के बगैर कोई भी चिकित्सीय प्रेक्टिस नहीं कर सकता:प्रतिबंधित दवाओं पर भी सरकार का स्पष्टीकरण
भारतीय चिकित्‍सा परिषद (एमसीआई) ने महाराष्‍ट्र सरकार को सूचित किया है कि एमसीआई से मान्‍यता प्राप्‍त योग्‍यता और रजिस्‍ट्रेशन के बगैर कोई भी व्‍यक्ति एलोपैथी की प्रैक्टिस नहीं कर सकता। महाराष्‍ट्र सरकार ने राज्‍य में होम्‍योपैथी के डॉक्‍टरों को एलोपैथी की भी प्रैक्टिस करने की अनुमति देने के संबंध में एमसीआई की सलाह मांगी थी। यह जानकारी आज केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने लोकसभा में एक लिखित उत्‍तर में दी। श्री आजाद ने बताया कि राज्‍य सरकारे, उच्‍च न्‍यायालय के वर्ष 1998 के फैसले की पृष्‍ठभूमि में भारतीय चिकित्‍सा पद्धति के डॉक्‍टरों को एलोपैथी की भी प्रैक्टिस करने की अनुमति देने के लिए कानून में संशोधन कर सकती है। इस बीच, आयुष विभाग ने केन्‍द्रीय भारतीय चिकित्‍सा पद्धति परिषद से अनुरोध किया है कि वह आयुर्वेद, यूनानी और सिद्ध पद्धतियों के डॉक्‍टरों को एलोपैथी की प्रैक्टिस करने के योग्‍य बनाने के लिए एक समूचित पाठ्यक्रम तैयार करें।

प्रतिबंधित/नामंजूर दवाएं

कोई दवा एक देश में प्रतिबंधित हो सकती है लेकिन दूसरे देशों के बाजार में बेची जा सकती है, क्‍योंकि हर देश की सरकारें दवा के इस्‍तेमाल+ खुराक+ उससे जुड़े जोखिम+ अनुपात के बारे में अलग-अलग निर्णय लेती है।
राज्‍य औषधि नियंत्रण विभाग अपने क्षेत्राधिकार के अंतर्गत प्रतिबंधित दवाओं की बिक्री पर नियंत्रण रखने के लिए छापे डालते हैं।
2011 में दिल्‍ली और मुंबई के पास केन्‍द्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने छापे डाले। जैटिफलॉक्‍स सेसिन, टिगासरोड, रोजीगिलिटाजोन की वापसी के लिए यह छापे डाले गए थे, क्‍योंकि ये दवाएं प्रतिबंधित की गई थीं। यह पाया गया कि 29 दुकानों में भारत के गजट में अधिसूचना जारी होने के बाद प्रतिबंधित दवाएं बेची जा रही थीं। इन मामलों में औषधि तथा प्रसाधन कानून-1940 के प्रावधानों के तहत कार्रवाई की गई।
औषधि महानियंत्रक की मंजूरी के बिना राज्‍य के लाइसेंसिंग प्राधिकरणों ने नई दवाएं समझकर तय खुराक वाले मिश्रणों के 23 मामलों को मंजूरी दी। राज्‍य की लाइसेंसिंग प्राधिकरणों से कहा गया कि वे इन मामलों में औषधि तथा प्रसाधन कानून-1940 के तहत कार्रवाई करें।
नई दवाओं की मंजूरी केन्‍द्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन देता है। यह मंजूरी नान- क्लिनिकल डाटा, सुरक्षा संबंधी क्लिनिकल डाटा, तथा दूसरे देशों में उनकी नियामक स्थिति को देखकर दी जाती है, लेकिन ऐसे मामले में क्लिनिकल जांच की जरूरत नहीं होती, जिनमें दवाएं अन्‍य देशों में उपलब्‍ध डाटा के आधार पर मंगाने की मंजूरी सार्वजनिक हित में लाइसेंसिंग प्राधिकरण देता है।
सीडीएससीओ ने बिना क्लिनिकल जांच के निम्‍न संख्‍या में दवाओं की मंजूरी दी-
वर्ष
बिना क्लिनिकल जांच के मंजर दवाओं की संख्‍या
2010============13
2011============3
2012 ========= 8
2013(जुलाई तक)=== 2
यह जानकारी आज लोकसभा में स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद ने एक प्रश्‍न के लिखित उत्‍तर में दी।