श्री शक्तिधाम मंदिर , लालकुर्ती, मेरठ में अमृतवाणी सत्संग के अवसर पर पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए कहा :-
परमेश्वर कल्याणकारी, दुःख निवारक, सर्वशक्तिमान है। उस परिपूर्ण परमात्मा का सिमरन तभी होता है जब हम अपने मन को उसके नाम में सौंप दें। जब हम मनमती को छोड़ कर गुरुमती को धारण करें ।
मन तो एक ही है और इसे हमने जगत के विषयों में लगाया हुआ है, जिसके कारण इस मन में गुरु एवं प्रभु के नाम की मूर्ति की स्थापना नहीं हो पाती। हमारा मन बाहरी वृत्तियों में लगा रहता है तथा मन एकाग्र नहीं हो पाता । इन्हीं वृत्तियों के कारण हमारा मन परमात्मा के भजन में नहीं लगता । हम सारा जीवन दूसरे लोगों के दोषों को ढूँढने में लगे रहते हैं अपने दोषों को नहीं देखते । इसके कारण हमारे दोष तो समाप्त नहीं होते बल्कि हमारी दृष्टि और सोच दोनों दूषित हो जाते हैं। परिणामवश हम परमात्मा के नाम, सुमिरन से बहुत दूर हो जाते हैं।
संत महापुरुष समझाते हैं की अपनी सोच को सकारात्मक बनायें, अपना निरिक्षण स्वयं करें, अपने दोषों को ढूंढकर उसे दूर करें और प्रभु के पावन नाम का सुमिरन करें ।
श्री शक्तिधाम मंदिर , लालकुर्ती,
अमृतवाणी सत्संग ,
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी,
प्रस्तुति राकेश खुराना
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मनमती को छोड़ कर गुरुमती को धारण करने से ही परमात्मा का सच्चा सिमरन होता है
अध्यात्मिक मार्ग पर समर्पित भाव से आगे बढने से परमात्मा मिल जाते हैं: पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी
श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली , मेरठ में दिनांक 31 मार्च 2013 को प्रात:कालीन रविवासरीय सत्संग के अवसर पर पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए अध्यात्म मार्ग पर समर्पित भाव से आगे बढने की प्रेरणा दी
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने कहा कि अध्यात्म मार्ग समर्पण का मार्ग है। समर्पण वहां होता है जहाँ प्रेम होता है। जहाँ प्रेम नहीं होता, वहां समर्पण हो ही नहीं सकता।
जो जिज्ञासु नाम आराधन कर-कर के तथा अपने अहम् को समाप्त करके परम पिता परमात्मा ले एक मजबूत डोर में बंध गए अर्थात पूर्णतया समर्पित हो गए , उनके जीवन में परमात्मा प्रकट होते हैं।
एक जिज्ञासु नें किसी संत महापुरुष से पूछा ” आपको कुछ पाना हैं या आपको कुछ जानना है?” इसपर संत बोले ” इस जगत में अगर कोई निष्काम, निरही, पूर्ण संत मिल जाएँ और उस संत द्वारा जब पावन नाम मिल जाए तो पाने के लिए कुछ बचता ही नहीं है। और पवित्र नाम को जप-जप कर जब हमनें अपने आप को परमात्मा के चरणों में पूर्णतया समर्पित कर दिया, वो हमारा हो गया और हम उसके हो गए , अब जानने और खोने के लिए कुछ नहीं बचता हैं । ”
प्रस्तुती राकेश खुराना ,
श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली,
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने आलोकिक शक्तिओं का खजाना प्राप्त करने के लिए ध्यान रुपी अनुसन्धान मार्ग को अपनाने का उपदेश दिया
पूज्यश्री ने कहा कि संत महापुरुष वही नाम देते हैं जो ग्रंथों में लिखा हुआ है । परन्तु संत महापुरुष ध्यान रुपी अनुसन्धान करके, अपने मन को तप की भट्ठी में तपाते हैं और परमेश्वर दरबार से आलोकिक शक्तिओं का खजाना प्राप्त करते है । उन्होंने परमेश्वर कि असीम शक्तियों और उनके प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान, सामर्थ्यवान है उससे जुड़कर संतों में ऐसी समर्थता, संकल्पशक्ति आ जाती है कि उनके प्राणों में प्रभु का पावन नाम ऐसे बस जाता है जैसे कोई ब्राह्मण देव मंदिर में मूर्ति की स्थापना करता है।
इसीलिए हमें संतों महापुरुषों द्वारा जो नाम मिलता है उसमे संत का संकल्प, आत्मिक बल , संकल्प शक्ति होती है जिससे हमारी आत्मसत्ता जाग्रत होती है।
नाम लेने वाले भी मिल जाते हैं , नाम देने वाले भी मिल जाते हैं परन्तु नाम, शबद वही क्रियात्मक, फलिभूत होता है जो सच्चे सन्त महापुरुषो से मिलता है क्योंकि सजीव बीज में ही जीवन होता है, खोखला बीज फलीभूत नहीं होता ।
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ,प्रस्तुति राकेश खुराना ,
श्री रामशरणम आश्रम ,
गुरुकुल डोरली
संतजन मन के चिकित्सक है ये हमारे अज्ञान , दुर्बुद्धि , दोष को समाप्त करके हमें परमानंद का वरदान देते हैं
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली में राम नाम के अमृत की वर्षा करके संगत को भाव विभोर कर दिया
“भज श्री राम, भज श्री राम , श्री रामम् भज विमल मते ।”
भाव :- संतजन जिज्ञासुओं को समझाते हुए कहते हैं कि उस पतित पावन परमेश्वर का भजन कर , उसके नाम का आराधन कर , उसका चिंतन कर , उसका सिमरन कर और सिमरन कर- करके परमेश्वर के नाम के धन का संचय कर जिससे तेरा मन परमात्मा की भक्ति के खजाने से भरपूर हो जाए ।
जैसे हमारे शरीर में रोग आने पर हम चिकित्सक के पास जाते हैं , वह चिकित्सक हमारे रोग का उपचार करता है , उसके द्वारा बताई गई औषधि लेने तथा परहेज करने से हमारे तन के रोग दूर हो जाते हैं , इसी तरह हमारे मन के चिकित्सक संतजन , महापुरुष हैं । हमारा मन लाखों जन्मों से मोह – माया , ईर्ष्या – द्वेष , मान – सम्मान , लाभ – हानि की धूल में लिप्त है । जब हमें संत – महापुरुषों की संरक्षता , सान्निध्य मिलता है , तो उनकी कृपा से हमें साधन अर्थात परमात्मा का नाम मिलता है और उस साधन से साधना अर्थात नाम का अभ्यास होता है । साधना से सिद्धि अर्थात परमात्मा के नाम का आनंद मिलता है जिससे हमारे भीतर से अज्ञान , दुर्बुद्धि , दोष समाप्त हो जाते हैं और हमारा मन निरोगी हो जाता है ।
श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली , मेरठ में प्रात:कालीन सत्संग
सत्संग में केवल ढोलक बजाना या भजन गाना ही नहीं है वरन चित्त – चुनरिया को प्रभु प्रेम में रंगना है
राजौरी गार्डन, दिल्ली में माता की चौकी के रूप में सत्संग का आयोजन हुआ । इस सुअवसर पर पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी द्वारा दिए गए प्रवचन के कुछ अंश प्रस्तुत हैं: :
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि ने बड़ी संख्या में आये श्रधालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि परमेश्वर अपने नाम में ऐसे समाया है जैसे स्रोतों में जल , पुष्पों में खुशबू एवं लकड़ी में अग्नि । जैसे पुष्प में छिपी खुशबू इत्रकार पुष्प से अलग कर देता है , इसी प्रकार संतजन , भेदीजन हमें युक्ति बताते हैं , परमात्मा के पावन नाम का अभ्यास कराते हैं और हमें परमात्मा के दर्शन कराते हैं ।
हमें अपने पाप और पुण्य सभी प्रभु के चरणों में अर्पित कर देने चाहिए क्योंकि पाप और पुण्य के फल अर्थात दुःखों और सुखों को भोगने के लिए शरीर धारण करना पड़ता है । हम जो भी पुण्य करें , वह निष्काम अर्थात कामना रहित भावना से करना चाहिए | सत्संग करने का अर्थ केवल ढोलक बजाना या भजन गाना ही नहीं है , सत्संग के द्वारा साधक परमात्मा से सामूहिक रूप में प्रार्थना करते है कि हे प्रभु ! हम अबल हैं , आप सबल हैं , हम गुणहीन हैं , आप गुणवान हैं , आप अपने देव – द्वार से हम दीन – हीनों पर कृपा की बरसात करो । हमारी चित्त – चुनरिया को अपने प्रेम और भक्ति से रंग दो ।
ह्रदय की भूमि में नाम के बीज को अंकुरित और फलित होने के लिए सत्संग, सत के नाम की जल,खाद जरुरी है
[मेरठ]श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली , मेरठ में प्रात:कालीन सत्संग के अवसर परपूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए कहा
देवो दयाल नाम देयो मंगते को , सदा रहूँ रंगराता मैं ।
सदा रहूँ रंगराता मैं , सदा रहूँ गुणगाता मैं ।
भाव : उस परिपूर्ण परमात्मा से साधकों , भक्तों ने उसकी कृपा की भिक्षा मांगी । वे परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु ! तू दयालु है , मुझे अपने नाम की भिक्षा दो । तू दयाल होकर मेरे पाप कर्मों को न देख , जितने भी मेरे पाप कर्म हैं , तेरी कृपा से अधिक नहीं हैं । तू समर्थवान है , मुझे अपने नाम की ऐसी भिक्षा दे कि हर पल तेरे नाम की स्मृति बनी रहे और मुझे अपने रंग में ऐसा रंग दे कि हर पल तेरे गीतों को गाता रहूँ , गुनगुनाता रहूँ । मेरे अंत:करण में तेरे नाम की माला निरंतर चलती रहे ।
उपस्थित साधकों को समझाते हुए पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने कहा कि हमें सत्संगों में निरंतर आते रहना चाहिए । सत्संगों में नित नई प्रेरणाएँ मिलती हैं और हमारा मन परमात्मा के भजन में यत्नवान हो जाता है । बीज कितना ही उत्तम हो , उसको यदि जल एवं खाद न दी जाए , तो वह अंकुरित नहीं होता । इसी तरह हमारे ह्रदय की भूमि में संतों ने जो नाम रुपी बीज बोया है उसे जब सत्संग का जल , और सत के नाम की खाद मिलती है तो बीज अंकुरित और फलित होता है ।
सांसारिक सुख मृगतृष्णा है और परम आनंद और सुख परमात्मा के नाम में ही है
श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली , मेरठ में दिनांक 13 जनवरी 2013 को प्रात:कालीन सत्संग के अवसर पर पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए कहा :-
ये जन्म तुझे अनमोल मिला चाहे जो इससे कमा बाबा ।
कुछ दीं कमा, कुछ दुनिया कमा, कुछ हरि के हेतु लगा बाबा ।
भाव : हमें
संत हमें समझाते हैं कि इस अनमोल जीवन को परमात्मा का नाम लेने में लगाओ क्योंकि परम आनंद और सुख परमात्मा के नाम में है इसलिए उसके नाम का भजन का करो और उनके चरणों के अनुरागी बनो
प्रस्तुति राकेश खुराना
श्री शक्ति धाम मंदिर में अमृत वाणी के पाठ से नव वर्ष का स्वागत हुआ
गुरु चरण कमल चित्त जोड़िए
श्री शक्तिधाम मंदिर लाल कुर्ती मेरठ में
स्वामी सत्यानन्द महाराज जी द्वारा रचित अमृत वाणी के पावन पाठ से हुआ। पूज्य श्री नीरज मणि ऋषि जी ने इस अवसर पर अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए कहा सर्वप्रथम मनुष्य जीवन भाग्य से मिलता है , मनुष्य जीवन मिल भी गया तो संतों की शरण मुश्किल से मिलती है , संतों की शरण मिल जाती है तो महापुरषों से पतित पावन परमेश्वर का मंगलमय नाम मुश्किल से मिलता है, फिर गुरु कृपा एवम परमेश्वर की कृपा से अंतःकरण में परमात्मा का नाम जपने का भाव मुश्किल से पैदा होता है ।बिना संत कृपा के नाम भी नही जपा जाता। नाम को केवल लेने से कल्याण नही, नाम को जपने से कल्याण है।
चाहे जीवन भर हम ज्ञान की चर्चा करते रहें पर हमारे जीवन में अगर प्रभु के नाम का ध्यान और सिमरन नही है तो हमें पता ही नही चलता के नाम क्या है? जब हम नाम को जपते हैं तो परमात्मा हमारे अतःकरण में ऐसे प्रकट होता है जैसे मेहंदी को रगड़ने से लालिमा प्रकट होती है।
जिस कन्दरा के अन्दर शेर रहता है वहां गीदड़ नही आते, इसी प्रकार जिसके अन्तःकरण में परमात्मा का नाम होता है, वहां से पाप रूपी गीदड़ भाग जाते हैं।
आज हम सब नव वर्ष की पावन बेला पर भगवान् को याद इसलिए कर रहे हैं ताकि हमारा नव वर्ष मंगलमय हो, कल्याणकारी हो और हमारे जीवन की आन्तरिक और बाहरी विघ्न बाधाएं दूर हों, हमारे मन में ईश्वर की जय-जय कार हो। अंत में पूज्य श्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने सभी उपस्थित भक्तजनों को नव वर्ष के मंगलमय होने का आशीर्वाद देते हुए सत्संग का समापन किया।
प्रस्तुती राकेश खुराना
स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने राम नाम का दीपक दसों दिशाओं में जलाया
संत शिरोमणि इस युग के युगावतार, वन्दनीय; प्रातः कालीन पूजनीय स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के निर्वाण दिवस के अवसर पर श्री शक्तिधाम मंदिर, लाल कुर्ती, मेरठ में विशेष श्रधांजलि सभा का आयोजन किया गया|पूजनीय स्वामी सत्यानन्द जी महाराज को श्रधांजलि देने के लिए भारी संख्या में श्रधालुजन मंदिर में एकत्र हुए।
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृत प्रवचनों की वर्षा करते स्वामी जी के जीवन एवं उनके तप का वर्णन किया। उनहोंने बताया की स्वामी जी का जीवन बहुत ही सरल था। उन्हों कई ग्रन्थ भी लिखे जिन्हें श्रधालुजन बड़ी श्रधा एवं प्रेम से पढ़ते हैं तथा धर्मलाभ उठाते हैं|उन्होंने बताया कि ऐसे बहुत कम संत हैं जिन्हें सीधे ईश्वर दरबार से राम नाम का प्रशाद मिला। स्वामी जी ने इस राम नाम का दीपक दसों दिशाओं में जलाया स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित अमृतवाणी का पावन पाठ पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी के श्री मुख से हुआ। तथा स्वामी जी द्वारा लिखे गए भजनों का गायन भी किया गया।
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साधना में लीन हो कर मनुष्य का जीवन सफल हो जाता है
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने आज श्री शाक्तिधाम मंदिर लालकुर्ती मेरठ में प्रवचन किया उन्होंने
जीवन को सफल बनाने के लिए माँ भगवती की साधना में लीन होने का उपदेश दिया|
मनुष्य जीवन तभी सफल है जब भगवती प्रेम से हमारा मन ओत प्रोत होकर , परमेश्वर रुपी माँ को पाने के
लिए उसकी साधना में लीन हो जाये। साधक हर समय यही यतन करता रहे की मेरा प्रीतम , मेरा प्यारा,
मेरा प्राणनाथ, मेरा देवाधिदेव मुझे कैसे प्राप्त हो। जब कोई साधक इस यतन में लग जाता है, तो संतजन
कहते हैं कि जो चलेगा वह पहुंचेगा। जब किसी सच्चे संत द्वारा दिया शब्द क्रिया करता है तो घट भीतर भक्ति रुपी
प्रकाश पैदा होता है। और बार-बार सत्संगों में आने से तथा संतों के श्रीमुख से सुवचनों को सुनने से , चिंतन करने से
हमारे मन की चंचलता एवं चपलता शांत हो जाती है। धीरे-धीरे हमारे अन्दर परमात्मा से प्रेम पैदा होने लगता हैं हमारे
अन्दर परमात्मा से मिलने को आतुरता एवं व्याकुलता बढती हैं । हमारा मन जब भगवान् के पावन रस का पान
करके उसके आनंद में डूबता है । यह आनंद इतना मधुरीला होता है कि चित्त वहां से हटना ही नहीं चाहता ।
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी के श्रीमुख से सुवचनों
श्री शाक्तिधाम मंदिर लालकुर्ती मेरठ
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