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Tag: प्रस्तुती राकेश खुराना

सृष्ठी के छह चक्रों को पार करने पर ही सत लोक की अनुभूति होती है

गुरु अमरदास जी फरमाते हैं –
काया अन्दर सब किछ बसे , खंड, मंडल , पाताला ।
काया अन्दर जग जीवन दाता , सबनां करे प्रतिपाला ।
काया कामण सदा सहेली , गुरुमुख नाम संभाला ।
भाव: इस शरीर की विचित्र रचना है। इस स्थूल शरीर में छह चक्र हैं – पहला गुदा चक्र है , उसका धनी गणेश है । दूसरा इंद्री चक्र है , जिसका धनी ब्रह्मा है । तीसरा नाभि चक्र है, उसका धनी विष्णु है । चौथा ह्रदय चक्र है , जिसका धनी शिव है । पांचवा कंठ चक्र है , जो दुर्गा का स्थान है , वह ब्रह्मा , विष्णु, महेश तीनों की माता है । छटा चक्र दो भ्रू – मध्य आँखों के पीछे है जिसे शिवनेत्र या तीसरी आँख भी कहते हैं \ यह शरीर में रूह की बैठक या आत्मा का ठिकाना है इन चक्रों को तय कर योगीजन अनहद शब्द को पकड़कर सहस्रार में लीन होते हैं ।
गुरु नानक साहब ने योगियों से बातचीत में इसका संकेत दिया है – इस काया अन्दर मंगन चढ़े जोगी तां नाओं पल्ले पाई । अर्थात – इन छह चक्रों से ऊपर आओ तो नाम का परिचय , अनुभव मिलेगा । जैसे पिंड के छह चक्र हैं , ब्रह्माण्ड के भी छह चक्र हैं — सहस्रार या सहस्र दल कमल , त्रिकुटी , सुन्न , महासुन्न, भंवरगुफा और सतलोक या सचखंड । इन मंडलों को गुरु की सहायता से ही तय किया जा सकता है ।
गुरु अमरदास जी,
गुरु नानक,
प्रस्तुती राकेश खुराना

मन रुपी मदमस्त हाथी के लिए ज्ञान रुपी रत्न अंकुश के समान है

काया कदली वन अहै , मन कुंजर महमंत ।
अंकुस ज्ञान का रतन है, फ़ेरै हैं संतजन ।
वाणी : संत कबीर दास जी
अर्थात :- यह शरीर तो केले का वन है और मन मदमस्त हाथी की भांति है जिस प्रकार केले हाथी को प्रिय होते हैं , अतः केलों के वन में घुस जाने वाला पुरे वन को तहस – नहस कर देता है , उसी प्रकार मन को शरीर से , शरीर की इन्द्रियों व उनके विषयों से लगाव होता है । वह इन्द्रियों को भोगों की ओर प्रवृत्त करके शरीर को उसके वास्तविक उद्देश्य से दूर कर देता है । किन्तु ज्ञान रुपी रत्न इस मन रुपी हाथी के लिए अंकुश के समान है ज्ञानीजन इस अंकुश को फेर कर मन रुपी हाथी को वश में रखते हैं ।
श्री गीता जी में श्री कृष्ण जी इसी तथ्य को रथ के उदाहरण से समझाते हैं –
शरीर रुपी रथ को इन्द्रियों रुपी घोड़े मनमानी दिशा में ले जाते हैं । किन्तु मन रुपी सारथी जब बुद्धि रुपी लगाम से उन्हें नियंत्रित कर लेता है तब आत्मा रुपी उस रथ के यात्री को ये घोड़े लक्ष्य पर ले जाते हैं ।
श्री गीता जी ,
श्री कृष्ण ,
संत कबीर दास जी,
प्रस्तुती राकेश खुराना

सच्चे पारस के लिए पूजा के चाकू और कसाई की छुरी में कोई भेद नही है

पारस गुन अवगुन नहीं चितवै , कंचन करत खरो ।
भाव : संत सूरदास जी कहते हैं कि पारस के पास किसी भी किस्म का लोहा चला जाये , चाहे वह पूजा में बरतने वाला चाकू हो , चाहे वह कसाई की छुरी हो , पारस दोनों में कोई फर्क नहीं करता , वह तो अपनी दया की नज़र दोनों पर डालता है , अपनी नजरे – करम से दोनों को खरा सोना बना देता है । वह यह नहीं देखता , कि ये लोहा किस काम आता रहा है । इसी तरह हे प्रभु ! आप के कदमों में गुनाहगार भी आते हैं , पाक और पाकीजा भी आते हैं मगर आप तो समदर्शी होने के नाते दोनों पर नजरे – करम करते हैं । हे प्रभु ! मैं भी पापी हूँ ,मैं इस काबिल तो नहीं हूँ कि आप मुझ पर नजरे – करम करें मगर आप अपनी रहमत से मुझे इस भवसागर से पार कर दीजिए ।
संत सूरदास जी,
प्रस्तुती राकेश खुराना

विचारों की शक्ति को पहचानों और दूसरों का बुरा विचारने की प्रवृति का त्याग करो

विचारों की शक्ति
हम लोग यह नहीं जानते कि विचार कितने शक्तिशाली होते हैं । इससे सम्बन्धित राजा अकबर और बीरबल की एक स्मरणीय कहानी है – एक बार अकबर के मंत्री बीरबल ने चाह कि राज को सिद्ध करके दिखाए कि विचार कितने शक्तिशाली होते हैं, अतः उसने राजा से कहा कि जब अमुक व्यक्ति उनकी ओर आये तो वे (राजा) उस आदमी के बारे में बुरा सोचते रहें । राजा ने बीरबल की बात मानी और मन ही मन अपनी ओर आते व्यक्ति के बारे में बुरा सोचते रहे । जब वह व्यक्ति पास आया तो राज ने पूछा , ” जब तुमने मुझे पहली बार देखा , तो तुमने क्या सोचा ?” उस व्यक्ति ने उत्तर दिया , ” अचानक मेरे मन में बहुत जबरदस्त ख्याल आया कि मैं आप के ऊपर प्रहार करूँ । ” उस इन्सान द्वारा ऐसा सोचने की कोई वजह नहीं थी , पर उसके प्रति राजा के हिंसक विचारों का असर अनजाने में उस पर पड़ा और उसने वैसी ही प्रतिक्रिया की ।
हमारी भावनाएं केवल दूसरों को ही नुकसान नहीं पहुंचाती , बल्कि अंत में हमारा अपना नुकसान भी कर सकती हैं । जो समय हम दूसरों का बुरा सोचने में लगाते हैं , वह ऐसा समय है जब हम स्वयं को मिले बेशकीमती साँस बर्बाद करते हैं । दूसरों की आलोचना में लगाया गया समय हमें प्रभु से मिलने के हमारे लक्ष्य को दूर कर देता है । सर्वप्रथम , अगर हम दूसरों का बुरा सोचते हैं , तो हम ध्यानाभ्यास में ध्यान नहीं टिका पाते हैं । दुसरे वो विचार हमारे साथ दिन भर रहेंगे , मन में खटकते रहेंगे । तीसरे, हम नए कर्म पैदा करते हैं , जिनका फल हमें अवश्य भुगतना होता है और आखिर में, हम प्रभु की एक संतान के प्रति प्रेम से खाली हो जाते हैं। प्रभु हमसे कैसे खुश होगा जब हम उसके किसी बच्चे के बारे में बुरा सोचेंगे ?
विचारों की शक्ति,
अकबर बीरबल की रोचक कहानी ,
प्रस्तुती राकेश खुराना

मेरी रूह की बहुत बुरी दशा थी , रुलती फिरती थी , गुरु ने अपने चरणों में लगा लिया

संत नामदेव जी के जीवन की एक घटना :-
संत नामदेव जी अधिकांश समय प्रभु भक्ति में ही लीन रहते थे , जहाँ बैठ गए – ध्यान लग गया । एक बार इनके मकान का छज्जा टूट गया । घरवाले कहते रहे , ये भी रोज-रोज वादा करते रहे , परन्तु छज्जा नहीं
बना । एक दिन घरवालों ने अंतिम चेतावनी दे दी , फिर भी भूल गये।
इधर प्रभु ने सोचा कि आज तो भक्त की दुर्दशा होगी । बात है भी सही , जिसको हम याद करते हैं , वह भी हमें याद करता है । आये और तुरंत सारा घर ठीक कर दिया । नामदेव जी घर की ओर आये तो पाहिले सोचने लगे
“आज खैर नहीं ” परन्तु जब घर की ओर आये तो देखा कि छज्जा बना हुआ था । प्रभु ने इनका चोला धारण कर काम कर दिया ।
‘कहत नामदेव बलि -बलि जैहों , हरी भजि और न लेखौ ।’ वे कहते हैं कि मैं अपने गुरु पर न्यौछावर होता हूँ करोड़ – करोड़ बार शुकराना अदा करता हूँ क्योंकि मेरी रूह की बहुत बुरी दशा थी , रुलती फिरती थी , गुरु ने अपने चरणों में लगा लिया । मुझ पर रहमत की ,मुझ पर करम फरमाया ।
प्रस्तुति राकेश खुराना

हे प्रभु! मुझे ऐसी विधि दे दो जिससे मैं क्षण मात्र भी आप को भुला न सकूँ:गुरु नानक

काम क्रोध लोभ झूठ निंदा इन ते आपि छडावहु।
इह भीतर ते इन कउ डारहु आपन निकटि बुलावहु ।
अपुनी बिधि आपि जनावहु हरि जन मंगल गावहु ।
बिसरू नाही कबहू हीए ते इह बिधि मन महि पावहु ।
गुरु पूरा भेटिओ वडभागी जन नानक कतहि न धावहु ।

भाव -काम क्रोध लोभ झूठ और निंदा से आप ही छुड़ा सकते हैं । ये सब मुझ से बाहर कर दो और मुझे अपने पास बुला लो । किस तरह आप यह करते हैं यह केवल आप ही जानते हैं । हे प्रभु! मुझे ऐसी विधि दे दो जिससे मैं क्षण मात्र भी आप को भुला न सकूँ । गुरु नानक कहते हैं कि बड़े भारी भागों से वह पूरे सद्गुरु से मिले और उनके मन की भटकन हमेशा के लिए ख़त्म हो गई है।
वाणी: श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी ,
प्रस्तुती राकेश खुराना

इन्द्रियां पाप कर्म से दूर होकर शुभ कर्मों में प्रवृत्त होकर कीर्ति वाली हों ; गीतोपदेश

राग द्वेष विमुक्तेस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन।
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति।
भाव: भगवान श्री कृष्ण श्रीमद्भगवत गीता में अर्जुन को इन्द्रियों के विषय सुख का वर्णन करते हुए कहते हैं – पांच ज्ञानेन्द्रियों के रूप,रस,गंध,शब्द और स्पर्श ये पांच विषय हैं जिनके सेवन से सुख की अनुभूति होती है । सुख से अनुराग हो उठता है , अनुराग से आसक्ति और जिससे विवेक खो जाता है क्योंकि मनचाही नहीं हो पाती तो वह अविवेकी होकर पापकर्म को प्रदत्त होता है । अतः निरंतर सुख की कामना रखने वाले को विषयों के प्रति संयम और इन्द्रियों का निग्रह करना आवश्यक है । इसलिए साधक को अंतर्यामी परमात्मा से प्रार्थना करनी चाहिए कि मेरी इन्द्रियां पाप कर्म से दूर होकर शुभ कर्मों में प्रवृत्त होकर कीर्ति वाली हों ।
श्री कृष्ण का गीतोपदेश ,
प्रस्तुती राकेश खुराना

परमात्मा घट-घट के अंतर की जानने वाला है और भले, बुरे सबकी पीड़ा को पहचानता है

गुरु गोविन्द सिंह जी फरमाते हैं –
घट-घट के अंतर की जानत। भले बुरे की पीर पछानत।
अर्थात वह परमात्मा घट-घट के अंतर की जानने वाला है और भले, बुरे सबकी पीड़ा को पहचानता है। परमात्मा में पूर्ण विश्वास का होना प्रार्थना की सफलता का मूल कारण है। हम अपने आसपास के लोगों को तथा अपने को तो धोखा दे सकते हैं लेकिन हम अपने अंतर की ताकत – परमात्मा को धोखा नहीं दे सकते। कई बार प्रार्थनाओं को करते वक्त हम अपने मन, वचन और कर्म में एकरूप नहीं होते। हम अपनी चतुराइयों, कुशलता तथा योजनाओं पर ही अधिक निर्भर करते हैं। हमारी प्रार्थनाएं आत्मा की गहराइयों से नहीं निकलती। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इस प्रकार से उच्चरित और दिखावटी प्रार्थनाएं व्यर्थ हो जाती हैं, उनकी सुनवाई नहीं होती। हमें इस बात का अनुभव होना चाहिए कि प्रभु हमारे अन्तरीय विचारों और मन के क्रिया-कलापों को अच्छी तरह जानता है। हमें उसकी उदारता पर पक्का भरोसा होना चाहिए।
गुरु गोविन्द सिंह जी फरमाते हैं –
घट-घट के अंतर की जानत। भले बुरे की पीर पछानत।
अर्थात वह परमात्मा घट-घट के अंतर की जानने वाला है और भले, बुरे सबकी पीड़ा को पहचानता है।
गुरु गोबिंद सिंह,जी की वाणी ,
प्रस्तुती राकेश खुराना

अध्यात्मिक मार्ग पर समर्पित भाव से आगे बढने से परमात्मा मिल जाते हैं: पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी

श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली , मेरठ में दिनांक 31 मार्च 2013 को प्रात:कालीन रविवासरीय सत्संग के अवसर पर पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए अध्यात्म मार्ग पर समर्पित भाव से आगे बढने की प्रेरणा दी
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने कहा कि अध्यात्म मार्ग समर्पण का मार्ग है। समर्पण वहां होता है जहाँ प्रेम होता है। जहाँ प्रेम नहीं होता, वहां समर्पण हो ही नहीं सकता।
जो जिज्ञासु नाम आराधन कर-कर के तथा अपने अहम् को समाप्त करके परम पिता परमात्मा ले एक मजबूत डोर में बंध गए अर्थात पूर्णतया समर्पित हो गए , उनके जीवन में परमात्मा प्रकट होते हैं।
एक जिज्ञासु नें किसी संत महापुरुष से पूछा ” आपको कुछ पाना हैं या आपको कुछ जानना है?” इसपर संत बोले ” इस जगत में अगर कोई निष्काम, निरही, पूर्ण संत मिल जाएँ और उस संत द्वारा जब पावन नाम मिल जाए तो पाने के लिए कुछ बचता ही नहीं है। और पवित्र नाम को जप-जप कर जब हमनें अपने आप को परमात्मा के चरणों में पूर्णतया समर्पित कर दिया, वो हमारा हो गया और हम उसके हो गए , अब जानने और खोने के लिए कुछ नहीं बचता हैं । ”
प्रस्तुती राकेश खुराना ,
श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली,
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी

मेरे सदगुरु सुगढ़ सुजान चुनरिया रंग देंगे

मेरे सदगुरु सुगढ़ सुजान चुनरिया रंग देंगे

मेरे सदगुरु सुगढ़ सुजान चुनरिया रंग देंगे

[मेरठ]श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली , मेरठ में आज रविवार , दिनांक 24 मार्च 2013 को प्रात:कालीन सत्संग के अवसर पर पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी ने अमृतमयी प्रवचनों की वर्षा करते हुए श्रधालुओं को भाव विभोर किया|उन्होंने आज यह भजन सुनाया

मेरे सदगुरु सुगढ़ सुजान चुनरिया रंग देंगे।
वो तो हैंगे दीनदयाल चुनरिया रंग देंगे।।

इस भजन की व्याख्या करते हुए पूज्य श्री ने बताया कि आध्यात्म के पथ पर चलते-चलते , तप की भट्ठी में तपे हुए, ध्यान रुपी अनुसन्धान करके जिन संत महापुरुषों को प्रभु के दरबार से अनुभूतियाँ हुईं , ऐसे संतों को सुगढ़ कहा जाता है । जिसे प्रभु के रहस्यों की जानकारी हो, जिसे शुभ का ज्ञान हो तथा वह प्रभु के प्रेम में ओत-प्रोत हो ऐसे संतों को सुजान कहते है।
पुज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी आगे समझाते हुए कहते हैं कि एक सुगढ़ सुजान संत वही है जिसकी नस-नस, रोम-रोम परमात्मा के गूढे रंग में रंगा हो, जो राम नाम से भरपूर हो। ऐसे महापुरुषों संतों से हमारी चित्त चुनरिया रंगती है । अगर किसी का दीपक जला हुआ हो तभी वह किसी का दीपक जला सकता हैं । ऐसे ही कोई आत्मज्ञानी , परमेश्वर को जानने वाला, अनुभवी संत किसी जिज्ञासु के अन्तःकरण में प्रभु के नाम का दीपक प्रजव्वालित करता है ।
श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली,
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी
अमृतमयी प्रवचन,
प्रस्तुती राकेश खुराना
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