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Tag: माया

प्रभु का नाम नहीं जपा तो जीवन किसी काम का नहीं

 प्रभु का नाम नहीं जपा तो जीवन किसी काम का नहीं

प्रभु का नाम नहीं जपा तो जीवन किसी काम का नहीं

परम पूज्य स्वामी सत्यानन्द महाराज जी द्वारा रचित भक्ति प्रकाश ग्रन्थ का एक अंश.

मन तो तुम मैं रम रहा, केवल तन है दूर.
यदि मन होता दूर तो मैं बन जाता धूर.
भावार्थ: एक जिज्ञासु परम पिता परमात्मा को शुक्रिया अदा करते हुए कहता है कि हे प्रभु!! मुझ पर तुम्हारी कितनी अधिक कृपा है कि मेरा मन आपके सुमिरन में लगा हुआ है. मैं केवल तन से ही आपके पावन चरणों सेदूर हूँ परन्तु मेरा मन आपके चरणों की स्तुति में लगा हुआ है. यदि मेरा मन भी आपसे दूर होता तो में कुछ भी नहीं होता, मेरी स्थिति धूल के समान होती.

प्रभु ने यह मानव काया हमें उसका नाम लेने के लिए दी है अर्थात इस मानव जन्म का उद्देश्य नाम के जाप द्वारा प्रभु की
प्राप्ति करना है. यदि हमने सारा जीवन सांसारिक विषयों तथा माया में ही व्यर्थ कर दिया और प्रभु का नाम नहीं जपा तो
हमारा जीवन किसी काम का नहीं तथा हमारी काया की स्थिति धूल से ज्यादा नहीं है.

श्री रामशरणम् आश्रम ,
गुरुकुल डोरली , मेरठ,
प्रस्तुती राकेश खुराना

मोह,माया,ममता,अहम, फरेब को त्यागे बगैर अगर कहूं परमात्मा नहीं मिलता तो झल्ली ही कह्लाउंगी

तांघ माहि दी जली आं
नित काग उडावां खली आन
नै चन्दन दे शोर किनारे
घुम्मन घेरा ते ठाठा मारे
डुब डुब मोहे तारु सारे
शोर करा ते मैं झल्ली आं ।

Rakesh khurana

भाव: आत्मा की सबसे बड़ी इच्छा सद्गुरु परमात्मा को पाने की चाह होती है । सद्गुरु परमात्मा को पाने के लिए खुद को खोना भी पड़ता है तभी परमात्मा की समीपता प्राप्त हो सकती है । जीवन की सबसे बड़ी सार्थकता यही है ।
बुल्ले शाह फरमाते हैं कि हे प्रियतम मैं तेरी चाह में विरह की आग में जल रही हूँ , कागों[क्रो] के रूप में सांसारिक वासनाओं को अपने समीप नहीं आने देती,
संसार के तमाम रिश्ते नाते, कामनाएँ , वासनाएं प्रेम नदी के किनारे इतना शोर मचा रही हैं जिसके कारण आत्मा नदी में उतर ही नहीं पा रही है । तथा नदी भी इतनी भयानक है कि मोह , माया एवं ममता की भँवरे इतनी तेज पड़ती हैं कि तैरने वाला तो तैरने वाला कभी कभी दूसरों को पार पहुँचाने वाली लकड़ी की नाव भी इस में डूब जाती हैं । कितने ज्ञानी विज्ञानी इस नदी में डूब कर मर गए ऐसे में मेरा क्या होगा ? एक तरफ तो मैं तो इन मोह , माया, ममता, अहम्, फरेब, का त्याग नहीं कर पा रही , तथा दूसरी तरफ मैं शोर मचा रही हूँ की मुझे सद्गुरु परमात्मा की समीपता नहीं मिल पा रही, तो लोग तो मुझे झल्ली ही कहेंगे नां ।
सूफी संत बुल्ले शाह का कलाम
प्रस्तुति राकेश खुराना