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Tag: श्री कृष्ण

मन रुपी मदमस्त हाथी के लिए ज्ञान रुपी रत्न अंकुश के समान है

काया कदली वन अहै , मन कुंजर महमंत ।
अंकुस ज्ञान का रतन है, फ़ेरै हैं संतजन ।
वाणी : संत कबीर दास जी
अर्थात :- यह शरीर तो केले का वन है और मन मदमस्त हाथी की भांति है जिस प्रकार केले हाथी को प्रिय होते हैं , अतः केलों के वन में घुस जाने वाला पुरे वन को तहस – नहस कर देता है , उसी प्रकार मन को शरीर से , शरीर की इन्द्रियों व उनके विषयों से लगाव होता है । वह इन्द्रियों को भोगों की ओर प्रवृत्त करके शरीर को उसके वास्तविक उद्देश्य से दूर कर देता है । किन्तु ज्ञान रुपी रत्न इस मन रुपी हाथी के लिए अंकुश के समान है ज्ञानीजन इस अंकुश को फेर कर मन रुपी हाथी को वश में रखते हैं ।
श्री गीता जी में श्री कृष्ण जी इसी तथ्य को रथ के उदाहरण से समझाते हैं –
शरीर रुपी रथ को इन्द्रियों रुपी घोड़े मनमानी दिशा में ले जाते हैं । किन्तु मन रुपी सारथी जब बुद्धि रुपी लगाम से उन्हें नियंत्रित कर लेता है तब आत्मा रुपी उस रथ के यात्री को ये घोड़े लक्ष्य पर ले जाते हैं ।
श्री गीता जी ,
श्री कृष्ण ,
संत कबीर दास जी,
प्रस्तुती राकेश खुराना