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Tag: संत कबीर दास जी

मन रुपी मदमस्त हाथी के लिए ज्ञान रुपी रत्न अंकुश के समान है

काया कदली वन अहै , मन कुंजर महमंत ।
अंकुस ज्ञान का रतन है, फ़ेरै हैं संतजन ।
वाणी : संत कबीर दास जी
अर्थात :- यह शरीर तो केले का वन है और मन मदमस्त हाथी की भांति है जिस प्रकार केले हाथी को प्रिय होते हैं , अतः केलों के वन में घुस जाने वाला पुरे वन को तहस – नहस कर देता है , उसी प्रकार मन को शरीर से , शरीर की इन्द्रियों व उनके विषयों से लगाव होता है । वह इन्द्रियों को भोगों की ओर प्रवृत्त करके शरीर को उसके वास्तविक उद्देश्य से दूर कर देता है । किन्तु ज्ञान रुपी रत्न इस मन रुपी हाथी के लिए अंकुश के समान है ज्ञानीजन इस अंकुश को फेर कर मन रुपी हाथी को वश में रखते हैं ।
श्री गीता जी में श्री कृष्ण जी इसी तथ्य को रथ के उदाहरण से समझाते हैं –
शरीर रुपी रथ को इन्द्रियों रुपी घोड़े मनमानी दिशा में ले जाते हैं । किन्तु मन रुपी सारथी जब बुद्धि रुपी लगाम से उन्हें नियंत्रित कर लेता है तब आत्मा रुपी उस रथ के यात्री को ये घोड़े लक्ष्य पर ले जाते हैं ।
श्री गीता जी ,
श्री कृष्ण ,
संत कबीर दास जी,
प्रस्तुती राकेश खुराना

कहत कबीर सुनो भाई साधो , होनी होके रही

कर्मों के विधान से कोई भी नहीं बच नहीं सका। एक पौराणिक आख्यान के माध्यम से कबीर दास जी हमें समझाते हैं :-
राहु केतु औ भानु चंद्रमा , विधि संयोग परी ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो , होनी होके रही ।
कबीर दास जी फरमाते हैं कि जो राहु और केतु हैं उनका ग्रहण भानु और चंद्रमा को लगता है । उसकी कहानी इस प्रकार है – समुद्र मंथन हो रहा था । उसमें से अमृत , शराब और जहर तीनों ही निकले । जो देवता थे उन्होंने सोचा कि हम अमृत पीयें और शराब राक्षसों को पिलायें , विष तो महादेव जी ने पी लिया था । देवताओं ने अमृत पीना शुरू कर दिया तो एक राक्षस जिसका नाम राहु था, उसको मालुम हो गया । उसने अपना भेष बदला और देवताओं की पंक्ति मेंजाकर बैठ गया । उसने अमृत पीया , अमृत अभी मुंह में ही था , गले के नीचे भी नहीं उतरा था कि भगवान विष्णु को पता चल गया , भगवान विष्णु ने तुरंत उसका सिर काट दिया । अब जो सिर कटा हुआ है उसको केतु बोलते हैं और जो नीचे का धड़ है , उसको राहु बोलते है। चंद्रमा और सूर्य ने यह बात भगवान विष्णु को बताई थी । चंद्रमा और सूर्य को कुछ – कुछ समय बाद जो ग्रहण लगता है , राहु और केतु ही उसका निमित्त होते हैं । इस दोहे का कोई सम्बन्ध जे दी यूं और भाजपा के गठबंधन से नही है|
संत कबीर दास जी,
प्रस्तुति राकेश खुराना

सतगुरु सदा सत्य के साथ जुड़े हुए हैं और इसका अंश होने के नाते हम चेतन हैं

निस दिन सतसंगत में राचै , सबद में सुरत समावै ।
कहै कबीर ताको भय नाही , निर्भय पद परसावै।

Rakesh khurana On Sant kabir das

भाव : संत कबीर दास जी कहते हैं कि सतगुरु सदा सत्य के साथ जुड़े हुए हैं , वे सत में लीन हैं , वे प्रभु में अभेद हैं ।हमारा रात – दिन सत्संग के बीच गुजरे ।हम परमात्मा का अंश हैं और उसका अंश होने के नाते हम चेतन हैं और उस चेतना को हमने उभारना है , नहीं तो हमारी जिंदगी बेकार हो जाएगी ।उस चेतनता के साथ सतगुरु हमें ऐसे जोड़ देते हैं कि वह जोड़ कभी नहीं टूटता। जैसे – जैसे हम अभ्यास करते चले जाते हैं , हमारी सुरत अन्दर के शब्द के साथ जुडती जाती है , माया समाप्त हो जाती है । जब हम इस शरीर से ऊपर उठते है तो हम निडर हो जाते हैं , डर हमें छू भी नहीं सकता ।
हम एक ऐसे गुरु की शरण में पहुँच गए है जो हमें प्रभु की ज्योति , श्रुति के साथ जोड़ देता है ।
संत कबीर दास जी
प्रस्तुति राकेश खुराना