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१९४७ में छोड़ी गई जमीन और रेफुजियों को अलॉटमेंट की जांच आवश्यक

[चंडीगढ़,दिल्ली]१९४७ में छोड़ी गई जमीन और उसकी रेफुजियों को अलॉटमेंट की जांच आवश्यक
१९४७ के विभाजन के दौरान देश में छोड़ी गई जमीन और फिर उसे रेफुजियों को अलॉटमेंट प्रक्रिया की जांच
आवश्यक है|
आजादी के बाद से ही इस अलॉटमेंट प्रक्रिया पर सवाल उठते आ रहे हैं |
1947 में बढ़ी संख्या में मुस्लिम परिवार अपनी उपजाऊ जमीनों+मूलयवान सम्पत्ति को भारत सरकार के भरोसे छोड़ कर पाकिस्तान जाने को मजबूर हुए|उनकी उस सम्पत्ति को भारत में आ रहे हिन्दू शरणार्थियों को अलॉट किया गया लेकिन दुर्भाग्यवश आज तक उन जमीनों+सम्पत्ति का लेखा जोखा नही है| केंद्रीय गृह मंत्रालय से लेकर पंजाब हरियाणा और यूपी की सरकारें इस दिशा में बचती फिर रही है |तमाम सरकारें इसकी जांच भी करवाने को तैयार नही है |२००५ में पंजाब में बाकायदा एक्ट जारी करके रेफुजियों के सारे हक़ जब्त कर लिए गए,जिसके फलस्वरूप ओल्ड लैंड रिकॉर्ड कार्यालयों से लेकर उच्च अदालतों में भी हजारों केस अपनी तारीखों के लिए जूतियां रगड़ रहे हैं|पीएमओ भी महज पोस्ट ऑफिस की भूमिका निभाने में व्यस्त है |तीन साल से इसके ग्रीवांस सेल्ल के पोर्टल पर कोई प्रगति अपलोड नहीं की जा रही है|पंजाब के मुख्य सचिव के पोर्टल का भी कमोबेश यही हाल है|१९८४ के पीड़ितों को मुआवजे के लिए बंद पढ़े कानून की कतबों को खुलवाने के लिए वर्तमान पंजाब सरकार पूरा जोर लगा रही है लेकिन २००५ के एक्ट को खुलवाने के लिए उसमे कोई रूचि नहीं है |
मेरे अनुभव के अनुसार ये जमीन बढ़ी संख्या में भारत आने वाले हिंदुओं को महज कागजों में ही अलॉट की गई |अधिकांश को केंसिल दिखा कर टरका दिया गया| केंसिल की गई जमीनों का पुनः अलॉटमेंट की कोई सूचना देने को तैयार नहीं है| व्यक्तिगत प्रयासों से ज्ञात हुआ है के पटवारियों के खातों में अभी भी ऐसी भूमि पढ़ी हुई है| जिन पर अवैध कब्जे कराये गए हैं|इसी से स्वाभाविक शक पैदा होता है के बढ़ी मात्रा में बंदरबांट की गई है |
इसी के मध्यनजर क्यूँ ना पंजाब और हरियाणा के साथ यूपी में भी 1947 की जमीनों की जांच हो जाये