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UK’s Top Judge Lord Reed Sat Beside CJI in Supreme Court

(New Delhi)UK’s Top Judge Lord Reed Sat Beside CJI in Supreme Court
The President of the United Kingdom’s Supreme Court Lord Robert John Reed on Monday witnessed proceedings of the Supreme Court.
Justice Reed, who had come to India to take part in the International Judges’ conference 2020, sat besides Chief Justice of India S A Bobde in the Supreme Court.
Attorney General K K Venugopal welcomed the head of the judiciary of the United Kingdom in the courtroom.

कांग्रेस सीजेआई पर कीचड उछाल कर भागने के फ़िराक में तो नहीं

[नई दिल्ली]कांग्रेस सीजेआई पर कीचड उछाल कर भागने के फ़िराक में तो नहीं
कांग्रेस आज कल आप पार्टी के सिद्धांत पर चलते हुए कीचड उछाल कर भाग रही है
अच्छा होता कांग्रेस आप के डाउन फाल के कारणों को समझ लेती और श्रीमती इंदिरा गाँधी
की सत्ता में वापिसी के इतिहास को भी पढ़ लेती |पुरानी कहावत हे के काठ की हांडी एक बार ही अंगीठी पर चढ़ती है
लेकिन सियासतदां आज कल एक ही टूटी फूटी हांडी कोबार बार प्रयोग कर रहे हैं|इससे कुछ समय के लिए शोर तो मच जाता है मगर
थाली खाली ही रह जाती है | कांग्रेस कीचड उछालने के दुष्परिणामों को आत्मसात करने के बजाय जस्टिस लोया केस में मुंह की खाये खिसियानी बिल्ली की तरह सी जे आई को ही नौंचने के लिए महाभियोग लेकर आ गई है | संसद में बहुमत नहीं है +आरोपों में दम नहीं है +जनता सहयोग नहीं है फिर भी यह महाभियोग का कीचड उछाला जा रहा है | मालूम हो के कांग्रेस की इस मायने में गुरु “आप” पार्टीने महाभियोग प्रस्ताव से किनारा कर लिया है |
देश के प्रधान न्यायाधीश को पद से हटाने के लिये उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का यह भले ही पहला मामला हो, लेकिन इसके पहले उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ इस तरह की कार्यवाही चलायी जा चुकी है। सभी मामलों में महाभियोग को अंतिम चरण तक पहुँचाने में असफलता ही हाथ लगी है |
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ दुर्व्यवहार और पद के दुरुपयोग के आरोप में कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों की ओर से आज राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस सौंपा है।
आजाद भारत में पहली बार किसी न्यायाधीश को पद से हटाने की कार्यवाही
मई 1993 में प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव के कार्यकाल में हुयी थी। उस समय उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश वी रामास्वामी के खिलाफ लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया गया था। उनके खिलाफ 1990 में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहते हुये भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के आधार पर पद से हटाने के लिये महाभियोग प्रस्ताव पेश किया गया था। हालांकि यह प्रस्ताव लोकसभा में ही पारित नहीं हो सका था।
साल 2011 में कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ ऐसा ही प्रस्ताव राज्यसभा सदस्यों ने पेश किया था। इस मामले में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी सुधाकर रेड्डी की अध्यक्षता वाली जांच समिति ने उन्हें अमानत में खयानत का दोषी पाया था। जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही उन्हें कदाचार के आरोप में पद से हटाने के लिये पेश प्रस्ताव को राज्यसभा ने 18 अगस्त, 2011 को पारित कर किया। इस प्रस्ताव पर लोकसभा में बहस शुरू होने से पहले ही न्यायमूर्ति सेन ने एक सितंबर, 2011 को अपने पद इस्तीफा दे दिया। हालांकि उन्होंने राष्ट्रपति को भेजे त्यागपत्र में कहा था, ‘‘मैं किसी भी तरह के भ्रष्टाचार का दोषी नहीं हूं।’’
कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यााधीश पी डी दिनाकरण पर भी पद का दुरूपयोग करके जमीन हथियाने और बेशुमार संपत्ति अर्जित करने जैसे कदाचार के आरोप लगे थे। इस मामले में भी राज्यसभा के ही सदस्यों ने उन्हें पद से हटाने के लिये कार्यवाही हेतु याचिका दी थी। इस मामले में काफी दांव पेंच अपनाये गये।
न्यायमूर्ति दिनाकरण ने जनवरी, 2010 में गठित जांच समिति के एक आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती भी दी। बाद में अगस्त 2010 में सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किये गये न्यायमूर्ति दिनाकरण ने इसमें सफलता नहीं मिलने पर 29 जुलाई, 2011 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इस तरह उन्हें महाभियोग की प्रक्रिया के जरिये पद से हटाने का मामला वहीं खत्म हो गया।
तेलंगाना और आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सी वी नागार्जुन रेड्डी और गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जे बी पार्दीवाला के खिलाफ भी महाभियोग की कार्यवाही के लिये राज्यसभा में प्रतिवेदन दिये गये। न्यायमूर्ति पार्दीवाला के खिलाफ तो उनके 18 दिसंबर, 2015 के एक फैसले में आरक्षण के संदर्भ में की गयी टिप्पणियों को लेकर यह प्रस्ताव दिया गया था। लेकिन मामले के तूल पकड़ते ही न्यायमूर्ति पार्दीवाला ने 19 दिसंबर को इन टिप्पणियों को फैसले से निकाल दिया था।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एस के गंगले के खिलाफ वर्ष 2015 में एक महिला न्यायाधीश के यौन उत्पीडन के आरोप में राज्यसभा के सदस्यों ने महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस सभापति को दिया था। इस प्रतिवेदन के आधार पर न्यायाधीश जांच कानून के प्रावधान के अनुरूप समिति गठित होने के बावजूद न्यायमूर्ति गंगले ने इस्तीफा देने की बजाय जांच का सामना करना उचित समझा। दो साल तक चली जांच में यौन उत्पीडन का एक भी आरोप साबित नहीं हो सकने के कारण महाभियोग प्रस्ताव सदन में पेश नहीं हो सका

Khehar Sworn in as 44th Chief Justice of India:1st Sikh CJI For 7 Months

[New Delhi]Senior Most Khehar Sworn in as 44th Chief Justice of India:1st Sikh CJI
Justice Jagdish Singh Khehar, who led the five-judge constitution bench in the Supreme Court which had struck down the controversial NJAC Act for appointment of judges, was today sworn in as the 44th Chief Justice of India.
President Pranab Mukherjee administered the oath of office and secrecy to Justice Kehar at the Darbar Hall of Rashtrapati Bhawan.
Khehar took oath in the name of God in English at the ceremony where the Opposition was conspicuous by its absence.
Then CJI, T S Thakur had last month recommended the name of Justice Khehar, the senior-most judge of the Supreme Court, to be his successor.
Justice Khehar, 64, will be the first Chief Justice from the Sikh community. Justice Thakur demitted office yesterday.
Justice Khehar will hold the tenure for over seven months till August 27.
Besides heading the bench in NJAC matter, Justice Khehar has also headed a bench which had set aside the imposition of President’s rule in Arunachal Pradesh in January.
He was a part of the bench which sent Sahara chief Subrata Roy to jail while hearing the matter relating to the refund of money invested by people in his two companies.
Justice Khehar also headed a bench which recently gave a significant verdict holding that the principal of ‘equal pay for equal work’ has to be made applicable to those engaged as daily wagers, casual and contractual employees who perform the same duties as the regulars.
While the turf war between the judiciary and the executive over the appointment of judges for higher judiciary has intensified, Justice Khehar on the occasion of Constitution Day on November 26 had responded to the tirade from Attorney General Mukul Rohatgi by saying the judiciary was working within its “lakshmanrekha”.

श्री राजेन्द्र मल लोढ़ा ने भारत के ४१ वें मुख्य न्यायधीश की शपथ ग्रहण की

[नई दिल्ली]राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने श्री राजेन्द्र मल लोढ़ा को २७ अप्रैल में भारत के ४१ वें मुख्य न्यायधीश की शपथ ग्रहण कराई |
नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में पद की शपथ दिलाने के बाद राष्ट्र्पति ने श्री लोढ़ा को बधाई दी |श्री लोढ़ा ने जस्टिस सदाशिवम का स्थान लिया है |यह नियुक्ति मात्र पांच माह के लिए है| कोयला घोटाले का केस सुनने वाले श्री लोढ़ा के शपथ ग्रहण समारोह में प्रधान मंत्री+उपराष्ट्रपति तो उपस्थित थे लेकिन विपक्ष का कोई नेता नहीं आया |
कानून एवं न्याय मंत्रालय द्वारा जारी माननीय न्यायमूर्ति श्री राजेन्द्र मल लोढ़ा, का जीवन-वृत्त निम्न है
जन्म 28 सितम्बर, 1949 जोधपुर में।
पिता न्यायमूर्ति श्री एसके मल लोढ़ा, राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश।
फरवरी 1973 को राजस्थान बार काउंसिल में पंजीकृत।
राजस्थान हाईकोर्ट में वकालत की। संवैधानिक, दीवानी, कंपनी, फौजदारी, टैक्स, श्रम इत्यादि क्षेत्रों में वकालत का अनुभव।
31 जनवरी, 1994 को राजस्थान हाइकोर्ट में स्थायी न्यायाधीश के रूप में प्रोन्नत।
बॉम्बे हाइकोर्ट में स्थानांतरण। वहां 16 फरवरी, 1994 को कार्यभार संभाला।
बॉम्बे हाइकोर्ट में न्यायाधीश के रूप में कानून के सभी क्षेत्रों में 13 वर्ष कार्य किया।
बौद्धिक संपदा, लैंगिक भेद-भाव, पर्यावरण, परमाणु ऊर्जा, न्यायालय प्रबंधन, वाणिज्यिक अदालतों, पंचाट और मध्यस्थता आदि विषयों पर भारत और विदेशों में महत्वपूर्ण राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में हिस्सा लिया।
राजस्थान हाइकोर्ट में दोबारा स्थानांतरित, जहां 02 फरवरी, 2007 को कार्यभार संभाला। राजस्थान हाइकोर्ट में प्रशासनिक न्यायाधीश रहे।
राजस्थान राज्य न्यायिक अकादमी के अध्यक्ष रहे।
13 मई, 2008 को पटना हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।
17 दिसम्बर, 2008 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर प्रोन्नत।
राष्ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष।
जोधपुर राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की आम परिषद के सदस्य।
भोपाल राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी की प्रशासनिक परिषद के सदस्य।
उच्चतम न्यायालय (मध्यम आय समूह) विधि सहायता समाज के अध्यक्ष।
राष्ट्रीय न्यायालय प्रबंधन प्रणाली की सलाहकार समिति के अध्यक्ष।