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अडवाणी ने”ब्लॉग”में साम्यवादी षड्यंत्रों पर चोट और ईश्वरीय शक्ति के अस्तित्व के प्रति आशावादी दृष्टिकोण की सराहना की

भाजपा के वयोवृद्ध नेता और ब्लॉगर लाल कृषण अडवाणी ने पचास वर्ष पूर्व लिखी गई एक पुस्तक के माध्यम से साम्यवाद पर चोट करते हुए ईश्वरीय शक्ति के अस्तित्व के प्रति आशावादी दृष्टिकोण की सराहना की|
अपने नए ब्लॉग के टेलपीस (पश्च्य लेख) में श्री अडवाणी ने चेम्बर्स की आत्मकथा का उल्लेख करते हुए इसे आशा की पुस्तक बताया है
५० वर्ष पुरानी इस पुस्तक की नई प्रस्तावना पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अडवाणी ने कहा” पचासवीं वर्षगांठ संस्करण में राबर्ट डी नोवाक ने एक नईं प्रस्तावना लिखी है कि चेम्बर्स वास्तव में अपने समूचे जीवन में निराशावादी रहे। राबर्ट डी0नोवाक रीडर्स डाइजेस्ट के सहायक सम्पादक हैं। नोवाक लिखते हैं:
वह विधाता ही था जिसने अंतत: चेम्बर्स को हिस केस में इतने निजी दाम पर ‘जीतने‘ दिया। उसे निडर थामस मरफी के फेडरल थामस मरफी के फेडरल प्रॉसीक्यूटर का चयन होने में ईश्वर का हाथ दिखा और वह भी तब जब ट्रूमैन प्रशासन का अधिभावी रवैया, राष्ट्रपति से लेकर नीचे तक अपमान और उपहास से भरा था। यदि तैंतीस वर्षीय कांग्रेस सदस्य केलिफोर्निया से रिचर्ड एम. निक्सन यदि नहीं होते जिसने चेम्बर्स केस को आगे बढ़ाया, तो यह हिस के झूठों और छल के तले दब गया होता। वस्तुत: अपने देश के लिए अपना जीवन त्यागने जैसी मजबूती और शक्ति जो चेम्बर्स में थी, को ईश्वरीय विधान कहा जा सकता है।
लेकिन वह दुनिया के संघर्ष के बारे में इतने निराशावादी क्यों थे? दि स्कूल फॉर डिकटेट्रस में इगना जिया साइलोन की भांति, चेम्बर्स एक ऐसे नागरिक की भूमिका को नहीं धारण कर पाए जो बीसवीं सदी के देश में आधुनिक पुलिस और सैन्य शक्ति पर पार पा सके। यह संशयवाद 1953 में पूर्वी जर्मनी, 1956 में हंगरी और 1968 में चेकोस्लोवाकिया में कम्युनिस्ट शासन के परकोटे एक आंधी में गिरने लगे जो अंतत: क्रेमलिन तक पहुंचा।विटटेकर चेम्बर्स की प्रसिध्द पुस्तक ‘विट्नस‘ विटटेकर चेम्बर्स की नरक और वापसी की खौफनाक यात्रा का लेखा जोखा है – जासूसी, देशद्रोह और आतंक के माध्यम से अंतत: विश्वास की एक कहानी है।
लालकृष्ण आडवाणी के ब्लॉग से