Ad

Tag: Encroachment in Aravali Forests

1947 से शुरू हुए अवैद्ध कब्जे रोके जाते तो शायद अरावली कांड नही होता

झल्लीगल्लां
पर्यावरणविद
अरावली में अवैद्ध निर्माणओए झल्लेया! ये क्या हो रहा है?ओए ये अतिक्रमणकारियों ने मुल्क के पर्यावरण को पलीता लगाने की ठान ली है।हुकूमतें भी इन्हें रोकने में कोई रुचि नही दिखा रही।अब देख राजधानी से सटे फरीदाबाद के अरावली के जंगलों को काट करके अवैद्ध निर्माणों को समय रहते रोका नही गया जिसके फलस्वरूप अब 10000 अवैद्ध घर बस चुके हैं।सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के पालन में भी फरीदाबाद निगम +हरियाणा सरकार का ढीला ढाला रवैय्या दिख रहा है।अवैद्ध खनन से त्रस्त इस वन छेत्र में अवैद्ध घरों के निर्माण में बैंक भी कर्ज देने में उदारता का परिचय देते रहते है।ओए ऐसे में कैसे मिलेगी हमे ऑक्सीजन +बचेगा हसाडा पर्यावरण और ओज़ोन लेयर ???
झल्ला
झल्लाभापा जी!ये अवैद्ध कब्जे तो 1947 से ही शुरू हो गए थे।जो बेचारे मुस्लिम भाई पाकिस्तान गए उनकी प्रॉपर्टी पर नाजायज कब्जे हुए फिर जो अभागे पाकिस्तान से हिन्दू आये उनके नाम पर लूट मचाई गई।इस अवैद्ध कब्जे के व्यवसाय को समाप्त करने के लिए 1947 से शुरुआत हो तो शायद यह काला गोरखधंदा बन्द हो सकेगा