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यूंपी के 18 हजार जनसूचना अधिकारियों के प्रशिक्षण पर खर्च होंगे ६५ लाख रुपये

[लखनउ,यूं पी] यूंपी के 18 हजार जनसूचना अधिकारियों के प्रशिक्षण पर खर्च होंगे ६५ लाख रुपये
उत्तर प्रदेश सूचना आयोग ने सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए जन सूचना अधिकारियों को प्रशिक्षित करने का फैसला किया है।
प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी ने आज बताया कि आयोग के समक्ष आने वाली बहुत सी शिकायतें इसलिए हैं कि सूचना अधिकारियों को अधिनियम के बारे में समुचित जानकारी नहीं है।
श्री उस्मानी के अनुसार आयोग के सामने इस समय लगभग 55 हजार मामले लम्बित है जिनमें से बहुत से मामले नियमों की जानकारी के अभाव के कारण आये हैं ।
उस्मानी ने बताया कि जन सूचना अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए केन्द्र सरकार से 52 . 50लाख रूपये स्वीकृत हो चुके है और इसमें प्रदेश सरकार ने भी 13 . 50 लाख रूपये का योगदान दिया है।
मुख्य सूचना आयुक्त ने बताया कि प्रदेश में फिलहाल लगभग 18 हजार सूचना अधिकारी है

मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी को कानूनी दायरे में रखे जाने की मांग उठी

[अलीगढ,यूं पी]नवनियुक्त मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी को कानूनी दायरे में रखे जाने की मांग उठी |
आरटीआई एक्टिविस्ट ग्रुप ट्रैप ने प्रदेश के राज्यपाल को लिखे पत्र में यह मांग की है |ट्रैप के संरक्षक बिमल कुमार खेमानी और अध्यक्ष ई. विक्रम सिंह द्वारा प्रेषित इस पत्र में कहा गया है कि :
१] नवनियुक्त मुख्य सूचना आयुक्त उत्तर प्रदेश , श्री जावेद उस्मानी , ने विभिन्न शहरों के ८ आर टी आई आवेदकों पर जांच के आदेश दिए है I
२]सूचना अधिकार कानून के अंतर्गत सभी सूचना आयुक्तों का दायित्व इस कानून के अंतर्गत आवेदकों द्वारा दायर की गई अपील एवम शिकायत की सुनवाई करते हुए जन सूचना अधिकारी पर आवश्यक कार्यवाही करते हुए आवेदक [पीड़ित]को सूचना दिलाना है I
३] केंद्रीय सूचना आयुक्त हो या राज्य के सूचना आयुक्त सभी का दायरा सूचना अधिकार कानून के अंतर्गत है तथा उन्हें उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशो के अनुसार सभी तरह के दीवानी +फौजदारी या अन्य सभी प्रचलित कानून के अंतर्गत न्याय करने का कोई भी अधिकार इस कानून में कही भी नहीं दिया गया I
४] जावेद उस्मानी , का ऐसा मनमाना कृत्य सूचना अधिकार कानून के प्रावधानों की परिधि से बाहर जाकर अपने पूर्वाग्रहों से ग्रसित ही नहीं बल्कि उक्त कानून का उल्लंघन करने के साथ साथ , देश में प्रचलित न्याय प्रणाली का अतिक्रमण एवम संविधान की मूल भावनाओ के विपरीत भी है I
५]जो मामले श्री उस्मानी ने ब्लेक मेल करना बताया है उसे सम्बंधित अधिकारीगण देश में प्रचलित कानून के अनुसार कार्यवाही करने में सक्षम है किन्तु सूचना कानून या मुख्य सूचना आयुक्त इसपर किसी भी तरह की कार्यवाही के लिए न तो अधिकृत है न ही सक्षम I

उ प्र में सूचना माँगने वालों को हतोत्साहित किया जा रहा है:सूचना आयोग के विकेन्द्रीयकरण की मांग

[अलीगढ]उत्तर प्रदेश में सूचना आयोग द्वारा आवेदकों को हतोत्साहित किया जा रहा है:प्रणाली में सुधारों की मांग
मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी को लिखे एक पत्र में प्रदेश के सूचना आयोग के कार्य प्रणाली में खामियों को इंगित करते हुए सुधारों की मांग की गई है |इसके लिए आर टी आई एक्टिविस्ट ग्रुप ट्रैप ने निम्न सुझाव भी भेजे हैं |
]सूचना अधिकार कानून में प्रदत्त अधिकारों के अनुसार सभी राज्य सूचना आयुक्तों का दायित्व है की वो आवेदनकर्ता को कानून की परिधि में सूचना प्रदान करवाए एवं इस हेतु उनको धारा १८(३) के अंतर्गत सिविल न्यायालयों के भी अधिकार प्रदान किये गए है जिसके तहत वो किसी भी सरकारी अधिकारी को समस्त दस्तावेजो सहित तलब कर सकता , अगर कोई हाजिर नहीं होता है तो उसपर जमानती या गैर जमानती वारंट भी जारी कर सकता है I इस कानून में स्पष्ट है कि आवेदक को ३० दिनों के अंदर सूचना प्रदान करनी चाहिए एवम धारा २०(१) में भी स्पष्ट कहा गया है कि “दो सौ पचास रुपये से लेकर पच्चीस हजार रुपये से अधिरोपित की जा सकती है संस्था के सरंक्षक बिमल कुमार खेमानी और अध्यक्ष ई.विक्रम सिंह ,ने आरोप लगाया है कि राज्य सूचना आयोग के माननीय आयुक्त जन सूचना अधिकारिओ के पक्ष में तारीख पे तारीख देते रहते है , नतीजन आवेदक को कम से कम ८ से १० बार लखनऊ आने को बाध्य होना पड़ता है , और उसपर बड़ी आर्थिक मार पड़ती है|यह हतोत्साहित करने का भी प्रयास माना जा रहा है
उत्तरप्रदेश एक बहुत बड़ा राज्य है एवम देश की १/६ जनसंख्या इस राज्य में ही है , अतः अपीलकर्ता एवम सरकारी खर्चो का ध्यान रखते हुवे इसकी बेंच राज्य के अलग अलग हिस्सों में बनाई जानी चाहिए एवम हमारा सुझाव एक बेंच पूर्वी क्षेत्र एवम एक बेंच पश्चिमी क्षेत्र में कम से कम होनी ही चाहिए , इससे राज्य सरकार को भी बहुत बड़ी समय और धन की बचत होगी , इस हेतु आप राज्य सरकार से वार्तालाप कर यथेष्ठ कार्यवाही कर सकते है | जब तक सरकार की तरफ से कार्यवाही हो तब तक सूचना आयुक्तों द्वारा जिलो में कैम्प लगाकर सुनवाई हो सकती है
यह भी आरोप लगाय गया है कि प्रदेश में सूचना आयोग द्वारा किये गए जुर्माने का वृहत भाग वसूल ही नहीं किया जा रहा है एवम जुर्माने को माफ़ भी किया जा रहा है