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रुपये के निरंतर अवमूल्यन के लिए यूं पी ऐ सरकार के कुप्रबंध और अमेरिकी फ़ेडरल रिजर्व जिम्मेदार है:भाजपा

भाजपा ने भारतीय रुपये के निरंतर अवमूल्यन के लिए यूं पी ऐ की सत्ता रुड सरकार के कुप्रबंध और भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहराया है|राज्य सभा में विपक्ष के उपनेता और वरिष्ठ वकील रविशंकर प्रसाद द्वारा जारी प्रेस वक्तव्य में कहा गया है कि एक अमेरिकी डॉलर अब ६०.१५ रुपये पर मिल रहा है|मई से जुलाई के बीच डॉलर के मुकाबिले ७.१५ रुपयों की गिरावट दर्ज की गई है यह सरकार के मजबूत अर्थ व्यवस्था के तमाम दावों को गलत साबित करता है|
उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले दस वर्षों के सबसे निचले स्तर पर है|विकास दर ५% पर आ चुकी है|भारतीय अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश से चलाने के लिए यूं पी ऐ की कोशिशें कमजोर साबित हुई है|क्योंकि अगर विदेशी धन तेजी से देश में आता है तो उतनी ही तेजी से लाभ लेकर बाहर जाता भी है|अमेरिकी फ़ेडरल रिजर्व ने भारत को भी दिए जारहे प्रोत्साहन वापिस लेने के आदेश जारी किये हैं जिसके फलस्वरूप रुपया निरंतर लुडकता जा रहा है|
कोई भी अर्थ व्यवस्था जबर्दस्त घरेलू निवेश और बचत पर निर्भर करती है लेकिन दुर्भाग्य वश आज भारतीय निवेशक भी विदेशों में निवेश करने को बाध्य है क्योंकि यहाँ माहौल अनुकूल नहीं है||हर तरफ भ्रष्टाचार+दुविधा+भयानक अनिश्चितता और नीतियाँ तैयार करने में गतिहीनता है|अर्थशास्त्री पी एम् के होते हुए भी अर्थ व्यवस्था अव्यवस्थित हैं |चिंता इस बात की है कि एन डी ऐ द्वारा छोड़ी गई मजबूत अर्थव्यवस्था को यूं पी ऐ ने अपने कुप्रबंध और भ्रष्टाचार से तहस नहस कर दिया है

स्वार्थी और शैतान धन के लिए कफ़न में जेब नही होती ONE’S LAST SHIRT HAS NO POCKET

एन डी ऐ पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार एल के अडवाणी ने अपने ब्लाग में धन लोलुप्त्ता पर चर्चा करते हुए अधिक धन को सर्वाधिक स्वार्थी और खराब किस्म का शैतान बताया है वर्तमान क्रिकेट में व्याप्त भ्रष्टाचार की जड़ में पैसा ही मूल कारण बताते हुए अनेकों रोचक उदहारण भी दिए हैं प्रस्तुत है सीधे एल के अडवाणी के ब्लाग से :
मैं नियमित रुप से स्कूल जाने वाला विद्यार्थी रहा हूं जिसने शायद ही कभी-कभार छुट्टी ली होगी। लेकिन मुझे याद है कि रणजी ट्राफी क्रिकेट मैच देखने के लिए एक बार मैंने स्कूल से छुट्टी मारी और जहां तक मैं स्मरण कर पा रहा हूं कि उसमें या तो विजय हजारे अथवा वीनू मांकड़ खेल रहे थे।
तब से मैं क्रिकेट का शौकीन हूं। उन दिनों टेलीविजन नहीं था; अत: क्रिकेट प्रेमी कहीं भी खेले जा रहे महत्वपूर्ण मैचों का आनन्द आल इण्डिया रेडियो पर कमेंटरी सुनकर उठाया करते थे। मुझे स्मरण आता है कि कुछ वर्ष पूर्व बीबीसी ने मेरा एक इंटरव्यू किया था जिसमें मेरे गैर-राजनीतिक रूचियां जैसे फिल्में, पुस्तकें और क्रिकेट के बारे में पूछा गया था, इस दौरान मैंने उस युग के उत्कृष्ट कमेंटेटर एएफएस तल्यारखान की कमेंटरी की नकल करने का प्रयास किया था। इसलिए इन दिनों क्रिकेटरों को मुखपृष्ठ की सुर्खियां बनती देख मुझे गुस्सा आता है क्योंकि यह सुर्खियां उनके द्वारा कोई रिकार्ड तोड़ने, या बल्लेबाजी अथवा गेंदबाजी में कीर्तिमान बनाने के चलते नहीं अपितु मैच फिक्सिंग, या स्पॉट-फिक्सिंग से दौलत बटोरने तथा इसी प्रक्रिया में सट्टेबाजों और जुआरियों के और अमीर बनने के कारण बन रही हैं!
लाओ त्जु ईसा पूर्व छठी शताब्दी के एक महान चीनी दार्शनिक थे। उनकी सभी सीखें इस पर जोर देती हैं कि ठाठदार इच्छाओं से बढ़कर कोई बड़ी विपत्ति नहीं है। ‘वे ऑफ लाओ त्जू‘ शीर्षक वाली पुस्तक में उनको उदृत किया गया है: ”लालच से बढ़ी कोई विपदा नहीं है।”
हालैण्ड के एक दार्शनिक वेडेंडिक्ट स्पिनोझा ने धनलोलुपता और लिप्सा को न केवल पाप अपितु उसे ‘पागलपन‘ ठहराया है! मैं चाहता हूं कि प्रत्येक मनुष्य को यह अहसास रहना चाहिए कि अंतिम समय में कोई कुछ अपने साथ नहीं ले जाता।
इण्डियन एक्सप्रेस में शेखर गुप्ता के ‘वॉक दि टॉक‘ साक्षात्कार सदैव पाठकों को काफी समृध्द सामग्री उपलब्ध कराते हैं। इस महीने की शुरुआत में उन्होंने कभी भारत की क्रिकेट टीम के विकेट कीपर रहे फारुख इंजीनियर से एक सजीव साक्षात्कार किया है।
इस पूर्व विकेट कीपर से किया गया साक्षात्कार पूर्ण पृष्ठ पर प्रकाशित हुआ है, जिसका बैनर शीर्षक एक पूर्व तेज गेंदबाज का यह वाक्य है: ‘यदि आप तेज गेंदबाजी से डरते हो, तो बैंकिंग जैसे अन्य व्यवसाय में जाओ।‘
आज की भारतीय क्रिकेट में, वीरेन्द्र सहवाग की छवि शुरुआती तेज रन लेने वालों की है; उन दिनों में इंजीनियर एकमात्र ऐसे बल्लेबाज थे जिन्होंने 46 गेंदों में एक सेंचुरी बनाई थी! समूचे साक्षात्कार में पूर्व और वर्तमान युग के क्रिकेट मैचों की तुलना करते हुए इसका भी उल्लेख हुआ कि आज कल कितने बेहतरीन बल्ले बनाए जाते हैं जबकि फारुख के समय में ”हमारा तो ब्रुक बांड चाय का डब्बा था; कोई मिडिल था ही नहीं; आपको ही इसे तेल लगाना पड़ता था और यही सब वो जमाना था!”
निस्संदेह सर्वाधिक बड़ी बात तुलनात्मक रुप से यह उभर कर सामने आती है कि उन वर्षों में कभी किसी टेस्ट क्रिकेट खिलाड़ी पर ऐसे सवाल नहीं उठे कि उसने अपनी प्रतिभा का दुरूपयोग कर पैसा कमाया। वास्तव में, फारुख इंजीनियर का टीवी दर्शकों से परिचय कराते समय शेखर गुप्ता ने बताया: ”क्या आप जानते हैं कि एम.एस. धोनी से काफी पहले एक ऐसा भारतीय विकेट कीपर था जिसके बालों का स्टाइल और जिसके जोरदार तरीके पूरे भारत को दीवाना बना देते थे?”
इंजीनियर के बालों के स्टाइल का संदर्भ देते हुए शेखर गुप्ता ने कहा: ”आप अपने स्टाइल से प्रसिध्द हो गए थे। आप एक बड़े ब्रिलक्रीम मॉडल थे।”
आज कल के क्रिकेटरों की कमाई की पृष्ठभूमि में यह ब्रिलक्रीम का संदर्भ समूचे साक्षात्कार में बार-बार आया। शेखर की टिप्पणी थी: ”लोग नहीं जानते होंगे कि ब्रिलक्रीम के बारे में।” फारुख का उत्तर था:
”ब्रिलक्रीम वास्तव में एक चीज थी, यदि ब्रिलक्रीम ने आपको ‘एप्रोच‘ किया तो आपकी जिंदगी बन गई। तब आप अच्छे दिखने वाले सुअर हो या कुछ भी। और ब्रिलकी्रम ने वास्तव में मुझे 500 पौंड से ज्यादा किए बशर्ते मैं बगैर ‘कैप‘ के बल्लेबाजी करुं!”
साक्षात्कार में आगे चलकर वह स्मरण करते हैं कि कैसे आस्ट्रेलियाई और अन्य विदेशी हमें ‘ब्लडी इण्डियन‘ कहकर पुकारा करते थे। फारुख कहते हैं: इससे मुझे नाराजगी होती थी, इससे मैं दु:खी होता था क्योंकि मैं अपने भारतीय होने पर सोत्साहपूर्वक गर्व करता था। और अभी आइपीएल के सब पैसे हैं, वे सब यहां पैसा कमाने आए हैं।” साक्षात्कार के अंतिम पैराग्राफ निम्न हैं:
शेखर गुप्ता: फारुख यदि टीम ने क्रिकेट के खेल में शानदार मोड़ लाया था तो मैं देख सकता हूं कि यह कैसे सम्भव हुआ। यह आप जैसे लोगों की खेल में वह भावना और आनन्द था।
फारूख इंजीनियर% खेल में कोई पैंसे के बगैर।
शेखर गुप्ता: बिलक्रीम से मिले कुछ हजार पौण्ड के सिवाय, और वह भी कपिल देव द्वारा पॉलमोलिव के लिए किए जाने से काफी पहले।
फारुख इंजीनियर: ब्रिलक्रीम अंतराष्ट्रीय स्तर पर थी। पॉलमोलिव स्थानीय। जब आप ब्रिलक्रीम मॉडल हो तो यह ऐसा था कि आप ‘वोग‘ पत्रिका के मुखपृष्ठ पर छप रहे हों जो पूरी दुनिया में जाती है। इसलिए यह ब्रिलक्रीम जैसी थी।
शेखर गुप्ता: अनेक दशकों से भारतीय क्रिकेट में एक महान अंतराष्ट्रीय नागरिक आप जैसा है ही नहीं। अत: एक बार फिर से इस बातचीत की क्या विशेषता है।
फारुख इंजीनियर: पूर्णतया आनन्द।
देश में राजनीतिक भ्रष्टाचार के बारे में सन 2008 के राष्ट्रमंडल खेलों से सुना जा रहा है जिसके चलते हमारे राष्ट्र की काफी बदनामी हुई है। परन्तु वर्तमान के दौर में अलग श्रेणी के नायकों के शामिल होने से यही तथ्य उभरता है कि इस सभी गिरावट की जड़ में पैसा मुख्य है।
किसी ने सही ही कहा है: धन रखना बहुत अच्छा है; यह एक मूल्यवान चाकर हो सकता है। लेकिन धन आपको रखे तो यह ऐसा है जैसे कोई शैतान आपको पाल रहा है, और यह सर्वाधिक स्वार्थी और खराब किस्म का शैतान है!

लालकृष्ण आडवाणी
नई दिल्ली
26 मई, 2013

विश्व के सबसे बड़े लोक तंत्र की संसद आज भी नहीं चली:Parliament Adjourned

विश्व के सबसे बड़े लोक तंत्र भारत की संसद आज भी नहीं चली |आज का दिन भी हंगामे की भेंट चढ़ गया| विपक्ष ने वेल में कोल गेट और रेलगेट को लेकर सम्बंधित मंत्रियों के इस्तीफे की मांग उठाई| चेयर पर आसीन स्पीकर मीरा कुमार +फ्रांसिस्को सर्दिन्हा लोक सभा में और पी जे कुरियन राज्य सभा में शोर शाराबे के सामने असहाय नज़र आये| भक्त चरण दास फ़ूड सिक्यूरिटी बिल पर अपना भाषण नही दे पाए|
भाजपा ने अपनी घोषणा के अनुसार संसद को चलने नहीं दिया| कोल गेट पर कानून मंत्री अश्विनी कुमार और रेलगेट पर रेल मंत्री पवन बंसल के इस्तीफे के बगैर संसद की कार्यवाही में कोई सहयोग देने को तैयार नही हुई| अब एन डी ऐ भ्रष्टाचार के मुद्दे को छोड़ने को तैयार नही है और यूं पी ऐ सत्ता में वापिसी के लिए पास पोर्ट के रूप में फ़ूड सिक्यूरिटी बिल को पास कराना चाह रही है| सत्ता पक्ष को इस महत्पूर्ण बिल के भरोसे देश के ६५% लोगों तक पहुँचने की आशा है|इसीलिए कांग्रेस ने अपने सांसदों को संसद में हाज़िर रहने के लिए व्हिप जारी कर दिया है इसीलिए बुधवार का दिन भारतीय संसद के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है|

स्विटजरलैण्ड को पारदर्शिता और वैश्विक मापदण्डों को अपनाना ही होगा:सीधा एल के अडवाणी के ब्लॉग से

एन डी ऐ के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार लाल कृषण आडवाणी ने अपने ब्लॉग के माध्यम से एक महीने में दोबारा काले धन को देश में लाये जाने के लिए कोई कार्यवाही नहीं किये जाने पर चिंता व्यक्त की है| श्री आडवाणी के अनुसार उनकी पार्टी भाजपा के प्रयासों से संसद में श्वेत पत्र तो केंद्र सरकार ले आई लेकिन उस पर कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं हुई| इसके लिए इस ब्लॉग में उन्होंने खेद व्यक्त किया हैइसके अलावा इस वयोवृद्ध नेता ने अपने फ़िल्मी प्रेम का इजहार भी किया है|जेम्स बांड की फिल्म दि वर्ल्ड इज नॉट इनफ”[१९९९] के माध्यम से उन्होंने स्विस बैंको की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया तो एम्मा थामेसन के लेख के माध्यम से जवाब भी तलाशने का प्रयास किया है| | प्रस्तुत है सीधा एल के अडवाणी के ब्लॉग से
इसी महीने में मैंने एक ब्लॉग लिखा था, जिसका शीर्षक था ”कालेधन पर श्वेत पत्र के बावजूद एक पैसा भी वापस नहीं आया।”
इस ब्लॉग में बताया गया था कि कैसे भाजपा द्वारा कालेधन के विरुध्द चलाए गए ठोस अभियान ने यूपीए सरकार को इस मुद्दे पर श्वेत पत्र प्रस्तुत करने को बाध्य किया। श्वेत पत्र में इसको स्वीकारा गया है कि भारत की ”समावेशी विकास रणनीति की सफलता मुख्य रुप से हमारे समाज से भ्रष्टचार की बुराई के खात्मे और काले धन को जड़ से उखाड़ फेंकने की क्षमता पर निर्भर करती है।”
भाजपा को इसका खेद है कि श्वेत पत्र पर कार्रवाई बिल्कुल नहीं की गई है। भ्रष्टाचार और कालाधन भारत की राजनीति और शासन को, विशेष रुप से पिछले नौ वर्षों से लगातार कमजोर कर रहे हैं।
इस मुद्दे पर भारत के उदासीन रवैये की तुलना में रिपोर्टें आ रही हैं कि कुछ शक्तिशाली पश्चिमी देशों द्वारा स्विस बैंकों के गोपनीय कानूनों के विरुध्द छेड़े गए विश्वव्यापी अभियान से स्विट्जरलैण्ड के बैंकिग सेक्टर में वास्तव में संकट खड़ा हो गया है। अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रायटर ने हाल ही में स्विट्जरलैण्ड में अपनी ब्यूरो चीफ एम्मा थामेसन का एक लेख प्रसारित किया है जिसका शीर्षक है: बैटल फॉर दि स्विस सोल। इस लेख का मूल भाव इन शब्दों में वर्णित किया गया है:
”आज भी, कुछ स्विस नागरिक इस तथ्य पर बहस करना पसन्द करेंगे कि देश की अधिकांश समृध्दि, बैंकरों द्वारा विदेशी कर वंचकों की सहायता करने से आई है।”
इस लेख की शुरुआत 1999 में जेम्स बांड की फिल्म ”दि वर्ल्ड इज नॉट इनफ” से होती है, जिसमें बांड पूछता है” यदि आप स्विस बैंकर पर भरोसा नहीं करसकते तो किस दुनिया में हो?”
इस लेख की सुविज्ञ लेखक एम्मा जेम्स बांड के इस प्रश्न का उत्तर यूं देती हैं:
”यह इस प्रकार है: अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों के दबाव में स्विस बैंक अपनी गोपनीयता छोड़ रहे हैं, कुछ केसों में अपने खाता धारकों के नाम विदेशी कर प्राधिकरणों को दे रहे हैं। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation for Economic Cooperation and Development-OECD½ द्वारा काली सूची में डाले जाने से बचने के लिए स्विस सरकार टैक्स धोखाधड़ी करने वालों की तलाश करने वाले विदेशी प्राधिकरणों के साथ सूचनाएं साझा करने पर सहमत हो गई है।”
एम्मा अपने लेख में लिखती हैं:
”स्विस बैंक काफी समय से उस अलिखित संहिता का पालन करते हैं जिसका डॉक्टर या पादरी करते हैं। बैंकर्स सार्वजनिक रुप से अपने ग्राहक को नहीं पहचानते, इस भय से कि इससे उनके खाताधारक होने का राज खुल जाएगा: अक्सर वे एक नाम का बिजनेस कार्ड रखते हैं बजाय बैंक या सम्पर्क विवरण के; और कम से कम 1990 के दशक तक वे कभी भी विदेशों में प्रचारित नहीं करते थे।…..”
दक्षिणपंथी स्विस पीपुल्स पार्टी बैंकिंग गोपनीय कानूनों के शिथिल होने को एक प्रकार का आत्मसमर्पण मानती है। पार्टी का मानना है कि यह आत्मसमर्पण ”न केवल ग्राहकों के साथ अपितु मूलभूत स्विस मूल्यों के साथ भी विश्वासघात है।”
एक बैंकर और स्विस पीपुल्स पार्टी के राजनीतिज्ञ थामस मट्टेर (Thomas Matter) इसे और साफ तीखे रूप से लिखते हैं : ”स्विस लोग स्वतंत्रता प्रेमी हैं; देश सदैव नागरिकों के लिए रहा है न कि इसका उल्टा।”
यद्यपि, वाशिंगटन, पेरिस और बर्लिन के भारी दवाब के चलते सन् 2009 में, देश का सबसे बड़ा बैंक यूबीएस चार हजार से अधिक अमेरिकी ग्राहकों के नाम अमेरिका को देने पर सहमत हुआ, 780 मिलियन अमेरिकी डॉलर का दण्ड इसलिए दिया कि उसने अमेरिकीयों की टैक्स से बचने में सहायता की थी। दो अन्य प्रमुख बैंकों -क्रेडिट सुइसे (Credit Suisse) और जूलियस बेअर (Julius Baer) ने भी अमेरिका में व्यवसाय में लगे अपने कर्मचारियों सम्बन्धी सूचनाएं वाशिंगटन को सौंपी जबकि क्रेडिट सुइसे ने भारी जुर्माने के लिए अपने खातों में प्रावधान किया।
हालांकि ज्यूरिख और जेनेवा, स्विटजरलैण्ड के मुख्य आर्थिक केन्द्र हैं, देश के बैंकिंग उद्योग की जड़ें संक्ट गालन (St. Gallen) शहर में हैं। हाल ही तक संक्ट गालन, स्विटजरलैण्ड के प्राचीनतम निजी बैंक बेगेलिन एण्ड कम्पनी (Wegelin & Co½ का शहर था। सन् 2012 में अमेरिका के जस्टिस विभाग ने इसकी आलोचना करते हुए कहा कि इसके विदेशी खातों में अमीर अमेरिकीयों द्वारा टैक्स से बचाए गए कम से कम 1.2 बिलियन डालर छुपे हैं। इस वर्ष जनवरी में बैंक को दोषी ठहराया गया। बेगेलिन के अधिकारियों जिन्होंने पहले ही अपने सभी गैर-अमेरिकी व्यवसाय को एक दूसरे बैंक रेफेइसियन (Raifeissen) को बेच दिए थे, ने घोषित किया है कि जो कुछ उनके बैंक में बचा है, वे उसे भी समेट रहे हैं।
इस समूची स्विस बहस में ‘दोषी‘ – एक महत्वपूर्ण निर्णायक विन्दु है क्योंकि बगैर कुछ कहे, बेगेलिन के अधिकारियों ने अपने साथी और बैंकों को साफ-साफ संदेश दे दिया है। एक प्रमुख रूढ़िवादी राजनीतिज्ञ क्रिस्टिफ डारबेले (Christoph Darbellay) ने सार्वजनिक रूप से बेगेलिन अधिकारियों को ‘देशद्रोही‘ कहा है। यू.बी.एस. के चीफ एग्जिक्यूटिव सेरगिओ इरमोट्टी (Sergio Ermotti) ने कहा: जैसाकि एक दशक या उससे पहले तक जिस बैंक गोपनीयता को हम जानते थे, वह अब समाप्त हो गई है। संक्ट गालन बैंकर जिन्होंने बेगेलिन के गैर-अमेरिकी व्यवसाय को खरीदा है, कहते हैं : ”हम वास्तव में संक्रमणकालीन प्रक्रिया में हैं।”
रेफेसियन के मालिक पेइरिन विन्सेंज (Pierin Vincenz) ने रूढ़िवादियों से अलग अपनी बात रखते हुए कहा कि स्विटजरलैण्ड को अंतत: पारदर्शिता और वैश्विक मापदण्डों को अपनाना होगा। अधिकाधिक बैंक और बध्दिजीवीगण इस मत के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। कालेधन के विरूध्द वैश्विक युध्द में यह बड़ा सहायक होगा। यही आशा की जा सकती है कि भारत इन घटनाओं का पूरा-पूरा लाभ उठाएगा।

बिहार को विशेष राज्य का दर्ज़ा ही नितीश को चुनावी वैतरणी पार कराएगा


झल्ले दी झल्ल्लियाँ गल्लां

एक दुखी भाजपाई

ओये झल्लेया ये जे डी यू वालों पर कौन सी साडे सत्ती आ गई है |देखो ना बिहार में हमारे सहयोग से अच्छी खासी सरकार चला रहे हैं और अब हसाडी भाजपा को घरेड में डालने के लिए उलटी सीधी शर्ते रख रहे हैं| पहले कहा जा रहा था कि नरेन्द्र मोदी पी एम् के रूप में स्वीकार्य नहीं है और अब पी एम् डिक्लेयर करने के लिए आठ महीने का नोटिस दे दिया गया है|अब पी एम् भी इन्हें टोपी पहनने वाला साफ धर्म निरपेक्ष छवि का होना चाहिए| इन्होने तो हमारे सहयोग से सत्ता सुख भोगते हुए भी हसाडे मुख्य मंत्रियों के पीठ पर छुरा घोंप दिया है|अपने विकास की तो कोई बात कही नहीं उलटे नरेन्द्र मोदी के विकास को लेकर स्यापा डाला जा रहा है| इनके वड्डे नेता शरद यादव को अब सिद्धांतों की राजनीती याद आ रहे है और इनके मुख्य मंत्री बाबू नितीश कुमार ने एक बार भी केंद्र सरकार की नीतियों कि आलोचना तक नहीं की| ओये ऐसे चलता है कोई गठ बंधन भला ?

बिहार को विशेष राज्य का दर्ज़ा ही नितीश को चुनावी वैतरणी पार कराएगा

बिहार को विशेष राज्य का दर्ज़ा ही नितीश को चुनावी वैतरणी पार कराएगा

झल्ला

ओ मेरे भोले सेठ जी बिहार को विशेष राज्य का दर्ज़ा ही नितीश को चुनावी वैतरणी पार कराएगा |इसके लिए यूं पी ऐ को खुश करना जरुरी है और इसके लिए नरेन्द्र मोदी की टांग खींचने का मन्त्र जांचा परखा है |पीएम प्रत्याशी घोषित करने की तो आपकी पार्टी में परंपरा रही है। आपने बाबू जगजीवन राम के नाम का एलान किया था ये बात अलग है कि आप कि पार्टी का सुपडा साफ़ हो गया था| आपने लाल कृषण आडवाणी को पी एम् इन वेटिंग बनाया तो सत्ता तक पहुंचते पहुंचते रह गए| अब जबकि नमो मंत्र कामयाब होता दिख रहा है तो इसे भी गद्धिगेड में डाला जा रहा है|झल्ले विचारानुसार तो नितीश बाबू अपने भाषण में अपनी सरकार की उपलब्द्धि का बखान नहीं कर पाए शायद इसीलिए अब कांग्रेस को खुश करने के लिए नरेन्द्र मोदी की राह में रोड़े डाल रहे हैं |हो सकता है की उनको यह लग रहा हो कि यदि केंद्र सरकार खुश हो गई तो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल सकेगा और अगर यह हो गया तो इसके सहारे २० सांसदों वाली इनकी जे डी यू द्वारा २०१४ की चुनावी वैतरणी को आसानी से पार कर लिया जाएगा|

श्याम धन पर केंद्र सरकार के श्वेत पत्र पर अपने ब्लॉग में लाल पीले हुए एल के अडवाणी

श्याम धन पर केंद्र सरकार ने संसद में बेशक श्वेत पत्र रख कर अपने ऊपर लगे काले दागों को धोने का प्रयास किया हो लेकिन इस संसदीय घटना के एक साल बीत जाने पर भी अवैध ढंग से विदेशों में जमाबिना किसी रंग के धन में से एक पैसा भी वापस देश में नही लाया जा सका है |इस निराशाजनक स्थिति पर लाल पीले होते हुए लाल कृषण आडवाणी ने अपने ब्लाग में राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग करते हुए एक बार फिर केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने का प्रयास किया है|
प्रस्तुत है एन डी ऐ के पी एम् इन वेटिंग + वरिष्ठ पत्रकार एल के अडवाणी के ब्लॉग से
मई, 2012 में तत्कालीन वित्त मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने काले धन पर एक श्वेत पत्र (White Paper) संसद में प्रस्तुत किया। इस श्वेत पत्र में यूपीए सरकार ने वायदा किया कि देश में काले धन के प्रचलन को नियंत्रित किया जाएगा, विदेशों के टैक्स हेवन्स में इसके अवैध हस्तांतरण को रोकने के साथ-साथ हमारी इस अवैध धनराशि को भारत वापस लाने के प्रभावी उपाय सुनिश्चित किए जाएंगे।
मई, 2013 इस महत्वपूर्ण दस्तावेज के प्रस्तुत करने की पहली वर्षगांठ है। अत: सर्वप्रथम यह जानना समीचीन होगा कि इस श्वेत पत्र को सरकार को क्यों लाना पड़ा और आज तक इस पर कार्रवाई के रूप में क्या कदम उठाए गए हैं।
पांच वर्ष पहले से, भाजपा लगातार काले धन के मुद्दे को मुखरित करती आ रही है। जब सन् 2008 में पहली बार इसे उठाया गया तब कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ताओं ने इसकी खिल्ली उड़ाई थी। हालांकि 6 अप्रैल, 2008 को मैंने प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह को सम्बोधित अपने पत्र मे मैंनें लिखा था:
हाल ही में, जर्मन सरकार ने अपने देश में टैक्स चोरी करने वालों के विरुध्द एक व्यापक जांच अभियान शुरु किया है, और इस प्रक्रिया में जर्मन गुप्तचर एजेंसियों को बताते हैं कि लीशेंस्टाइन के एलटीजी बैंक से उसके 1400 से अधिक ग्राहकों की गोपनीय जानकारी मिली है। इनमें से 600 जर्मनी के हैं और शेष अन्य देशों से सम्बंधित हैं।
इन रहस्योद्धाटनों से पहले ही डायचे पोस्ट-पूर्व जर्मनी मेल सर्विस-दुनिया में एक बड़ी लॉजिस्टिक कम्पनी-के प्रमुख का त्यागपत्र हो चुका है।
जर्मन वित मंत्रालय ने बताते हैं कि सार्वजनिक रुप से घोषणा की है कि वह किसी भी सरकार को यदि वे चाहती हैं तो बगैर किसी शुल्क के जानकारी उसे देने को तैयार हैं।
फिनलैण्ड, नार्वे और स्वीडन जैसे कुछ यूरोपीय देशों ने यह जानकारी पाने में पहले ही अपनी रुचि दिखाई है।
इन घटनाक्रमों के साथ-साथ, ऐसी भी रिपोर्ट आ रहीं हैं कि स्विटज़रलैण्ड पर यह दबाव भी बन रहा है कि वह टैक्स से चुरा कर उनके बैंको में जमा कालेधन को एक अपराध माना जाए और वह ऐसे धन का पता लगाने के लिए अन्य देशों से सहयोग करने हेतु अपने आंतरिक नियमों को बदले।
मैं मानता हूं कि भारत सरकार अपनी उपयुक्त एजेंसियों के माध्यम से जर्मन सरकार से अनुरोध करे वह एलटीजी के ग्राहकों का डाटा हमें बताए। हमारी सरकार को यूरोपीय सरकारों द्वारा स्विट्ज़रलैण्ड तथा अन्य टैक्स हेवन्स विशेषकर अन्य देशों से सम्बंधित जमा राशि की बैंकिग पध्दति में और ज्यादा पारदर्शिता लाने के संभावित आगामी कदमों को समर्थन देना चाहिए।
यदि हम जर्मनी से एलटीजी ग्रुप के ग्राहकों का सम्बंधित डाटा मांगते हैं तो यह हमारी उस स्थिति को पुन: मजबूत करेगा कि हम उन राष्ट्रों के समुदाय के जिम्मेदार सदस्य हैं जो वित्तीय प्रामाणिकता और पारदर्शी नियमों के पक्षधर हैं। यह भविष्य में, इन टैक्स हेवन्स की कार्यप्रणाली से कुछ अवांछनीय पहलुओं को समाप्त कर वैश्विक वित्तिय प्रणाली को स्वच्छ बनाने में हमारी सहभागिता का मार्ग प्रशस्त करेगा।
सम्भवत: प्रधानमंत्री के निर्देश पर वित्त मंत्री श्री चिदम्बरम ने मई, 2008 में इसके उत्तर में लिखा कि उनकी सरकार इस मुद्दे पर जर्मनी के टैक्स ऑफिस से सम्पर्क कर प्रयास कर रही है।
मार्च, 2010 में मैंने इस विषय पर लिखे अपने ब्लॉग में लीशेंस्टाइन के एलटीजी बैंक प्रकरण की याद दिलाते हुए सरकार से आग्रह किया था कि वह औपचारिक रुप से काले धन पर एक विस्तृत श्वेत पत्र प्रकाशित करे।
इस बीच भाजपा ने इस विषय के अध्ययन हेतु एक चार सदस्यीय टास्क फोर्स (कार्यदल) का गठन किया। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त सामग्री का अध्ययन करने के पश्चात् यह टास्क फोर्स इस निष्कर्ष पर पहुंची कि विदेशों में अवैध ढंग से जमा भारतीयों का धन अनुमानतया 25 लाख करोड़ से 70 लाख करोड़ रूपये के बीच होगा।
जब तक पश्चिमी प्रभुत्व वाली विश्व अर्थव्यवस्था अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों के लिए ठीक ठाक चल रही थी जब तक समूचे विश्व को लगता था कि इन टैक्स हेवन्स के बैंकिग गोपनीयता सम्बन्धी प्रावधानों से कोई दिक्कत नहीं है। उस समय ऐसा महसूस किया जाता था कि इन देशों के कानूनों के बारे में कुछ नहीं किया जा सकता। लेकिन विश्व अर्थव्यवस्था के संकट से न केवल राष्ट्रपति ओबामा अपितु ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे अनेक यूरोपीय देशों के रुख में बदलाव आया और उन्होंने एकजुट होकर इन देशों के बैंकिग गोपनीय कानूनों में बदलाव के लिए दृढ़ प्रयास किए।
सन् 2009 में वाशिंगटन ने यूबीएस जैसे स्विट्जरलैंड के बड़े बैंक को उन 4450 अमेरिकी ग्राहकों के नाम उद्धाटित करने पर बाध्य किया, जिन पर स्विट्ज़रलैंड में सम्पत्ति छिपाने का संदेह था।
सन् 2009 के लोकसभाई चुनावों में भाजपा ने काले धन को चुनावी मुद्दा बनाया। स्वामी रामदेव जैसे संन्यासियों ने अपने प्रवचनों में लगातार इसे प्रचारित किया। फाइनेंसियल टाइम्स में ”इंडियंस कर्स ऑफ ब्लैकमनी” शीर्षक से प्रकाशित लेख के लेखक रेमण्ड बेकर (निदेशक, ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी) ने लिखा है कि: ”भारत ने दिखा दिया है कि यह मुद्दा मतदाताओं को छूता है। अन्य विकासशील लोकतंत्र के राजनीतिज्ञों को इसे ध्यान में रखना समझदारी होगी।”
अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में आर्थिक संकट ने इन देशों को इस तथ्य के प्रति सचेत किया कि भ्रष्टाचार, काला धन इत्यादि न केवल राष्ट्र विशेष की समस्या है अपितु यह दुनिया के लोकतंत्र, कानून के शासन और सुशासन के लिए भी चुनौती है। इसलिए सन् 2004 में संयुक्त राष्ट्र के ड्रग्स और क्राइम कार्यालय (United Nations Office on Drugs and Crime) द्वारा भ्रष्टाचार के विरुध्द एक विस्तृत कन्वेंशन औपचारिक रुप से अंगीकृत किया गया था। 56 पृष्ठीय दस्तावेज में संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्कालीन महासचिव श्री कोफी अन्नान की सशक्त प्रस्तावना थी, जो कहती है:
भ्रष्टाचार एक घातक प्लेग है जिसके समाज पर बहुव्यापी क्षयकारी प्रभाव पड़ते हैं:
इससे लोकतंत्र और कानून का शासन खोखला होता है।
मानवाधिकारों का हनन होता है।
बाजार का विकृतिकरण।
जीवन की गुणवत्ता का क्षय होता है, और
संगठित अपराध, आतंकवाद और मानव सुरक्षा के प्रति खतरे बढ़ते हैं।
भ्रष्टाचार के विरुध्द इस कन्वेंशन के अनुच्छेद 67 के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश दिसम्बर, 2005 तक इसे स्वीकृति देंगे, तत्पश्चात् शीघ्र ही सम्बंधित देश इसे पुष्ट करेंगे और स्वीकृति पत्र संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के पास जमा कराएंगे।
सन् 2010 में यूपीए सरकार ने इस मुद्दे को औपचारिक रुप से ध्यान में लेते हुए उस वर्ष के संसद के बजट सत्र में होने वाले राष्ट्रपति के पारम्परिक अभिभाषण में इसका उल्लेख करते हुए कहा ”भारत कर सम्बंधी सूचना के आदान-प्रदान को सुगम बनाने तथा कर चोरी की सुविधा देने वाले क्षेत्रों के खिलाफ कार्रवाई करने सम्बन्धी वैश्विक प्रयासों में सक्रिय भागीदारी निभा रहा है।”
सन् 2011 के अंतिम महीनों में भाजपा द्वारा आयोजित जन चेतना यात्रा ने तीन मुद्दों पर जोर दिया: महंगाई, भ्रष्टाचार और काला धन। सन् 2008 के कामॅनवेल्थ खेलों, भ्रष्टाचार और मंहगाई मीडिया के साथ-साथ संसद में सभी राजनीतिक चर्चाओं में प्रमुख स्थान पर रहे, परन्तु मैंने पाया कि यात्रा के दौरान जब भी मैं सभाओं को सम्बोधित करता था तो काले धन के मुद्दे पर जनता की प्रतिक्रिया बहुत ज्यादा अनुकूल रहता था।
सन् 2011 की जनचेतना यात्रा मेरी अब तक की यात्राओं की कड़ी में ताजा यात्रा थी। चालीस दिनों तक यह चली। देश के प्रत्येक प्रदेश और सभी संघ शासित प्रदेशों में मुझे जाने का अवसर मिला। आम धारणा है कि 1990 की मेरी पहली यात्रा-सोमनाथ से अयोध्या तक की, जो समस्तीपुर में रुक गई थी-को सर्वाधिक समर्थन मिला। अक्सर यह भी कहा जाता है कि इतना उत्साह इसलिए उमड़ा कि उसका मुद्दा मुख्य रुप से धार्मिक यानी राम मंदिर था। लेकिन मैं यहां उल्लेख करना चाहूंगा कि मेरी दो यात्राएं-1997 की स्वर्ण जयंती रथ यात्रा और 2011 की जन चेतना यात्रा को अभी तक सर्वाधिक समर्थन मिला है। ये दोनों सुशासन और लोगों की आर्थिक भलाई से जुड़ी थीं!
16 मई, 2012 को संसद में कालेधन पर प्रस्तुत श्वेत पत्र के आमुख में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने स्वीकार किया कि 2011 में ”भ्रष्टाचार और कालेधन के मुद्दों पर जनता की आवाज सामने आई।”
अपनी प्रस्तावना में श्री प्रणव मुखर्जी ने यह भी कहा:
”मुझे अत्यन्त प्रसन्नता होती यदि मैं उन तीनों प्रमुख संस्थानों जिन्हें काले धन की मात्रा और आकार पता लगाने के लिए कहा गया है, की रिपोर्टों के निष्कर्षों को भी इस में शामिल कर पाता। ये रिपोटर् इस वर्ष के अंत तक मिलने की उम्मीद है। फिर भी मैंने इस दस्तावेज को इसलिए रखा है कि संसद में इस हेतु आश्वासन दिया गया था।”
प्रणव दा ने इस श्वेत पत्र को इसलिए प्रस्तुत किया कि भाजपा ने इसकी मांग की थी, उन्होंने स्वीकारा:
”इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे जीवन के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में काले धन के प्रस्फुटीकरण का असर शासन के संस्थानों और देश में जननीति के संचालन पर पड़ता है। प्रणाली में शासन का अभाव और भ्रष्टाचार गरीबों को ज्यादा प्रभावित करता है। समावेशी विकास रणनीति की सफलता मुख्य रुप से हमारे समाज से भ्रष्टचार की बुराई के खात्मे और काले धन को जड़ से उखाड़ फेंकने की क्षमता पर निर्भर करती है।”
मुझे दु:ख है कि श्वेत पत्र पर कार्रवाई निराश करने वाली है।
उन तीन प्रमुख संस्थानों ने जिन्हें कालेधन की मात्रा पर रिपोर्ट देनी थी, ने अभी तक अपनी रिपोटर् नहीं सौपी हैं। न केवल अमेरिका, जर्मनी जैसे अधिक शक्तिशाली राष्ट्रों अपितु नाइजीरिया, पेरु और फिलीपीन्स जैसे छोटे देश भी टैक्स हेवन्स से अपनी अवैध लुटी सम्पत्ति को वापस पाने में सफल रहे हैं। दूसरी तरफ, भारत में हमें कुछ रिपोटर् देखने को मिली हैं जिनमें वे नाम हैं जिन पर स्विस बैंकों या ऐसे अन्य टैक्स हेवन्स में खाते रखने का संदेह है। लेकिन यह सुनने को नहीं मिला है कि अवैध ढंग से विदेशों में ले जाए धन में से एक पैसा भी वापस देश में लाया जा सका है।
श्री प्रणव मुखर्जी जो श्वेत पत्र प्रस्तुत करने के समय की तुलना में आज, ज्यादा निर्णायक भूमिका में हैं, से मैं अनुरोध करता हूं कि वे श्वेतपत्र में जनता से किए गए वायदे को सरकार द्वारा अक्षरश: पूरा करवाएं।

लाल कृषण अडवाणी ने खुशवंत सिंह को एक अद्भुत लेखक और उनकी पुस्तक को विचारप्रेरक पुस्तक बताया

एन डी ऐ के पी एम् इन वेटिंग ८५ वर्षीय [८ नवम्बर १९२७] लाल कृषण अडवाणी ने अपने ब्लॉग में 98 नाट आउट खुशवंत सिंह को एक अद्भुत लेखक: और उनकी नवीनतम पुस्तक ‘खुशवंतनामा : दि लेसन्स ऑफ माई लाइफ‘ को विचारप्रेरक पुस्तक बताया है| प्रस्तुत है अडवाणी के ब्लाग से साभार उनके विचार उनके ही शब्दों में :
पिछले महीने मुझे ‘खुशवंतनामा : दि लेसन्स ऑफ माई लाइफ‘ की एक प्रति प्राप्त हुई। 188 पृष्ठों की इस पुस्तक को मैं लगभग एक बार में ही पढ़ गया। पुस्तक पढ़ने के पश्चात् मुझे पहला काम यह लगा कि मैंने अपने कार्यालय से खुशवंत सिंह से सम्पर्क करने को कहा ताकि पेंगइन[Penguin] विंकिंग द्वारा प्रकाशित इस शानदार पुस्तक के लिए मैं उनको बधाई दे सकूं।
खुशवंत सिंह के घर पर फोन उठाने वाले व्यक्ति ने मेरे कार्यालय को सूचित किया कि वे फोन पर नहीं आ सकेंगे। एक संदेश यह दिया गया कि यदि आडवाणी खुशवंत सिंह ही को मिलना चाहते हैं तो शाम को आ सकते हैं। मैंने तुरंत उत्तर दिया कि आज शाम को मेरा अन्यत्र कार्यक्रम है लेकिन अगले दिन में निश्चित ही उनसे मिलने आऊंगा।

 लाल कृषण अडवाणी ने खुशवंत सिंह को एक अद्भुत लेखक और उनकी पुस्तक को विचारप्रेरक पुस्तक बताया

लाल कृषण अडवाणी ने खुशवंत सिंह को एक अद्भुत लेखक और उनकी पुस्तक को विचारप्रेरक पुस्तक बताया


खुशवंत सिंह का जन्म 2 फरवरी, 1915 को हुआ। इसलिए जब फरवरी, 2013 में यह पुस्तक प्राप्त हुई तो मैं जानता था कि उन्होंने अपने जीवन के 98 वर्ष पूरे कर 99वें में प्रवेश किया है!
मैंने किसी और अन्य लेखक को नहीं पढ़ा जो सुबोधगम्यता के साथ-साथ इतना सुन्दर लिख सकता है, और वह भी इस उम्र में। इसलिए इस ब्लॉग के शीर्षक में मैंने न केवल पुस्तक अपितु लेखक की भी प्रशंसा की है।
पुस्तक की शुरुआत में शेक्सपियर की पंक्तियों को उदृत किया गया है:

दिस एवव ऑल, टू थाइन ऑन सेल्फ बी टू्र
एण्ड इट मस्ट फॉलो, एज दि नाइट दि डे,
थाऊ कांस्ट नॉट दैन बी फाल्स टू एनी मैन।
हेमलेट एक्ट-1, सीन III

(भावार्थ: जो व्यक्ति अपने बारे में ईमानदार होगा वही दूसरों के बारे में झूठा नहीं हो सकता।)
मैं यह अवश्य कहना चाहूंगा कि यह पुस्तक मन को हरने वाले प्रमाण का तथ्य है कि खुशवंत सिंह ने अपने बारे में लिखते समय भी उन्होंने असाधारण साफदिली के साथ लिखा है। उनके परिचय के पहले दो पैराग्राफ उदाहरण के लिए यहां प्रस्तुत हैं:
”परम्परागत हिन्दू मान्यता के अनुसार अब मैं जीवन के चौथे और अंतिम चरण संन्यास में हूं। मैं कहीं एकांत में ध्यान लगा रहा होऊंगा, मैंने इस दुनिया की सभी चीजों से लगाव और अनुराग छोड़ दिया होगा। गुरु नानक के अनुसार, नब्बे की आयु में पहुंचने वाला व्यक्ति कमजोरी महसूस करने लगता है, इस कमजोरी के कारणों को नहीं समझ पाता और निढाल सा पड़ा रहता है। अपने जीवन के इस मोड़ पर मैं अभी इनमें से किसी भी अवस्था में नहीं पहुंचा हूं।
अठानवें वर्ष में, मैं अपने को सौभाग्यशाली मानता हूं कि हर शाम को सात बजे मैं अभी भी माल्ट व्हिस्की के एक पैग का आनन्द लेता हूं। मैं स्वादिष्ट खाना चखता हूं, और ताजा गपशप तथा घोटालों के बारे में सुनने को उत्सुक रहता हूं। मुझसे मिलने आने वाले लोगों को मैं कहता हूं कि यदि किसी के बारे में आपके पास अच्छा कहने के लिए नहीं है, तो आओ और मेरे पास बैठो। मेरे आस-पास की दुनिया के बारे में जानने की उत्सुकता मैंने बनाए रखी है; मैं सुंदर महिलाओं के साथ का आनन्द लेता हूं; मैं कविताओं और साहित्य तथा प्रकृति को निहारने का आनंद उठाता हूं।”
प्रस्तावना के अलावा पुस्तक में सोलह अध्याय हैं। एक पूर्व पत्रकार होने के नाते यह तीन विशेष मुझे ज्यादा पसंद आए:
1- दि बिजनेस ऑफ राइटिंग
2- व्हाट इट टेक्स टू बी ए राइटर
3- जर्नलिज्म दैन एण्ड नाऊ
***‘डीलिंग विथ डेथ‘ शीर्षक वाले अध्याय में लेखक लिखता है :
वास्तव में मृत्यु के बारे में, मैं जैन दर्शन में विश्वास करता हूं कि इसका जश्न मनाना चाहिए। सन् 1943 में जब मैं बीसवें वर्ष में था तभी मैंने अपनी स्वयं की श्रध्दांजलि लिखी थी। बाद में यह लघु कहानियों के मेरे संस्करण में ‘पास्चुमस‘ (मरणोपरांत) शीर्षक से प्रकाशित हुई थी। इसमें मैंने कल्पना की कि दि ट्रिब्यून ने अपने मुखपृष्ठ पर एक छोटे चित्र के साथ मेरी मृत्यु का समाचार प्रकाशित किया है। शीर्षक इस तरह पढ़ा जाएगा: ‘सरदार खुशवंत सिंह डेड; और आगे छोटे अक्षरों में प्रकाशित होगा: गत् शाम 6 बजे सरदार खुशवंत सिंह की अचानक मृत्यु की घोषणा करते हुए खेद है। वह अपने पीछे एक युवा विधवा, दो छोटे बच्चे और बड़ी संख्या में मित्रों और प्रशंसकों…. को छोड़ गए हैं। दिवगंत सरदार के निवास पर आने वालों में मुख्य न्यायाधीश के निजि सचिव, अनेक मंत्री और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे।‘
पुस्तक के अंत में एक अध्याय ”ट्वेल्व टिप्स टू लिव लॉन्ग एण्ड बी हैप्पी” (लंबे और प्रसन्न जीवन के बारह टिप्स) शीर्षक से इसमें है। मेरी सुपुत्री प्रतिभा ने मुझे कहा: ”इस पुस्तक को पढ़े बगैर ऐसा लगता है कि खुशवंत सिंह द्वारा बताए गए टिप्स में से अधिकांश का आप पालन कर रहे हैं। इस पुस्तक में बताए गए टिप्स में से दो अत्यन्त मूल्यवान यह हैं: अपना संयम बनाए रखें, और झूठ न बोलें! और आप लगभग सहज भाव से दोनों का पालन करते हैं।”
पुस्तक का अंतिम अध्याय स्मृतिलेख (एपटैफ) है जोकि निम्न है:
जब मैं नहीं रहूंगा तब मुझे कैसे स्मरण किया जाएगा? मुझे एक ऐसे व्यक्ति के रुप में स्मरण किया जाएगा जो लोगों को हंसाता था। कुछ वर्ष पूर्व मैंने अपना ‘स्मृति लेख‘ लिखा था:
यहां एक ऐसा शख्श लेटा है जिसने न तो मनुष्य और न ही भगवान को बख्शा,
उसके लिए अपने आंसू व्यर्थ न करो, वह एक समस्या कारक व्यक्ति था,
शरारती लेखन को वह बड़ा आनन्द मानता था,
भगवान का शुक्रिया कि वह मर गया, एक बंदूक का बच्चा।
-खुशवंत सिंह
रविवार 3 मार्च, 2013 को मैं सरदार खुशवंत सिंह से मिलने नई दिल्ली स्थित उनके निवास स्थान सुजान सिंह पार्क (उनके दादा के नाम पर) गया। मैंने उन्हें इस पुस्तक को लिखने पर हार्दिक बधाई दी और उनका अभिनंदन किया। चाय पीते हुए उस स्थान पर एक घंटा आनन्द से गुजारा। मैं उनकी पुत्री माला से भी मिला जो साथ वाले फ्लैट में रहती हैं और उनकी अच्छे ढंग से देखभाल करती हैं।

राजनीतिक हाथियों के दांत खाने और दिखाने के अलग अलग ही हैं:अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस


झल्ले दी झल्लियाँ गल्लां

महिला उत्थान गैर सरकारी संस्था की स्वयम्भू प्रेजिडेंट

ओये झल्लेया देखा हसाड़े प्रयासों का नतीज़ा ओये ८ मार्च के अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर संसद से लेकर सड़क तक केंद्र से लेकर राज्यों तक केवल नारे बाज़ी ही नहीं हुई अनेकों हमारे वेल फेयर के काम भी किये गए हैं|[१]सोनीपत में भगत फूल सिंह महिलाविश्व विद्यालय में आज़ाद भारत का पहला [सरकारी]महिला अस्पताल खोल गया[२]दिल्ली के शास्त्री भवन में पहला महिला डाक खाना खोला गया ओये हसाडी कोउशिशोन का असर यूं पी में भी दिखाई दिया है| [३]यूं पी की विधानसभा में महिला सशक्तिकरण के लिए प्रस्ताव पारित कर दिया गया और [४] मेरठ में महिलाओं के लिए विशेष बस को भी हरी झंडी दिखा कर महिलाओं को समर्पित किया गया है|
अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस

झल्ला

हाँ जी वाकई केंद्र +हरियाणा और उत्तर प्रदेश में नारी सम्मान बढाने के सराहनीय कार्य किये गए हैं |लेकिन दुर्भाग्य से राष्ट्र की सबसे बड़ी संस्था संसद में भाषणबाजी के बाद ज्यादातर अधिकाँश सीटें खाली ही रही| सदन चल रहे थे और माननीय सदस्य कार्यक्रमों में व्यस्त थे | यूं पी ऐ के चेयर पर्सन श्रीमती सोनिया गांधी हरियाणा के सोनीपत में महिला अस्पताल का उद्घाटन करने में व्यस्त दिखी तो माननीय मानव एवं कल्याण संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल पोस्ट आफिस में रहे|सपा के महासचिव प्रो.राम गोपाल यादव मेरठ में शिक्षण संस्थान में डिग्रियां बाँट रहे थे |लेकिन आश्चर्यजनक रूप से विपक्षी दलों के भी अधिकांश खाली लाईनों पर राज्य सभा टी वी का कैमरा घूमता रहा|झल्लेविचारानुसार हाथी के दांत खाने और दिखाने के अलग अलग ही हैं वरना बलात्कारियों को हतोत्साहित करने वाला बिल संसद में पास हो चूका होता|दिल्ली की मुख्य मंत्री श्रीमती शीला दीक्षित को दुष्कर्म के आरोपियों की सिफारिश करने के लिए अपने ही प्रदेश में विरोध नहीं झेलना पड़ता

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी पर बादल गुट का कब्जा

एन डी ऐ के लिए दिल्ली के तख्त की दूरी कुछ कम होनी शुरू हो गई है इसके एक भरोसे मंद घटक शिरोमणि अकाली दल (बादल) ने दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी चुनाव में एतिहासिक जीत करके यूं पी ऐ के गढ़ ने चुनौती दे दी है| पिछले 6 साल से दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी पर काबिज सरना गुट का सफाया हो गया है । बादल गुट इस जीत को ऐतिहासिक मान रहे हैं, वहीं परमजीत सिंह सरना चुनाव में धन, बल और बोगस वोटों का आरोप लगा रहे हैं। उनका आरोप है कि ये चुनाव किसी उम्मीदवार के खिलाफ नहीं बल्कि पंजाब सरकार वर्सेज दिल्ली हो गया था। शिरोमणि अकाली दल (बादल) के दिल्ली अध्यक्ष मंजीत सिंह जीके का कहना है कि यह चुनाव भ्रष्टाचार के खिलाफ था, जिसमें लोगों ने उनका साथ दिया।
गौरतलब है कि कमिटी के चुनाव में कुल 46 वॉर्ड हैं। इनमें से[ ४५] वॉर्ड के लिए चुनाव हुआ था। गांधी नगर की एक सीट पर निर्विरोध उम्मीदवार चुना गया। कुल [४६ ]सीटों में से[ ३७] सीटें शिरोमणि अकाली दल बादल को मिलीं, सरना गुट को केवल[ ८] ही सीटें मिल पाईं। [१] सीट केंद्रीय श्री गुरु सिंह सभा के उम्मीदवार तरविंदर सिंह मारवाह ने जीती। सबसे कड़ा मुकाबला पंजाबी बाग सीट पर था। यहां शिरोमणि अकाली दल (दिल्ली) के अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना और शिरोमणि अकाली दल (बादल) की ओर से मनजिंदर सिंह सिरसा मैदान में थे। इस सीट पर सिरसा ने सरना को रिकॉर्ड [४४५४] वोटों से हराया। सिरसा को [९००६] वोट मिले।

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी पर बादल गुट का कब्जा


राजौरी गार्डन पर सरना गुट के हरपाल सिंह कोचर ने अपने प्रतिद्वंद्वी शिरोमणि अकाली दल बादल के हरमनजीत सिंह पर [२९] वोटों से जीत दर्ज की। कोचर को [१७७४] वोट मिले। इस सीट पर वोटों की जीत का मार्जिन सबसे कम था। खास बात यह रही कि इस सीट पर सबसे देर में चुनाव नतीजे आए। यहां मतगणना दुबारा हुई। बादल गुट के लिए यह सीट बेहद अहम मानी जा रही थी जो सरना गुट के उम्मीदवार कोचर ने छीनी।|
माना जा रहा है कि शराब किंग पोंटी चड्डा की ह्त्या के बाद से ही उनके नजदीकी सरना गुट के साम्राज्य के पतन की कहानी शुरू हो गई थी |जिसका अब पटाक्षेप हो गया है|