मोदीभापे !
दिल के फफोले
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस
रूहों की सिसकियां किसी करवट सोने नही देती
तुम्हारी दूरंदेश नजर मजारों से पहले रुकती नहीं
ख्वाब भी आंसू बहा कर थक गए,मजबूर कलम
अब फरियाद लिखने को कतराए खून मांगती है
तुम्हारी दूरंदेश नजर मजारों से पहले रुकती नहीं
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