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भोले की नगरी केदारघाटी में मानव कंकाल मिलने से राहत कोषों के उपयोग की जांच तो बनती ही है

झल्ले दी झल्लियां गल्लाँ

भाजपाई चीयर लीडर

ओये झल्लेया इन कांग्रेसियों की नंगई तो देख जरा |केंद्र में सरकार गवाने के बावजूद भी इन्होने अपनी कार्यशैली नहीं बदली |उत्तराखंड का उदाहरण ही ले लो | एक साल पहले यहां प्राकृतिक आपदा आई थी जिसमे सैकड़ों लोग मारे गए थे +हजारों छेत्र वासी तबाह हो गए थे|तभी से केंद्र सरकार और जनता से धन लेकर इनके पुनर्वास और सभी शव बरामद कर लिए जाने के तमाम दावे किये जा रहे थे| हेलीकाप्टर द्वारा लोगों को जीवित निकालने के दावे किये जा रहे थे |दुर्भाग्य वश भोले शंकर की केदार घाटी में एक साल के बाद भी श्रद्धालूओं के शवों के कंकाल मिल रहे हैं|जंगल चट्टी+रामबाड़ा आदि में मात्र तीन दिनों की काम्बिंग में ३४ शव बरामद हो चुके हैं |ये शव किसी मलबे में दबे हुए नहीं थे वरन किसी पेड या पहाड़ की शरण में थे| अब उत्तरा खंड की सरकार के मुखिया हरीश रावत अपनी गलती से घायल होकर aiims में भर्ती हो गए हैं |यारा धार्मिक नगरी में आपदा से निबटने के लिए कोई वास्ता रखेगा कि नहीं?

झल्ला

ये बात तो वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है|प्रधान मंत्री+मुख्यमंत्रियों के राहत कोष में आये अरबों रुपयों के चंदे का हिसाब जरूर माँगा जाना चाहिए और बिना सियासत के केदार घाटी को राज्य और केंद्र दोनों के दवारा शुद्धिकरण अभियान शुरू किया जाना चाहिए|