Ad

Tag: WorldHeritage

ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क संरक्षण क्षेत्र भी विश्व विरासत स्थल बना

ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क संरक्षण क्षेत्र भी विश्व विरासत स्थल बना |इससे पूर्व गुजरात के पाटण के रानी की वव को भी यही सम्मान प्राप्त हुआ है|
विश्व विरासत समिति ने ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क संरक्षण क्षेत्र (जीएचएनपीसीए) इंडिया को यूनेस्को के दिशा-निर्देशों के निर्धारित मानदंड (x) के आधार पर विश्व विरासत सूची में दर्ज किया है। मानदंड (x) का उद्देश्य जैव-विविधता संरक्षण है।
ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (जीएचएनपी) हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में है। कुल्लू घाटी में पर्यावरण संरक्षण की अवधारणा काफी पुरानी है।
घाटी में कई स्थानों के नाम उन संतों के नाम पर हैं जो इस महान हिमालय क्षेत्र में साधना के लिए आए थे।
कुछ अभ्यारणयों को आज भी उपवन के रूप में संरक्षित रखा गया है।
ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क संरक्षण क्षेत्र में जीएचएनपी (754.4 वर्ग कि.मी.), सैन्ज (90 वर्ग किलोमीटर) तथा तीर्थान (61 वर्ग किलोमीटर) वन्यजीव अभ्यारण तथा 905.40 वर्ग किलोमीटर के ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क संरक्षण क्षेत्र में ऊपरी ग्लैशियर तथा जैवानल, सैन्ज तथा तीर्थान नदियां तथा उत्तरी-पश्चिम की ओर बहने वाली पार्वती नदी का जल उद्गम शामिल है।

यूनेस्को ने गुजरात के पाटण में स्थित ११ शताब्दी की रानी की वव[बावली] को विश्व धरोहर माना

गुजरात के टूरिज्म को यूनेस्को ने एक आज एक सौगात दी है | पाटण में स्थित ११ शताब्दी की रानी की वव को अब विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है |इससे गुजरात में पर्यटन को और बढ़ावा मिलेगा|
दोहा, कतर में इस समय यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति के चल रहे सत्र में यह मान्यता प्रदान की गई है । यूनेस्को ने इसे तकनीकी विकास का एक ऐसा उत्कृष्ट उदाहरण मानते हुए मान्यता प्रदान की है जिसमें जल-प्रबंधन की बेहतर व्यवस्था और भूमिगत जल का इस्तेमाल इस खूबी के साथ किया गया है कि व्यवस्था के साथ इसमें एक सौंदर्य भी झलकता है।
रानी की वव 11वीं सदी में बनी एक ऐसी सीढ़ीदार बावली है जो काफी विकसित और विस्तृत होने के साथ-साथ प्राचीन भारतीय शिल्प के सौंदर्य का भी एक अनुपम उदाहरण है। यह भारत में बावलियों के सर्वोच्च विकास का एक सुन्दर नमूना है। यह एक काफी बड़ी और जटिल सरंचना वाली बावली है जिसमें शिल्पकला से सजीं सात मंजिला सुन्दर पट्टियां है जो मारू-गुर्जरा शैली की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करती है।
भूगर्भीय परिवर्तनों के कारण आने वाली बाढ़ और लुप्त हुई सरस्वती नदी के कारण यह बहुमूल्य धरोहर तकरीबन सात दशकों तक गाद की परतों तले दबी रही। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इसे बड़े ही अनूठे तरीके से संरक्षित करके रखे रखा। इस बावली से संबंधित पूरे विवरण को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, सीवाईएआरके और स्कॉटिश टेन ने आपसी सहयोग से डिजिटल रूप में संभाल कर रख लिया है।
फरवरी 2013 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इसे विश्व धरोहर सूची के लिए नामांकित किया था। रानी की वव को नामांकित करने की प्रक्रिया और इस सम्पत्ति के प्रबंधन के लिए अपनाई गई रणनीति यूनेस्को के दिशा-निर्देशों के अनुसार ही अपनाई गई है। इसके लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग और गुजरात सरकार ने मिलकर काम किया। गुजरात सरकार ने रानी की वव के आसपास के क्षेत्र को भी विकास योजना में संरक्षित बनाए रखने को समर्थन दिया है। राज्य सरकार ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के साथ मिलकर रानी की वव के आसपास और ऐतिहासिक सहस्रलिंग तालाब के आसपास के खुदाई वाले क्षेत्र और निकट के दूसरे क्षेत्र को भी विकास योजना में भविष्य के लिए संरक्षित घोषित किया है।
रानी की वव ऐसी इकलौती बावली है जो विश्व धरोहर सूची में शामिल हुई है। जो इस बात का सबूत है कि प्राचीन भारत में जल-प्रबंधन की व्यवस्था कितनी बेहतरीन थी। भारत की इस अनमोल धरोहर को विश्व धरोहर सूची में शामिल करवाने में पाटण के स्थानीय लोगों का भी महत्वपूर्ण योगदान है जिन्होंने इस पूरी प्रक्रिया के दौरान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग और राज्य सरकार को हर कदम पर अपना पूरा सहयोग दिया है।