Ad

ऊंची प्रेम सगाई साधो ऊंची प्रेम सगाई

ऊंची प्रेम सगाई साधो ऊंची प्रेम सगाई

संतजन समझाते हैं कि साधक की परमात्मा से ऐसी सच्ची प्रीती होनी चाहिए जैसे पतंगे की दीपक से , मछली की पानी से और हिरन की राग से होती है .
पतंगा जनता है कि वह दीपक की लौ से भस्म हो जायेगा लेकिन वह दीपक से प्रीती नहीं छोड़ता , जैसे मछली को पानी से अलग करने से वह तड़प तड़प कर
जान दे दे देती है तथा जैसे शिकारी के राग छेड़ने से हिरन वह उस ओर खिंचा आता है और शिकारी हिरन के शीश को काट देता है. इसी प्रकार संतजन भी साधकों की अहम् तथा आसक्तियों को काट देते हैं तब साधकों में केवल प्रेम और भक्ति शेष रह जाती है .

पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी

परमाध्यक्ष – श्री रामशरणम् आश्रम, गुरुकुल डोरली, मेरठ .