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अन्‍ना के साथ अरविंद के तरीके से भी सोचने की जरुरत है ।

सम्पादक के नाम पत्र

अन्‍ना हजारे ने किसी भी राजनीतिक मामले में पडने से मना कर दिया है । उन्‍होंने इंडिया अगेंस्‍ट करपशन की टीम विशेषकर अरविंद केजरीवाल को साफ साफ बता दिया हे कि वे उनके राजनीतिक मकसद में साथ नहीं देंगे । यह अन्‍ना का व्‍यक्तिगत फैसला है और उनके व्‍यक्तिगत फैसले पर बहस भी बेमानी है । पर मुझे ऐसा लगता है कि

अन्‍ना के इस फैसले ने भृष्‍टाचार के खिलाफ चल रही लडाई को थोडा कुंद जरुर कर दिया है ।

उन्‍हें ऐसा लगता है कि वर्तमान सरकार गांधीवादी तरीकों को महत्‍व देगी तो यह उनकी उसी तरह की भूल है जिस प्रकार सोमनाथ के मंदिर के कब्‍जे के समय की गई थी । अंग्रेजों में भी इन वर्तमान शासकों के मुकाबले अधिक संवेदनशीलता थी कि उन्‍होंने गांधी के तरीके पर मौहर लगाई और आजादी को अंहिसा की माला पहनाई । पर यह असलियत है कि अकेले गांधी की वजह से ही देश आजाद नहीं हुआ है उसमें भगतसिंह व नेताजी सुभाष चंद बोस की टीम का भी योगदान है । पहले यदि सरकार के किसी मंत्री या नेता पर भृष्‍टाचार का कोई आरोप लगता था तो बाकी लोग उससे किनारा कर लेते थे लेकिन यह पहली सरकार है जिसमें किसी एक पर आरोप लगते ही सब के सब एक हो जाते हैं । इसलिए अब हमें अन्‍ना के साथ अरविंद केजरीवाल के तरीके से भी सोचने की जरुरत है ।
यतेंद्र चौधरी
जी 184 नानकपुरा नई दिल्‍ली

Comments

  1. Maryjo says:

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