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स्वयम को संयमित करके ही दूसरे को संयम बरतने का उपदेश देना चाहिए

पूर्वजों के उपदेशों के अनुसार व्यक्ति को पहले स्वयम को संयमित करके दूसरे को संयम बरतने का उपदेश देना चाहिए|स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने भी पहले अपने आप पर कंट्रोल करके दूसरों को उपदेश दिए थे | इसके समर्थन में एक उदहारण प्रस्तुत है:
स्वामी जी के पास एक माता अपने बीमार बच्चे को लेकर गई । बच्चा शक्कर बहुत ज्यादा खाता था , इसलिए बीमार रहता था । हालाँकि वैद्य ने भी चेतावनी दी थी कि बच्चे का शक्कर खाना बंद किया जाए, लेकिन बच्चा मानता नहीं था । इसीलिए उसने परमहंस से निवेदन किया , “आप आशीर्वाद दें कि मेरा बेटा शक्कर खाना बंद कर दे ।” रामकृष्ण ने बच्चे को एक सप्ताह बाद लाने को कहा । एक सप्ताह बाद पुनः जब माता बच्चे को लेकर आई तो उन्होंने फिर एक सप्ताह बाद लाने को कहा । इसी तरह तीसरी बार भी वैसा ही कहा । इस बार जब माता बच्चे को लेकर आई तो रामकृष्ण परमहंस ने बच्चे को बड़े प्यार से अपने पास बिठाया और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा , “बेटा, मीठा न खाया करो। “माता यह सुनकर हैरान हुई और कहने लगी , “यदि आपने यही बात कहनी थी तो पहले दिन ही कह देते ।” परमहंस ने बड़ी ही नम्रता से कहा, “जब आप पहले दिन बच्चे को लेकर आई थीं , मेरे सामने गुड़ की डली रखी थी । परन्तु अब एक महीने बाद मैंने अपने आप पर संयम कर लिया है , इसीलिए मेरा कहना इस बच्चे पर पूरा असर करेगा ।” और हुआ भी वही, बच्चे ने मीठा खाना छोड़ दिया और वह ठीक हो गया उपरोक्त उदहारण एक महान आदर्श की याद दिलाता है कि “जो हमारे मन में हो, वही हमारे वचन में हो और वही हमारे कर्म में हो।” आध्यात्म के मार्ग पर सत का धारण करना परम आवश्यक है । आज के नेताओं के लिए इस मार्ग का पालन करना जरुरी है