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Tag: केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय

केंद्र सरकार ने पहले तो मधुमेहरोधी दवा पर प्रतिबंध लगाया लेकिन दो माह के पश्चात ही हटा भी लिया :अवसाद को लेकर भी दीर्घावधि अध्ययन नहीं है

केंद्र सरकार ने पहले तो मधुमेहरोधी दवा पर प्रतिबंध लगाया लेकिन दो माह के पश्चात ही हटा भी लिया :अवसाद को लेकर भी दीर्घावधि अध्ययन नहीं है चिकित्सा पत्रिकाओं में प्रकाशित खबरों के आधार पर कार्यवाही करते हुए केंद्र सरकार ने पहले तो मधुमेहरोधी दवा पर प्रतिबंध लगाया लेकिन दो माह के पश्चात ही दवाओं से संबंधित तकनीकी सलाहकार बोर्ड (डीटीएबी) की विशेषज्ञ समिति की राय पर इस दवा के विनिर्माण तथा बिक्री से संबंधित निलंबन को वापिस लेने की सिफारिश कर दी गई है| इसके अलावा अवसाद को लेकर भारत में जनसंख्या आधारित कोई भी दीर्घावधि अध्ययन नहीं है|ये रहस्योद्घाटन केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने आज लोकसभा में प्रश्नों के के लिखित उत्तर में किया |
[अ]उन्होंने बताया कि दिनांक 18 जून, 2013 को अपने राजपत्र अधिसूचना जीएसआर 379(ई) के तहत सरकार ने मानव प्रयोग के लिए पायोग्लिटाजोन दवा के विनिर्माण, इसकी बिक्री और वितरण पर रोक लगा दी थी। सरकार ने यह कदम चिकित्सा पत्रिकाओं में प्रकाशित खबरों पर उठाया, जिसमें इस दवा के लगातार उपयोग पर स्वास्थ्य सुरक्षा संबंधी चिंताएं व्यक्त की गई हैं। हालांकि दवाओं से संबंधित तकनीकी सलाहकार बोर्ड (डीटीएबी) ने इस उद्देश्य के लिए गठित विशेषज्ञ समिति की राय पर इस दवा के विनिर्माण तथा बिक्री से संबंधित निलंबन को वापिस लेने की सिफारिश की । सलाहकार बोर्ड ने यह भी सिफारिश की कि इस दवा के विपणन की अनुमति दी जाए जिसमें एक चेतावनी का खाना बना हो, साथ ही इस दवा को फार्माकोविजिलेंस कार्यक्रम की निगरानी में रखा जाए। तदानुसार सरकार ने दिनांक 31 जुलाई, 2013 को जारी की गई राजपत्र अधिसूचना जीएसआर 520(ई) के तहत इस दवा के विनिर्माण और बिक्री से संबंधित निलंबन को वापस ले लिया। इसके निलंबन से संबंधित कुछ शर्तें रखी गईं,[१] जिसके तहत विनिर्माताओं को दवा के पैकेट पर प्रचार संबंधी जानकारियां उपलब्ध करानी होगी।
इसकी जानकारी केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में दी।
इसके अलावा केन्द्रीय मंत्री ने यह भी स्वीकार किया कि

अवसाद को लेकर भारत में जनसंख्या आधारित कोई भी दीर्घावधि अध्ययन नहीं है,
[आ]

जिससे यह पता लगाया जा सके कि देश में अवसाद के मामले और अवसादरोधी दवाओं के उपभोग में वृद्धि हो रही है। हालांकि भारत में 11 केन्द्रों पर एक साथ किए गए अध्ययन के दौरान यह पता चला कि किसी व्यक्ति विशेष के जीवनकाल के दौरान अवसाद प्रकरण का विकास 9 प्रतिशत (जीवनकाल में प्रसार) था। इस अध्ययन से यह भी पता चला कि किसी भी 12 महीने की अवधि के दौरान किसी भी समय गंभीर अवसाद प्रकरण 4.5 प्रतिशत (अवधि प्रसार) रहा।
स्वास्थ्य जो कि राज्य की विषय वस्तु है और वैसे लोगों की संख्या जो अवसाद से ग्रसित हैं उऩका विवरण केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा राज्यवार/केन्द्रशासित प्रदेशवार नहीं रखा जाता। अवसाद के लिए किसी एक कारण को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। अवसाद कई परिस्थितियों के कारण हो सकते हैं, जिनमें अनुवांशिक, जैविक, मनोवैज्ञानिक और अन्य तनाव संबंधित परिस्थितियां शामिल हैं।
मानसिक विकारों की समस्या के समाधान के लिए केन्द्र सरकार ने वर्ष 1982 से देश में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी) की शुरूआत की है। इस बीमारी का पता लगाने, उसके प्रबंधन और इसका उचित इलाज उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (डीएमएचपी) के तहत 30 राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों के 123 जिलों को लाया गया है।