Ad

Tag: जेल डायरी ‘ए प्रिजनर्स स्क्रेप बुक‘ (A Prisoner’s Scrap Book)

एल के आडवाणी के ब्लॉग से”इतिहास को दबाना नहीं चाहिए”

एन डी ऐ के वरिष्ठ नेता एल के अडवाणी ने अपने ब्लॉग में १९७५ के आपातकालीन नाज़ी शासन की तुलना वर्तमान दमनकारी नीतिओं से करते हुए आपातकाल पर आधारित फिल्मो के निर्माण को जरूरी बताया| वरिष्ठ पत्रकार आडवाणी ने बुरे इतिहास से भी सबक लेकर वर्तमान सुधारने के लिए इतिहास को नहीं दबाये जाने की आवश्यकता पर बल दिया है|अपने इस कथन के समर्थन में वित्त मंत्री पी चिदम्बरम के बेटे की सम्पत्ती की तुलना राबर्ट वढेरा से करने पर एक युवक की गिरफ्तारी का उदहारण भी दिया गया है|इसके साथ ही अपने इस आरोप के माध्यम से जहाँ उन्होंने यूं पी ऐ सरकार को कठघरे में लाने का प्रयास किया है तो इसके साथ ही आई ऐ सी को भी पुचकारने का प्रयास किया है|
प्रस्तुत है आडवानी का ब्लॉग” इतिहास को दबाना नहीं चाहिए”

एल के आडवाणी के ब्लॉग से””


मेरे पूर्व प्रकाशित ब्लॉग में से एक का शीर्षक है: 25 जून, 1975: भारत के लिए एक न भूलने वाला दिन। एक अन्य ब्लॉग का शीर्षक था: 1975 का आपातकाल नाजी शासन जैसा।
मेरे संस्मरणों को प्रकाशित करने वाली ‘रूपा एण्ड कम्पनी‘ ने अस्सी से अधिक मेरे ब्लॉगों को संग्रहित कर ‘एज़ आय सी इट‘ (AS I SEE IT) शीर्षक से पुस्तक प्रकाशित की है।
इनमें से अनेक ब्लॉग जून 1975 में देश पर थोपे गए कठोर आपातकाल और 21 मास बाद जब मार्च 1977 में लोक सभा चुनाव हुए जिनमें श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार को उखाड़ फेंका गया और नई दिल्ली में श्री मोरारजीभाई देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी सरकार बनी – से सम्बन्धित हैं। स्वतंत्रता के बाद यह पहला मौका था जब केन्द्र में एक गैर-कांग्रेसी सरकार बनी।
1975 के आपातकाल के दौरान 1,10,806 लोगों को जेलों में बंदी बना दिया गया। इनमें प्राय: सभी प्रमुख विपक्षी नेता, बड़ी संख्या में सांसद, विधायक और पत्रकार शामिल थे।
जेल में रहते हुए मेरे द्वारा लिखे गए अनेक पैम्फलेटों में से एक था ‘ए टेल ऑफ टू इमरजेंसीज‘ जिसे आपातकाल के विरूध्द हमारे भूमिगत पार्टी कार्यकर्ताओं ने काफी मात्रा में वितरित किया था, इसमें 1975 के श्रीमती इंदिरा गांधी के आपातकाल और 1933 में एडोल्फ हिटलर के आपातकाल का आश्चर्यजनक तुलनात्मक अध्ययन वर्णित किया गया था।
पिछले सप्ताह जब एक सुप्रसिध्द फिल्म निर्माता मेरे घर पर आए तो मैंने उन्हें अपनी जेल डायरी ‘ए प्रिजनर्स स्क्रेप बुक‘ (A Prisoner’s Scrap Book) के साथ साथ ब्लॉग वाली अपनी पुस्तक भेंट की। मैंने विशेष रूप से उनका ध्यान एक ब्लॉग की ओर आकृष्ट किया जिसका शीर्षक है ”अब आपातकाल पर भी फिल्म बने।”
फिल्म निर्माता ने इस विषय में काफी रूचि दिखाई; वह मुझसे सहमत थे कि स्वतंत्र भारत के इतिहास के इस भयावह चरण की देश के फिल्म निर्माताओं ने पूरी तरह उपेक्षा की है लेकिन इस पर जोर दिया कि यह उपेक्षा इस कारण्ा से है कि जो लोग सत्तारूढ़ हैं, वे वास्तव में इसके सही और ईमानदार चित्रण को बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे। यहां तक कि ब्रिटिशराज के दौरान भी देश में इतना दमन नहीं हुआ था और न ही मीडिया पर इतनी कड़ी सेंसरशिप लागू की गई थी।
गत् सप्ताह घटित एक छोटी सी घटना ने फिल्म उद्योग के इस डर की पुष्टि की। पुड्डुचेरी के 46 वर्षीय एक लघु व्यवसायी एस. रवि ने 19 अक्तूबर 2012 को एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने लिखा था कि ‘वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम के बेटे कार्ति के पास राबर्ट वाड्रा से ज्यादा सम्पत्ति है।‘
रवि, जो पुड्डुचेरी से ‘इण्डिया एगेंस्ट करप्शन‘ की गतिविधियों में सक्रिय हैं, को पुलिस ने इस ट्वीट के आधार पर बुलाया और उसे गिरफ्तार कर लिया। मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश डेविड अन्नोसामी ने रेखांकित किया कि जो आधार पुलिस ने रवि के केस में माना है, उस आधार पर अनेक ट्वीट करने वाले गिरफ्तार किए जा सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति को किसी ट्वीट से शिकायत है तो निश्चित रूप से वह ट्वीट करने वाले व्यक्ति के विरूध्द मानहानि का केस दायर कर सकता है। सिर्फ न्यायालय द्वारा दोषी पाए जाने पर ही उसे गिरफ्तार किया जा सकता है।