नया साल मुबारक
दीवार पर टंगे केलेण्डर को बदल कर दिल को खुश कर लिया
बीते साल की तरह ही हमने फिर आज नया साल कर लिया
अखबारें आज भी बीते साल की झलकियों से भरी हैं “झल्ला”
यारों ने बीते साल के मेरे संदेशों को कापी, कट, पेस्ट कर दिया
सरकारी केलेंडर भी दस सालों की बासी उपलब्धियों से भरा है
हुकुमरान उन्हें देख कर फूल कर कुप्पा हो रहे हैं आज कल
उनको यह गुमान है बहुत कुछ किया है उन्होंने आज तक
फेशन का चलन क्या है आज कल कुछ नहीं जानते ये लोग
“कल” के जुगाड़ में बीते “कल” का ढोल पीट रहे ये नासमझ
“कल” आएगा सामने तो “कल” की समझ पर रोयेंगे ये लोग
Recent Comments